पुलिसवाले क्यों लगाते हैं काला चश्मा? पुलिस अफसर ने बताया राज!

चंदन तस्कर वीरप्पन को मारने वाली टीम के सदस्य के विजय कुमार ने बताया कि कैसे वीरप्पन का एनकाउंटर किया गया. उन्होंने बताया कि लंबी तैयारी की गई थी. स्नाइपर और स्पेशल सेल के लोग टीम में शामिल थे. 

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आईपीएस के विजय कुमार और अमिताभ यश आईपीएस के विजय कुमार और अमिताभ यश

अनुग्रह मिश्र

  • लखनऊ,
  • 07 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 6:52 PM IST

इंडिया टुडे के 'लल्लन टॉप शो' में तमिलनाडु कैडर के आईपीएस अधिकारी के विजय कुमार शामिल हुए. इन दोनों सुपर कॉप ने अपनी जाबांजी के किस्से सुनाए और पुलिस की भूमिका पर बात की. विजय कुमार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सुरक्षा दस्ते में रह चुके हैं और वीरप्पन की मारने वाली टीम का हिस्सा थे.

के विजय कुमार ने बताया कि उनके पिता भी पुलिस इंस्पेक्टर थे. 42 साल से पुलिस सेवा कर रहे हैं और खुशी होती है.

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चंदन तस्कर वीरप्पन को मारने वाली टीम के सदस्य के विजय कुमार ने बताया कि कैसे वीरप्पन का एनकाउंटर किया गया. उन्होंने बताया कि लंबी तैयारी की गई थी. स्नाइपर और स्पेशल सेल के लोग टीम में शामिल थे.  

आंसू छिपाने के लिए पहनते हैं काला चश्मा

विजय कुमार पूर्व पीएम राजीव गांधी के सुरक्षा दस्ते में भी रह चुके हैं. इस पर उन्होंने कहा कि 21 मई 1991 में श्रीपेंरबदूर में राजीव गांधी की हत्या की गई. उन्होंने बताया कि हत्या के वक्त वह राजीव की सुरक्षा में शामिल नहीं थे. पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के बाद दंगे जैसे हालात थे और अपनी भावनाएं छिपाने के लिए चश्मा पहनना पड़ा ताकि जनता हमारे आंसू न देख सके और लोगों की मदद की जा सके. सुरक्षाकर्मी काला चश्मा पहनते हैं ताकि कोई हमारी नजर पकड़ ना सके.

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सुनाई वीरप्पन एनकाउंटर की कहानी

वीरप्पन के एनकाउंटर वाले दिन के याद करते हुए के विजय कुमार ने बताया कि रात भर हमारी टीम इंतजार करती रही. वह लोग एंबुलेंस में बैठकर आ रहे थे, हमने उन्होंने सरेंडर करने का पूरा मौका दिया लेकिन जब वह नहीं माने तो हमें गोली चलानी पड़ी. 

 उन्होंने बताया,  यह एक सीक्रेट ऑपरेशन था. जब वीरप्पन की गाड़ी गुज़री, तो एक सब इंस्पेक्टर जो वहां सादे कपड़ों में एक होटल के अंदर बैठा था, उसने इशारा किया. ऑपरेशन के लिए कई कोड वर्ड भी थे. जैसे फॉग लैंप का मतलब चार लोग शामिल हैं. इशारे में बताया कि वीरप्पन चार लोगों के साथ है.

मिट्टी पर पसीने की गंध भी नहीं छोड़ते

पुलिस अफसर ने बताया, "एंबुश बहुत सावधानी से होता है. हम कोई निशान नहीं छोड़ते. मिट्टी पर अपने पसीने की गंध भी नहीं छोड़ते. बिना हरकत किए घंटों इंतज़ार करते रहते हैं. जो जितनी ज़्यादा देर ये कर लेता है, वो उतना बेहतर पुलिसवाला माना जाता है. जंगल की भाषा अलग होती है. उसको समझना होता है. जंगल आपको गलतियों का मौका नहीं देता."

जब वीरप्पन की मौत का दृश्य बड़ा नाटकीय दृश्य था. मैं आज भी उसको याद करता हूं तो लगता है कि 5-6 मूवी एक साथ देख लीं. एक साथ कई जगह कई तरह की गतिविधियां हो रही थीं.

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उन्होंने कहा, एक ऑपरेशन एक मिनट में खत्म हो सकता है लेकिन इसकी तैयारी बहुत लंबी होती है.

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