'इंदिरा फाइल्स': पूर्व प्रधानमंत्री के राज पर बिल्कुल अलग रोशनी डालती एक किताब

राजनीतिक इतिहास किसी भी देश के लिए बेहद मायने रखता है. भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन की बात करें तो उनके कुछ फैसले विवाद का विषय बने. कुछ लोग आपातकाल को भूल मानते हैं तो कुछ समर्थन करते हैं, जबकि कुछ इसे एक अधोगति मानते हैं. इन सबसे अलग कई और विषय भी हैं, जिन पर लेखक विष्णु शर्मा की किताब 'इंदिरा फाइल्स' बात करती है.

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विष्णु शर्मा की किताब 'इंदिरा फाइल्स' का आवरण. विष्णु शर्मा की किताब 'इंदिरा फाइल्स' का आवरण.

अतुल कुशवाह

  • नई दिल्ली,
  • 15 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 5:55 PM IST

किसी भी देश का इतिहास अपने में सदियों के किस्से समेटे होता है. ये किस्से जब राजनीतिक हों तो लोगों की इनमें दिलचस्पी भी भरपूर होती है. ये दिलचस्पी ही मौजूदा राजनीति पर इन ऐतिहासिक किस्सों के असर का सबब बनती है. भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आजादी के बाद के भारतीय राजनीतिक इतिहास का एक बड़ा किरदार रही हैं.

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हालांकि, इतिहास के विद्यार्थियों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर युवाओं ने इंदिरा गांधी के नाम पर बांग्लादेश का जन्म, इमरजेंसी, सिक्किम का विलय या ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी बड़ी घटनाएं ही जानी हैं. जबकि भारत जैसे विशाल देश पर करीब डेढ़ दशक के अपने शासन में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तमाम ऐसे फैसले लिए या काम किए, जिन पर उनकी ही पार्टी दबी जुबान में भी चर्चा नहीं करती. पूर्व पीएम इंदिरा के ऐसे ही अनसुने किस्सों को लेकर लेखक और पत्रकार विष्णु शर्मा ने अपनी नई किताब 'इंदिरा फाइल्स' तैयार की है.

294 पेज की इस किताब में कुल 50 अध्याय हैं, जिनमें इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन, वंशवाद की राजनीति और उनके फैसलों को लेकर बातें लिखी गई हैं. इस किताब में इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन और उनके फैसलों की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं. विष्णु शर्मा ने 'इंदिरा फाइल्स' में इंदिरा गांधी के राजनीतिक करियर के उस पक्ष को उकेरा है, जिस पर विवाद हुआ.

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राजनीतिक इतिहास से विष्णु शर्मा भी उसी तरह प्रभावित लगते हैं, जैसा हम किसी भी घटना, दुर्घटना, आपदा, हर्ष या अवसाद से होते हैं. लेखक इस किताब के जरिए आंखों में उंगली डालकर 'वंशवाद की राजनीति' की उस दुनिया को देखने के लिए उकसाता है, जिस पर बहस हो सकती है.

'इंदिरा फाइल्स' में विष्णु शर्मा इंदिरा गांधी को लोकतंत्र विरोधी और तानाशाही रवैये वाली लीडर बताते हैं. वो चीन की प्रगति के लिए भी इंदिरा को ही जिम्मेदार ठहराते नजर आते हैं. पुस्तक में इंदिरा के वंशवादी राजनीतिक मूल्यों पर खूब लिखा गया है, जो उन्होंने अपने शासनकाल में अपनाए.

विष्णु शर्मा की किताब के कुछ अंश...

"जो घटना आप पढ़ेंगे, उसकी कश्मीर से तुलना करके जरूर देखिएगा. 19 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं और 5 मार्च को इंडियन एयरफोर्स के लड़ाकू विमान मिजोरम के सबसे प्रमुख शहर ऐजवाल पर मंडरा रहे थे. अचानक उन विमानों से मशीनगन की गोलियां बरसने लगीं, पूरे शहर में अफरा-तफरी मच गई." 

"अगले दिन वे विमान फिर आकाश में दिखे, लोगों में दहशत फैल गई. वे कुछ करते, उससे पहले ही एयरफोर्स के विमानों से बम बरसने लगे, कइयों की मौत हो गई. शहर के चार प्रमुख इलाके रिपब्लिक वेंग, ह्येच्चे वेंग, डव्रपुई वेंग और छिंगा वेंग, पूरी तरह इस बमबारी के चलते तबाह हो गए. देश में अलगाववाद के आंदोलन तो बहुत हुए हैं, बहुत सी लाशें भी गिरी हैं, दंगे भी हुए हैं, लेकिन वायुसेना के विमानों ने कभी बमबारी की हो, ऐसा केवल इंदिरा गांधी की ही सरकार में हुआ."

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किताब में लिखी लिट्टे से जुड़ी यह कहानी चौंका देगी

"LTTE पर इंदिरा गांधी की कृपा की कहानी बहुतों के लिए यह बात चौंकाने वाली हो सकती है कि इंदिरा गांधी का भी श्रीलंका के उग्रवादी संगठन लिट्टे (LTTE) से कुछ लेना-देना हो सकता है. आमतौर पर राजनीतिक क्षेत्र में इसे 'इंदिरा गांधी की चूक' या 'मिसहैंडलिंग' बोला जाता है, लेकिन कुछ बातें लोगों को विरासत में मिलती हैं. परिवार का नाम और लोकप्रियता पैसा, संपत्ति तो मिलती ही है, दुश्मनियां भी मिलती हैं और गलतियों को ढंकने की जिम्मेदारी भी मिलती है."

किताब में आगे लिखा है, "तमाम विशेषज्ञों ने माना है कि लिट्टे दरअसल मूल रूप से इंदिरा गांधी की भूल थी, जो रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) खड़ी करने के बाद उनसे उत्साह में हो गई थी. रॉ से इंदिरा गांधी को इतनी ज्यादा विदेशी सरकारों की सूचना मिलने लगी थीं कि इंदिरा गांधी उन मामलों में चाहे अनचाहे या उत्सुकतावश खुले या छिपे ढंग से शामिल हो चली थीं. यूं सिंहली-तमिल समस्या श्रीलंका में अरसे से थी और श्रीलंका को 70 के दशक से ही ये शक था कि तमिलों को भारतीय मदद मिलती रही है, इसलिए श्रीलंका के राष्ट्रपति जयवर्धने ने अमेरिका से भी इस मामले में मदद मांगी थी."

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'भ्रष्टाचार को लेकर एक्शन नहीं लेतीं थीं इंदिरा'

"इंदिरा गांधी को जब ‘लौह महिला' लिखा-पढ़ा जाता है तो आम लोग सीधे उन्हें सरदार पटेल की श्रेणी में रख देते हैं कि कैसे उनकी सरकार में पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए गए. यह इतनी बड़ी उपलब्धि बन गई कि उनकी सारी कमियां इस उपलब्धि के आवरण में ढक दी गईं. भूल गए कि वे उस दौर में पीएम थीं, जब भारत महंगाई, भ्रष्टाचार, गरीबी और तानाशाही के सर्वोच्च दौर से गुजर रहा था. उस दौर में चीन बड़ी तेज गति से दुनिया का नंबर एक देश बनने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा था. क्या इंदिरा गांधी का 'लौह महिला' स्वरूप प्रशासन में भी देखने को मिला था? क्या उनके राज में घूसखोरों को भी उनका ताप झेलना पड़ता था? भ्रष्टाचार के जिन मामलों में उनके नेता या मंत्री फंसे होते थे, उन पर तब तक एक्शन नहीं लेती थीं, जब तक कि उसको सबक सिखाने की जरूरत न पड़ जाए."

चीन की तरक्की को लेकर कही गई यह बात

"चीन की मौजूदा तरक्की के लिए इंदिरा गांधी जिम्मेदार हैं. फुरसत में पूर्व प्रधानमंत्री और तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह का साल 1991 का वह ऐतिहासिक बजट भाषण पढ़िए, जिसमें अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोल दिए गए थे. सबसे दिलचस्प बात है कि उन्होंने उस भाषण में पं. नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक की आर्थिक नीतियों की जमकर तारीफ की, लेकिन इंदिरा गांधी की आर्थिक नीतियों का जिक्र तक नहीं किया.

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आगे लिखा है कि जिस प्रधानमंत्री ने देश पर करीब 17 साल शासन किया, पाकिस्तान के दो टुकड़े किए, इस ऐतिहासिक मौके पर उनका जिक्र न करना अनायास ही नहीं था. नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह दोनों बखूबी जानते थे कि उस दिन जो कदम उठाया गया था, वह बीस साल पहले ही उठ जाना चाहिए था. यानी इंदिरा गांधी के शासन काल में, लेकिन वे चूक गईं और नतीजा आने वाली पीढ़ियां भुगतने वाली हैं या यों कहें कि भुगत भी रही हैं."

'धारा 356 का इस्तेमाल कर कई बार लगा राष्ट्रपति शासन'

"इंदिरा गांधी की तानाशाही को लेकर आपातकाल की चर्चा होती है, कांग्रेस के दिग्गज भी आपातकाल को एक भूल मानकर इंदिरा गांधी के बाकी मामलों में गुण गाने लग जाते हैं कि कैसे उन्होंने बांग्लादेश बनवाया, सिक्किम को शामिल किया आदि, लेकिन वे आपातकाल के अलावा बाकी किसी मामले में इंदिरा गांधी को तानाशाह नहीं कहते, लेकिन आंकड़े उन्हें साफ झूठा ठहराते हैं, यह सामान्य सा आंकड़ा पूरे देश के अखबारों में कई बार छप चुका है कि उनके राज में जितनी बार धारा-356 का इस्तेमाल करके राष्ट्रपति शासन लगा. उसका आधा क्या, तिहाई बार भी किसी दूसरे प्रधानमंत्री के समय नहीं लगा.

किताब में आगे लिखा है कि कि पूरे 50 बार इंदिरा गांधी के राज में राष्ट्रपति शासन लगाया गया, 17 साल नेहरूजी देश के प्रधानमंत्री रहे, जिनमें से 13-14 साल राज्यों में चुनी हुई सरकारें रहीं, लेकिन उन्होंने केवल 8 बार ही राष्ट्रपति शासन राज्यों में लगाया. ऐसे में 15-16 साल में इंदिरा गांधी का 50 राज्य सरकारें समय से पहले गिराना यह साबित करता है कि वे विरोधियों को कतई बर्दाश्त नहीं करती थीं."

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कौन हैं लेखक विष्णु शर्मा

‘इंदिरा फाइल्स’ के लेखक विष्णु शर्मा लगभग 20 साल से पत्रकारिता जगत से जुड़े हुए हैं,  वे अमर उजाला, न्यूज 24, इंडिया न्यूज जैसे संस्थानों में सेवाएं दे चुके हैं. कई शीर्ष अखबारों, वेबसाइट्स में उनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं. कुछ समय पहले आई उनकी किताब 'इतिहास के 50 वायरल सच' और ‘गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं’ भी काफी चर्चित हुई थीं.

लेखकः विष्णु शर्मा
प्रकाशकः ज्ञान गंगा, दिल्ली
पृष्ठः 294
मूल्यः 450 रुपये

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