कभी गैर-इस्लामिक बताई गई थी साड़ी, आज पाकिस्तान में भी हो रही लोकप्रिय

साड़ी भारतीय महिलाओं का पारंपरिक परिधान है और अब पाकिस्तान में भी यंग जेनरेशन के बीच साड़ियों के प्रति काफी ज्यादा क्रेज देखा जा रहा है. आइए जानते हैं ऐसा क्यों हैं और कैसे पाकिस्तान में साड़ी फिर से लोकप्रियता हासिल कर रही है.

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(Image: Talha Batla (Left and right); The Saari Girl (centre)) (Image: Talha Batla (Left and right); The Saari Girl (centre))

युद्धजीत शंकर दास

  • नई दिल्ली,
  • 09 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 9:13 PM IST

सचिन-सीमा की लव स्टोरी इन दिनों देश में चर्चा का विषय बनी हुई है. सीमा और सचिन पबजी के जरिए मिले और उन्हें प्यार हो गया जिसके बाद सीमा हैदर अपने सभी बच्चों को लेकर उनके साथ रहने आ गईं. वो लगभग एक महीने से सचिन के साथ ग्रेटर नोएडा में रह रही थीं. महिला को देखकर कोई भी व्यक्ति यह अंदाजा ही नहीं लगा पाया कि यह पाकिस्तानी है. महिला जिस किराए के घर में रही थी उसके मकान मालिक ने बताया कि महिला को देखकर लगा ही नहीं कि वह पाकिस्तानी है, क्योंकि उसने साड़ी पहनी हुई थी. 

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वहीं,  लगभग एक साल पहले भारतीय लोग भी पाकिस्तानी भरतनाट्यम डांसर शीमा केरमानी को देखकर काफी कंफ्यूज हो गए थे कि वह पाकिस्तानी हैं या भारतीय. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने फेमस गाने 'पसूरी' के वीडियो में साड़ी पहनी हुई थी. 

भारत में रहने वाले लोग इस बात को जानने के लिए काफी इच्छुक रहते हैं कि क्या पाकिस्तान में भी महिलाएं साड़ी पहनती हैं या नहीं. तो इसका जवाब है हां. वहां पर भी महिलाओं को साड़ी पहनना पसंद हैं. कराची में 70 साल पुरानी कपड़े बनाने वाली कंपनी हिलाल सिल्क के तल्हा बटला ने इंडिया टुडे को बताया, 'अगर हम पाकिस्तानी महिलाओं की मौजूदा पीढ़ी के बारे में बता करें तो, वह साड़ी को एक प्रतिष्ठित पोशाक के रूप में देखती है, जिसे केवल शादी जैसे विशेष अवसरों पर ही पहना जाता है.'

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बाटला कहते हैं, 'अगर आप रोजाना की जिंदगी पर नजर डालें तो आपको पाकिस्तान में एक भी महिला साड़ी पहने हुए नहीं मिलेगी. यहां पर रोजाना साड़ी पहनने का चलन पूरी तरह से खत्म हो चुका है.' उन्होंने सात साल पहले एक डिजाइनर लेबल 'ताल्हा बाटला' शुरू किया था जिसमें हाई-एंड साड़ियां और ब्राइडल वियर बनाए जाते हैं. 

बाटला ने कहा, यहां पर महिलाएं शादी में साड़ी पहनना काफी ज्यादा पसंद करती हैं. अगर आप किसी पाकिस्तानी शादी में चले जाएं तो वहीं आपको 100 में से लगभग 20 से 30 महिलाएं साड़ी में दिखेंगी. ये एक बड़ी संख्या हैं, क्योंकि साड़ी के अलावा यहां और भी कई ऑप्शन मौजूद हैं. इसका मतलब ये है कि यहां पर साड़ी की डिमांड अभी भी काफी ज्यादा है. बता दें कि तल्हा बटला की ओर से बनाई गई एक साड़ी की कीमत 2 लाख पाकिस्तानी रुपए है. बाटला का कहना है कि उन्होंने सूती साड़ियां बनाना बंद कर दिया है और उनकी सभी साड़ियां उन ग्राहकों के लिए हैं जो उन्हें औपचारिक अवसरों पर पहनती हैं.

साड़ी से जुड़ी और भी कई कहानियां है जिनके बारे में जानना आपके लिए काफी जरूरी है. आइए इनपर भी डालते हैं एक नजर- 

जिया-उल-हक का गैर-इस्लामी साड़ी पर प्रतिबंध

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1947 से पहले, हिंदू और पारसी महिलाएं साड़ी को रोजाना पहने जाने वाले परिधान के तौर पर पहना करती थीं. विभाजन के बाद, जब लोग, विशेषकर बिहार और उत्तर भारत से, पाकिस्तान चले गए, तो वह अपने साथ साड़ी कल्चर भी साथ ले गए. इसलिए पाकिस्तान के सिंध और कराची प्रांत में साड़ी काफी ज्यादा प्रचलित थी.

1970 के दशक तक पाकिस्तान में साड़ियां हर जगह थीं. उस समय की कई फैमिली एल्बम में रेशम और शिफॉन की साड़ी पहनी महिलाओं की कई तस्वीरें भी होंगी. फिल्म और टीवी की हस्तियों ने भी साड़ी पहनी थी और अखबारों में छपे डालडा और पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस के विज्ञापनों में भी महिलाओं को साड़ी में ही देखा जाता था. 

बांग्लादेश (उस समय का पूर्वी पाकिस्तान) से खूबसूरत जामदानी साड़ियां पाकिस्तान पहुंचीं. उसके बाद साल 1971 में बांग्लादेश लिबरेशन युद्ध हुआ. इस युद्ध में पाकिस्तान की बुरी तरह से हार हुई और उसके पूर्वी क्षेत्र ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. उस दौरान साड़ियों में मार्च करती मुक्तोजोधा महिलाओं की फाइलों ने निश्चित रूप से पाकिस्तानियों के दिमाग पर एक छाप छोड़ी होगी. 

सबसे बड़े संकट का सामना उस वक्त करना पड़ा जब जनरल जिया-उल-हक ने 1977 में एक सैन्य तख्तापलट में सत्ता पर कब्जा कर लिया और पाकिस्तान को इस्लामीकरण की ओर धकेल दिया. 1980 के दशक में जिया ने सरकारी महिला कर्मचारियों और कॉलेजों में महिला छात्रों को अपना सिर ढकने का निर्देश दिया. 1983 की एक क्रिश्चियन साइंस मॉनिटर रिपोर्ट के मुताबिक, उस दौरान, महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली साड़ी को भी सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया क्योंकि इसे पहनकर महिलाएं पाकिस्तानी कम भारतीय ज्यादा नजर आती थीं. वेस्टर्न कपड़ों की जगह पर सूट ने जगह ले ली. 

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'पसूरी' में भरतनाट्यम नृत्यांगना शीमा करमानी कहती हैं, 'मेरी मां और उनकी सभी बहनों ने अपने पूरे जीवन में केवल साड़ी ही पहनी है. मैंने काफी कम उम्र में साड़ी पहनना शुरू कर दिया था.' करमानी एक सामाजिक कार्यकर्ता और तहरीक-ए-निस्वान की संस्थापक हैं, जो नृत्य और टीवी के माध्यम से महिलाओं के विकास के लिए काम करती हैं. 

शीमा करमानी ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा, जब एक सैन्य-धार्मिक तानाशाह ने पाकिस्तान पर कब्जा किया तो इस्लामी कट्टरपंथी कानून लागू किया गया, जो पूरी तरह से महिला विरोधी और कला विरोधी था. उससे ना सिर्फ पाकिस्तान में शास्त्रीय नृत्य पर प्रतिबंध लगाया, बल्कि उन्होंने यह भी कहा था कि साड़ी एक इस्लामी पोशाक नहीं है और महिलाओं को इसे नहीं पहनना चाहिए. 

पाकिस्तान में साड़ी का विरोध

जिया-उल-हक की 1988 में एक हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई, लेकिन क्षति पहले ही हो चुकी थी. पाकिस्तान के बाजारों से साड़ी गायब हो गई थी. सलवार कमीज ने उसे कोहनी से बाहर कर दिया था. लेकिन साड़ी पूरी तरह खत्म नहीं हुई. जिस तरह बांग्लादेश के मुक्तिजोधा ने गुरिल्ला लड़ाई में पाकिस्तानी सेना का मुकाबला किया, उसी तरह साड़ी ने भी आड़ ले ली. इसने खुद को अलमारियों में मोड़ लिया और ट्रंक के अंदर छिपा लिया.

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शीमा करमानी बताती हैं कि कैसे साड़ी इस्लामी विचारों और मूल्यों को थोपे जाने के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन गई. करमानी ने कहा, 'मैंने प्रतिरोध के रूप में साड़ी पहनने का फैसला किया. कई सालों तक, सभी आधिकारिक मीडिया में साड़ी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और हममें से केवल कुछ ही महिलाएं थी जिन्होंने साड़ी पहनना जारी रखा.' करमानी ने कहा, बात सिर्फ साड़ी की ही नहीं है इसमें बिंदी भी शामिल है, जिसे मैं हर समय लगाती हूं. मैं मेकअप और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध के खिलाफ इन दोनों ही चाजों का इस्तेमाल करती हूं.' करमानी कहती हैं, 'पाकिस्तान में हममें से कुछ लोगों को छोड़कर शायद ही कोई महिला रोजाना साड़ी पहनती है.' उन्होंने आगे कहा, 'मैं व्यक्तिगत रूप से और भी कई महिलाओं और लड़कियों को साड़ी पहने हुए देखना पसंद करूंगी.'

आइए जानते हैं कैसे जिया-उल-हक के प्रतिबंध के बावजूद साड़ी ने अपना कमबैक किया- 


पाकिस्तान के पहले और सबसे बड़े ऑनलाइन और इन-स्टूडियो साड़ी स्टोर, द साड़ी गर्ल की मायरा मरियम ने इंडिया टुडे को बताया, "पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में साड़ियों की मांग निश्चित रूप से बढ़ी है, क्योंकि युवा पीढ़ी अपनी विरासत को वापस लाना चाहती है." 

जानी मानी पत्रकार और मानवाधिकार एक्टिविस्ट मार्वी सिरमेड साड़ी पहनती हैं और बिंदी भी लगाती हैं. वह पाकिस्तान में साड़ी और बिंदी को वहाँ के पारंपरिक और धार्मिक लिबास के खिलाफ बग़ावत के रूप में देखती हैं.

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साड़ी निश्चित रूप से पाकिस्तान को वापस अपने दायरे में ला रही है. आखिर कैसे?

कराची के हिलाल सिल्क के तल्हा बटला कहते हैं, "भारत और पाकिस्तान कभी एक देश थे, हमारी जड़ें एक ही हैं और वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही हैं. साड़ी को हमारे फैशन के अभिन्न अंग के रूप में देखा जाता है."


29 साल की एक महिला आयला खान का कहना है कि वह बचपन से ही अपनी दादी को साड़ी में देखती हुई बड़ी हुई हैं. और यही साड़ी के साथ उनकी पहली याद थी. आयला एक डेंटिस्ट हैं और फार्मा मार्केटिंग में काम करती हैं. आयला खान का परिवार विभाजन के वक्त भारत से पाकिस्तान चला गया था. 

आयला ने इंडिया टुडे से बात करते हुए बताया, मैंने सबसे पहले साड़ी 15 साल की उम्र में अपने हाई स्कूल के एक प्रोग्राम में पहनी थी. लोग मेरे साड़ी बांधने के तरीके की काफी ज्यादा तारीफ किया करते हैं.'

आयला खान ने बताया कि उनके पास लगभग 25 साड़ियों कीा कलेक्शन है. इनमें से कुछ साड़ियां विरासत में मिली हैं, कुछ फॉर्मल, कुछ सेमी-फॉर्मल और कुछ खुद मैंने डिजाइन की हैं. 

क्या पाकिस्तान में साड़ी की वापसी हो रही है? इस सावल पर आयला खान ने कहा, ''यह वास्तव में कभी गई ही नहीं थीं.'' वहीं, कराची की आयशा ज़री के पास 30 से ज्यादा साड़ियों का कलेक्शन है. 

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ई-कॉमर्स फर्म में काम करने वाली 26 वर्षीय जरी ने इंडियाटुडे को बताया, "मैं पार्टियों और शादियों में साड़ी पहनती हूं. मेरी बहन ने भी ईद पर साड़ी पहनी थी. अपनी शादी के लिए फॉर्मल पोशाकों की बजाय, मैंने अपने लिए साड़ियां खरीदीं." वह आगे कहती हैं, ''मैं इन्हें और ज्यादा पहनना शुरू करना चाहूंगी.''


पाकिस्तानी फिल्मी सितारे और टीवी हस्तियां अब तेजी से साड़ियों में देखी जा रही हैं. आइए देखते हैं पाकिस्तानी एक्ट्रेसेस की साड़ियों में कुछ तस्वीरें- 

पाकिस्तान की टॉप एक्ट्रेसेस में से एक माहिरा खान फैशन ब्रांड 'M BY Mahira' की मालिक हैं. जून में, फिल्म'रईस' में शाहरुख खान के साथ एक्टिंग कर चुकी माहिरा खान को अपने लेबल की एक काली रंग की साड़ी में देखा गया था.

साल 2021 के पाकिस्तान इंटरनेशनल स्क्रीन अवार्ड्स (PISA) पर डॉन की एक रिपोर्ट में साड़ी में सेलेब्स को "ताज़ा बदलाव" कहा गया है.

पाकिस्तानी मीडिया भी यहां साड़ी को लोकप्रियता को सेलिब्रेट कर रही है. साल 2021 के पाकिस्तान इंटरनेशनल स्क्रीन अवार्ड्स (PISA) पर डॉन की एक रिपोर्ट में साड़ी में पहुंची सेलेब्स के लिए  "ताज़ा बदलाव" शब्द का इस्तेमाल किया गया.

आइज़ा हुसैन एक फेयरवल पार्टी में पहनने के लिए लाहौर के बाज़ार में सस्ती साड़ी ढूंढ़ रही थी. इस दौरान उन्हें एक सस्ती साड़ी ढूंढ़ने में काफी ज्यादा मेहनत करनी पड़ी, जिससे इंस्पायर होकर उन्होंने साल 2019 में 'द साड़ी गर्ल' नाम से साड़ियों के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म लॉन्च किया. 

द साड़ी गर्ल को लॉन्च करने के पीछे  दिमाग में जो कुछ भी सवाल आए उन्हें बताते हुए आइज़ा ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा,''साड़ियां कहा चली गई? क्योंकि मुझे सस्ती साड़ी नहीं मिल पाई? आखिर क्यों बॉर्डर के उस पार साड़ियों की कीमत इतनी कम है और क्योंकि हम यहां साड़ियों के लिए 4 से 5 गुना पैसे देते हैं? हमारी संस्कृति एक जैसी थी लेकिन फिर साड़ी को उसी तरह साझा क्यों नहीं किया जाता?” इन्हीं सब चीजों के कारण आइज़ा ने यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म लॉन्च किया, ताकि लड़कियों को बजट में साड़ियां आसानी से मिल पाए.


पिछले कुछ सालों में पाकिस्तान में कपड़ों के कई ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म सामने आए हैं जो सस्ती साड़ियां बेचते हैं. 'नोरोज' और 'अपग्रेडिंग क्लोदिंग' इन्ही में से एक हैं. 

अपग्रेड क्लोदिंग के मालिक ज़ैनब शाहिद ने इंडिया टुडे को बताया , "पाकिस्तान में लोग शादियों और ईद पर साड़ी पहनना पसंद करते हैं."

पाकिस्तान का मिनी बनारस


लेकिन ये साड़ियां आती कहां से हैं?

कराची का बनारस टाउन, जिसे ओरंगी टाउन के नाम से भी जाना जाता है, अपनी बनारसी साड़ियों के लिए पूरे पाकिस्तान में फेमस  है. इन्हें भारत की बनारसी साड़ियों के साथ कंफ्यूज नहीं किया जाना चाहिए.

कराची के बनारस शहर में दिन भर साड़ियां बनाने के लिए हैंडलूम और पावरलूम काम करते रहते हैं.  साड़ी बनाने के लिए हथकरघा और पावरलूम दिन भर काम करते हैं. इसी बनारस शहर में ही तल्हा बटला की 70 साल पुरानी कपड़े की दुकान है.

लेकिन यहां पर बनाई जाने वाली साड़ियों से पाकिस्तान की मांग को पूरा करना काफी मुश्किल है, इसीलिए,  बांग्लादेश, श्रीलंका और भारत से भी साड़ियों का आयात किया जाता है.  बाटला बताते हैं, "दुबई के रास्ते भारत से  साड़ियों का आयात किया जाता है क्योंकि दोनों देशों के बीच अभी फिलहाल आयात-निर्यात बंद है. भारतीय साड़ियों को पाकिस्तान में काफी ज्यादा पसंद किया जाता है.  पाकिस्तान में महिलाएं बनारसी, शिफॉन, प्योर सिल्क, जॉर्जेट, प्रीमियम कॉटन और नेट की साड़ियों को काफी ज्यादा पसंद करती हैं. 


 

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