Sahitya Aajtak Lucknow: साहित्य आजतक के कार्यक्रम में आज शिरकत करने पहुंचे सामाजिक नृविज्ञान के प्रोफेसर नदीम हसनैन. कार्यक्रम की शुरुआत में प्रोफेसर नदीम ने बिस्मिल सईदी का शेर पढ़ा. शेर कुछ ऐसा है, 'किया तबाह तो दिल्ली ने भी बहुत 'बिस्मिल', मगर खुदा की कसम लखनऊ ने लूट लिया.' दरअसल प्रोफेसर नदीम के प्रोग्राम का शीर्षक था 'खुदा की कसम लखनऊ ने लूट लिया.'
इसके बाद चर्चा की शुरुआत लखनऊ के मिजाज से ही हुई. प्रोफसर नदीम ने कहा कि जब मैं अपने बचपन के लखनऊ को देखता हूं और अब के लखनऊ को देखता हूं, तब समझ आता है कि शहर बदलते हैं. प्रोफेसर नदीम ने दिल्ली और लखनऊ की तुलना करते हुए कहा कि लखनऊ और दिल्ली की तुलना कभी नहीं की जा सकती. दिल्ली में खुद का क्या है. दिल्ली तो कई शहरों से मिलकर बना है. लेकिन लखनऊ का मिजाज ठेठ है.
नाम बदलने से लखनऊ में फर्क आएगा?
नाम बदलने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमारी साझी विरासत ही लखनऊ की असली पहचान है. नवाबी शासकों ने जिस लखनऊ को बनाया और इस पर कोई रंग चढ़ ही नहीं सकता. लखनऊ भगवा या हरे रंग से नहीं बना, लखनऊ अपने मिजाज से है. प्रोफेसर नदीम ने स्पष्ट कहा कि नाम बदलना एक राजनीतिक पहल है. इससे लखनऊ के कल्चर पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
लखनऊ की पहचान उनके नवाबों से हो...
लखनऊ एयरपोर्ट के नाम को लेकर उन्होंने कहा कि इस शहर के एयरपोर्ट का नाम तो नवाब वाजिद अली शाह के नाम पर होना चाहिए था. चौधरी चरण सिंह के नाम पर एयरपोर्ट करने का क्या मतलब? न तो वो लखनऊ के थे और न ही उनका लखनऊ से कोई मतलब रहा. प्रोफेसर नदीम ने कहा लखनऊ को उनके नवाबों की वजह से ही याद किया जाना चाहिए.
क्या है लखनऊ की तहजीब?
लखनऊ की तहजीब का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि लखनऊ में सिया-सुन्नी दंगे तो हुए होंगे. लेकिन हिंदू-मुस्लिम दंगा आज तक लखनऊ ने नहीं देखा. ये हर लखनऊ वासी के लिए गर्व की बात है.
बदल गया आज का लखनऊ
नवाबी, नजाकत और नफासत से लखनऊ के लोगों को जोड़ने के सवाल पर प्रोफेसर नदीम ने कहा कि यह लखनऊ को लेकर पूरा सच नहीं है. उन्होंने कहा कि अब लखनऊ के लोगों को लेकर समाज में गलत धारणा है, जबकि हकीकत तो यह है कि लखनऊ भी अब बहुत विख्यात है. आज के समय के लखनऊ को आप देखेंगे तो पाएंगे कि इसमें अधिकतर लोग बाहरी ही हैं. लखनऊ में आज के समय में अधिकतर लोग वो हैं जो पहली या दूसरी पीढ़ी के लखनवी हैं.
क्या है लखनवी अंदाज?
प्रोफेसर नदीम ने साहित्य आजतक के मंच से इस सवाल का बड़ा सरल सा उत्तर दिया. उन्होंने कहा कि जुबान, तौर तरीके और यहां की मेहमाननबाजी ही असली लखनवी अंदाज है.
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