Sahitya Aaj Tak Lucknow: नवाबों के शहर लखनऊ में साहित्य आजतक का मंच सज गया है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के डॉक्टर अंबेडकर मेमोरियल पार्क में चल रहे साहित्य आजतक के 'लखनऊ का रंगबाज' सत्र में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के 1977 बैच के अधिकारी रहे बृजलाल ने शिरकत की. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से राज्यसभा सांसद बृजलाल ने यूपी की कानून-व्यवस्था से लेकर सियासी तक, हर मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखी.
आपको क्यों न रंगबाज कहें, इस सवाल पर उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) बृजलाल ने ने कहा कि मैं रंगबाज था लेकिन संविधान के दायरे में. नियम-कानून के दायरे में. उन्होंने कहा कि आप हमें कह सकते हैं कानूनी रंगबाज. दलित परिवार से आने वाले बृजलाल ने अभाव में गुजरे बचपन से यूपी पुलिस की शीर्ष पद और फिर साहित्य के अपने सफर को लेकर भी खुलकर बात की.
उन्होंने कहा कि नंगे पैर 12 किलोमीटर पढ़ने जाता था. स्कॉलरशिप के पैसे से पहली बार चप्पल खरीदा. सिद्धार्थनगर जिले में नेपाल बॉर्डर पर मेरा घर था. बृजलाल ने उस वाकये की भी चर्चा की जब वे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के डीजी बनते-बनते रह गए थे. उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव ने सत्ता में आने के बाद मेरा तबादला कर दिया गया. इसका मुझे कोई दुख नहीं है, सरकार का अधिकार है.
जब सीआरपीएफ का डीजी बनते-बनते रह गया
यूपी के पूर्व डीजीपी ने बताया कि मुझे सीआरपीएफ का डीजी बनना था. उन्होंने कहा कि डीजी सीआरपीएफ बनने के लिए मुझे यूपी सरकार की ओर से रिलीज किया जाना था. तब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलने का समय नहीं मिला. यूपी के पूर्व डीजीपी ने कहा कि तब मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की थी. उन्होंने बताया कि मुलायम सिंह यादव ने तब उन्हें ये आश्वासन दिया था कि यूपी सरकार उनको रिलीज कर देगी.
बृजलाल ने आगे उस वाकये का जिक्र करते हुए कहा कि किसी ने कह दिया कि चुनाव में सीआरपीएफ आएगी. सीआरपीएफ का महानिदेशक बृजलाल बन गया तो वह चुनाव में सपा को नुकसान पहुंचा सकती है. उन्होंने कहा कि इसके बाद यूपी सरकार ने मुझे रिलीज करने का विचार त्याग दिया और मुझे रिलीज नहीं किया गया. मैं सीआरपीएफ का डीजी बनते-बनते रह गया.
जब बाराती बनकर किया था बदमाश का एनकाउंटर
यूपी पुलिस के पूर्व प्रमुख बृजलाल ने अपनी पुस्तक पुलिस की बारात को लेकर भी बात की. उन्होंने बताया कि ये पुस्तक एक अपराधी के एनकाउंटर पर आधारित है. बृजलाल ने कहा कि तब मेरठ जिले में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) के पद पर तैनात था. तब एक हवलदार की हत्या हुई थी. इस हत्या में तेजपाल गुर्जर का नाम आया था.
उन्होंने बताया कि तेजपाल गुर्जर तब दिल्ली का नामी बदमाश था और हमने महेंद्र त्यागी के शव के सामने कसम खाई थी कि तेजपाल को एक महीने के भीतर मार डालेंगे. बृजलाल ने कहा कि इसी बीच तेजपाल गुर्जर और बब्बू त्यागी गैंग के बीच बाद दिल्ली में गैंगवार तेज हो गया और एके-47 की गोलियां तड़तड़ाने लगीं.
उन्होंने कहा कि इसके बाद दिल्ली में इसे लेकर उच्च स्तरीय मीटिंग हुई. इस मीटिंग में हमने कहा कि हम तेजपाल को मार डालेंगे. हमने महेंद्र त्यागी की हत्या के ठीक 28वें दिन तेजपाल गुर्जर को मार गिराया. बृजलाल ने बताया कि हमने दिल्ली और उसके अन्य ठिकानों पर लगातार छापेमारी की लेकिन बुलंदशहर जिले में स्थित उसके मामा के गांव को छोड़ दिया था.
दिन में दिया ऑपरेशन को अंजाम
बृजलाल ने कहा कि हमने बुलंदशहर में उसके मामा के घर को इसलिए छोड़ दिया जिससे वो भ्रम में रहे कि हमें इस ठिकाने की जानकारी ही नहीं है. उन्होंने कहा कि हमने उसके मामा के गांव में जाकर पहले ही रेकी कर ली थी. इसी बीच उसके अपने मामा के गांव में होने की जानकारी मिली जिसके बाद हमने दिन में ऑपरेशन करने का फैसला किया. बृजलाल ने कहा कि तब कई लोगों ने दिन में ऑपरेशन पर सवाल भी उठाए.
उन्होंने कहा कि ये बात भी उठी कि तेजपाल के गैंग के पास एके-47 है. दिन में निर्दोष लोगों के मारे जाने का भी खतरा अधिक रहेगा और दूर से ही उसके गैंग के लोग पुलिस को देखकर पहचान लेंगे. बृजलाल ने कहा कि तमाम सवाल थे लेकिन हमने दिन में ही ऑपरेशन करने का फैसला किया.
रातोरात छपवाया बस के लिए शादी का स्टीकर
तब मेरठ के एसएसपी रहे बृजलाल ने बताया कि हमने इसके लिए बारात की शक्ल में पुलिस टीम को ले जाने का फैसला किया. इसके लिए एक बस की और बस पर लगाने के लिए 'शकील वेड्स हमीदा' का स्टीकर रातोरात छपवाया. उन्होंने बताया कि इसके बाद पुलिस टीम दिन में बारातियों की शक्ल में बस से तेजपाल गुर्जर के मामा के गांव के लिए रवाना हुई. बस में ही हथियार भी रखे हुए थे.
उन्होंने कहा कि बस तेजपाल के मामा के घर के सामने रोड पर रुकी और वह बिलकुल हमारे सामने था. लोग हमें बाराती समझ रहे थे. बृजलाल ने बताया कि हम चाहते तो बस के भीतर से भी उसे मार सकते थे लेकिन हमें लगा कि इससे निर्दोष की जान भी जा सकती थी. उन्होंने कहा कि हमने लाउडस्पीकर के जरिये बदमाश से सरेंडर करने के लिए कहा लेकिन वह भागने लगा. फिर हमने उसे मार गिराया.
ददुआ को मिला था राजनीतिक संरक्षण
उन्होंने पुलिस सेवा में रहते अपनी उपलब्धियां भी गिनाईं और बताया कि 19 ऑपरेशन को लीड किया. यूपी के पूर्व डीजीपी ने बताया कि चार बार का राष्ट्रीय अवॉर्डी हूं और बहादुरी के लिए दो बार राष्ट्रपति पदक भी मिला. दिल्ली सरकार ने भी एक लाख रुपये इनाम दिए थे. उन्होंने अपनी किताब पुलिस की बारात का भी जिक्र किया.
यूपी के पूर्व डीजीपी ने ददुआ, ठोकिया के सफाए का किस्सा भी बताया. उन्होंने बताया कि जुलाई 2007 में मुझे एसटीएफ का चीफ बनाया गया था. बृजलाल ने बताया कि चंबल में ददुआ का फरमान चलता था. यूपी और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में ददुआ पर करीब 5-6 लाख रुपये का इनाम घोषित था. जिसे उत्तर का वीरप्पन कहा जाता था, उस ददुआ और उसके परिवार को एक राजनीतिक दल ने पूरा संरक्षण दे रखा था.
ददुआ का आशीर्वाद लेने जाते थे कई माननीय
उन्होंने बताया कि ददुआ को कोई हाथ लगाने की भी हिम्मत नहीं करता था. नाम लिए बिना सपा पर निशाना साधते हुए बृजलाल ने कहा कि एक दल ने उसके भाई को जिला पंचायत अध्यक्ष और भतीजे को विधायक बनाया. पूरा राजनीतिक संरक्षण था. उन्होंने कहा कि कई विधायक और सांसद भी चुनाव जीतने के लिए उसका आशीर्वाद लेने जाते थे. बिना कट मनी दिए कोई काम नहीं होता था.
ददुआ होता एक्सप्रेसवे के लिए भी देनी पड़ी होती कट मनी
यूपी के पूर्व डीजीपी ने कहा कि आज ददुआ होता तो जो एक्सप्रेस-वे बना है, उसके लिए भी कट मनी देनी पड़ी होती. उन्होंने कहा कि हमने तय किया कि ददुआ को मारेंगे, चंबल से डकैतों का सफाया करेंगे. यूपी के पूर्व डीजीपी ने ददुआ के मारे जाने के ऑपरेशन का जिक्र किया और कहा कि लौटते समय एसटीएफ के सात जवानों की ऊपर से गोलीबारी कर ठोकिया ने हत्या कर दी थी.
उन्होंने कहा कि ठोकिया की ओर से इस वारदात को अंजाम दिए जाने के बाद हमने उसके सफाए की भी कसम खाई और एक साल के भीतर ठोकिया को भी मार गिराया. बृजलाल ने एक दबंग पुलिस अधिकारी से लेखक तक के अपने सफर पर भी बात की और अभाव में बीते बचपन के किस्से भी साझा किए.
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