सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अगर कोई सरकार की आलोचना करने के लिए बयान दे रहा है तो वह देशद्रोह या मानहानि के कानून के तहत अपराध नहीं है. हाल के दिनों में देशद्रोह के बढ़ते मामलों के बीच इस कानून की समीक्षा की मांग उठ रही है. ऐसे में इस कानून से जुड़ी अहम बातें जानना जरूरी हो जाता है. जानिए देशद्रोह कानून से जुड़ी खास बातें...
क्या है देशद्रोह कानून?
इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 124ए के तहत लिखित या मौखिक शब्दों, चिन्हों, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नफरत फैलाने या असंतोष जाहिर करने पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया जा सकता है. 124ए के तहत केस दर्ज होने पर दोषी को तीन
साल से उम्रकैद की सजा हो सकती है. 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने भी देशद्रोह की इसी परिभाषा पर सहमति जताई और इसी का हवाला सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिया.
अंग्रेजों ने बनाया था देशद्रोह कानून
पहली बार देश में 1860 में देशद्रोह कानून बना और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया. अंग्रेजों ने उनकी हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डालने के लिए यह
देशद्रोह का कानून बनाया था. 1898 में मैकॉले दंड संहिता के तहत देशद्रोह का मतलब था, ऐसा कोई भी काम जिससे सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर होता हो लेकिन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस
परिभाषा में बदलाव किया गया जिसके तहत सिर्फ सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर करने को देशद्रोह नहीं माना जा सकता बल्कि उसी स्थिति में इसे देशद्रोह माना जाएगा जब इस असंतोष के साथ हिंसा भड़काने और
कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की भी अपील की जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया केदारनाथ मामले का हवाला
सुप्रीम कोर्ट पर बेंच ने सोमवार को कहा, ‘हमें देशद्रोह कानून की व्याख्या नहीं करनी. 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले में पहले ही स्पष्ट है.’ बेंच ने
कहा, ‘आपको अलग से याचिका दाखिल करनी होगी जिसमें यह उल्लेख हो कि देशद्रोह के कानून का कोई दुरपयोग तो नहीं हो रहा. आपराधिक न्यायशास्त्र में आरोप और संज्ञान मामला केंद्रित होने चाहिए, वरना ये बेकार
होंगे. कोई सामान्यीकरण नहीं हो सकता.’
केदारनाथ मामले में ये था SC का आदेश
बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण के मामले में देशद्रोह के मामले में केस दर्ज किया था, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी. केदारनाथ सिंह के केस पर सुप्रीम कोर्ट की
पांच जजों की एक बेंच ने भी आदेश दिया था. इस आदेश में कहा गया था, 'देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर
सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े.'
देशद्रोह कानून के कुछ मामले
1. 1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी के खिलाफ वीकली जनरल में 'यंग इंडिया' नाम से आर्टिकल लिखे जाने की वजह से किया था. यह लेख ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लिखा गया
था.
2. 2010 को बिनायक सेन पर नक्सल विचारधारा फैलाने का आरोप लगाते हुए उन पर इस केस के तहत केस दर्ज किया गया. बिनायक के अलावा नारायण सान्याल और कोलकाता के बिजनेसमैन पीयूष गुहा को भी
देशद्रोह का दोषी पाया गया था. इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी लेकिन बिनायक सेन को 16 अप्रैल 2011 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से जमानत मिल गई थी.
3. 2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्लांट का विरोध करने वाले 7 हजार ग्रामीणों पर देशद्रोह की धाराएं लगाई थीं.
4. 2015 में गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले हार्दिक पटेल को गुजरात पुलिस ने देशद्रोह के मामले तहत गिरफ्तार किया गया था. जेननयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को भी देशद्रोह के
आरोपों में गिरफ्तार किया गया था.
5. बेंगलुरु पुलिस ने हाल में एबीवीपी की शिकायत पर एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के खिलाफ देशद्रोह के आरोप दर्ज किए थे. संगठन ने जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन और न्याय नहीं मिलने के आरोपों पर
एक कार्यक्रम का आयोजन किया था.
एक साल में 47 मामले दर्ज
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में ही देशद्रोह के 47 मामले दर्ज किये गये थे और इनके सिलसिले में 58 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन सरकार अब तक केवल एक व्यक्ति को ही
दोषी साबित कर सकी.
रोहित गुप्ता