सुप्रीम कोर्ट ने निजी अस्पतालों में नर्सों की काम करने के हालात पर शुक्रवार को चिंता जताई. कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि चार हफ्तों के भीतर एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई जाए. यह कमेटी देखे कि निजी अस्पतालों में नर्स किन हालात में काम करने को मजबूर हैं.
...तो कानून भी बनेगा
केंद्र की बनाई कमेटी की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों के आधार पर सरकार को एक कानून भी बनाना होगा और यह काम छह महीने के भीतर करना होगा. जस्टिस अनिल आर दवे, जस्टिस शिव कीर्ति सिंह और जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की बेंच ने प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंग होम में नर्सों के काम करने के हालात बेहतर बनाने और सेवा शर्तें सुधारने के भी निर्देश दिए हैं.
ऐसे हैं नर्सों के हालात
याचिका ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने लगाई थी. इसमें कहा गया था कि निजी अस्पतालों में नर्सों को बहुत कम सैलरी दी जाती है. सेवा शर्तें ऐसी होती हैं कि जिनसे शोषण होता है. काम करने के घंटे बहुत ज्यादा होते हैं. तमाम सर्टिफिकेट जमा करा लिए जाते हैं. इसलिए बहुत जल्द दूसरी नौकरी पर जाने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
कानून की जरूरत इसलिए
सुप्रीम कोर्ट ने खुद बताया कि ऐसे मामलों में कानून की जरूरत क्यों है. फैसले में कोर्ट ने कहा कि कोई कानून न होने की वजह से ही नर्सों का शोषण होता है. यदि कानून होगा तो यह अपना काम करेगा. इसलिए कोर्ट ने सरकार को कानून बनाने के भी निर्देश दिए. इससे पहले 17 जनवरी को ही कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि उसने नर्सों को कानून के मुताबिक न्यूनतम वेतन दिलाने के लिए क्या कदम उठाए.
विकास वशिष्ठ