यूपी के इस शहर की नालियों में बह रहा है सोना, हर रोज निकालने पहुंचते हैं सैकड़ों लोग

UP News: यूपी के गोरखपुर में कुछ इलाके ऐसे हैं, जहां की नालियों में बहते कीचड़ से सोना निकल रहा है. इस सोने की तलाश शहर के सैकड़ों परिवार हर रोज करते हैं. यह लोग कुछ घंटों की मेहनत से अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. कुछ लोग तो श्मशान घाट के पास नदी से भी सोना खोजते हैं. शहर में यह काम कई दशक से चल रहा है.

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नाली में सोने की तलाश कर रहा युवक. नाली में सोने की तलाश कर रहा युवक.

aajtak.in

  • गोरखपुर,
  • 05 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:51 AM IST

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की नालियों में बहता कीचड़ भी सोना उगल रहा है. यहां एक जगह ऐसी है, जहां कचरे में सोना बहता है. हर रोज इस कचरे में सोना तलाशने वालों की भीड़ रहती है. कचरे से मिलने वाले सोने को बेचकर 100 से अधिक परिवार अपनी आजीविका चला रहे हैं. कुछ लोग यह काम 45 साल से कर रहे हैं. इतना ही नहीं, इस काम को करने वाले बताते हैं कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो श्मशान घाट के पास नदी से भी सोना तलाशने का काम करते हैं.

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गोरखपुर शहर के घंटाघर स्थित सोनारपट्टी में जेवरात की कारीगरी करने वालों की सैकड़ों दुकाने हैं. इस जगह पर कारीगरी करते वक्त सोने के छोटे कण अक्सर छिटककर कचरे में चले जाते हैं. काम करने के दौरान औजार आदि में भी छोटे कण चिपक जाते हैं. ये कण धुलाई के दौरान एसिड में मिल जाते हैं और बाद में कारीगर इन्हें खोजने पर ध्यान नहीं देते और एसिड भी फेंक देते हैं. 

यह एसिड बहकर नाली में चला जाता है. इसके साथ बहकर जाने वाले सोने के कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें दोबारा खोजना मुश्किल भरा है. इन कणों को तलाश पाना सामान्य तौर पर नामुमकिन है. ऐसे में शहर के सैकड़ों डोम जाति के लोग रोज सुबह कारीगरों की दुकानों के बाहर के नाली की कीचड़ को इकट्ठा करते हैं. इसे निहारी बोला जाता है. 

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तेजाब और पारे से गलाकर कचरे से निकालते हैं सोना

डोम जाति के लोग कीचड़ को एक तसले में भरकर नाली के ही पानी से इसे साफ करते रहते हैं. घंटों तक कीचड़ को छाना जाता है. इसमें से मोटे कचरे को निकाल देते हैं. कड़ी मेहनत के बाद आखिर में बचे कचरे को तेजाब और पारे से गला दिया जाता है. इसके बाद कचरे से नाममात्र का सोना निकलता है, जिसे यह लोग दुकानदार को बेच देते हैं. यही इन लोगों की आमदनी का जरिया है.

बंजारों का है खानदानी पेशा

बताया जा रहा है कि पहले यह काम खासकर नागपुर और झांसी आदि जगहों से आए बंजारे करते थे, लेकिन एक से दो घंटे की मेहनत में दो-चार सौ रुपए की कमाई को देख इन दिनों डोम जाति के लोगों ने भी नाली से सोना तलाशने का काम शुरू कर दिया है. 

हमने कचरे से सोना तलाशने वाले लोगों से बात की तो पता चला कि शहर में सैकड़ों लोग यह काम करते हैं. इस काम में ज्यादातर महिलाएं ही शामिल हैं. कई महिलाएं लंबे समय से यह काम कर रही हैं.

कुछ लोग नदी से भी निकालते हैं सोना

बीते करीब 45 साल से कचरे से सोना तलाशने का काम कर रहे लोगों का कहना है कि इस काम में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो श्मशान घाट स्थित नदी से सोना तलाशते हैं.

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यह लोग बताते हैं कि दाह संस्कार के दौरान ज्यादातर महिलाओं के शव से जेवरात नहीं निकाले जाते हैं. ऐसे में दाह संस्कार के बाद जब नदी में अस्थि विसर्जन होता है तो उसमें जेवरात आदि भी रहते हैं. अस्तियों की राख पानी में डालते ही बह जाती है, लेकिन जेवरात पानी में डूब जाते हैं, जिन्हें यह लोग खोज निकालते हैं.

हजारों में बिकता है दुकान से निकलने वाला कचरा

सोना तलाशने वाले लोगों का कहना है कि हम सभी के घरों में सफाई के बाद कचरा फेंक दिया जाता है, लेकिन सोने के कारीगर की दुकानों पर कचरा फेंका नहीं जाता, बल्कि एक डिब्बे में इकट्ठा किया जाता है. जब यह डिब्बे भर जाते हैं तो इन डिब्बों में भरे कचरे की कीमत भी हजारों में होती है. इसे कचरे को भी यह लोग बाकायदा रेट तय कर खरीद लेते हैं और फिर उसमें से सोना तलाशते हैं.

गंदा काम है, सब लोग नहीं कर सकते

इस काम को 40 साल से कर रहीं रजिया बताती हैं कि मेरे पति दिव्यांग हैं. परिवार में और कोई कमाने वाला नहीं है. इसी काम के जरिए रोज दो-चार सौ रुपए की आमदनी हो जाती है. इसी से परिवार का खर्च चलता है. वहीं गोपाल ने बताया कि वे इस काम को 15 साल से कर रहे हैं. तीन से चार घंटे की मेहनत के बाद अच्छी कमाई हो जाती है, चूंकि गंदा काम है, इसलिए यह सभी लोग नहीं कर सकते.

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(रिपोर्टः विनीत पांडेय)

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