सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए भारत में दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली 5 जजों वाली संवैधानिक पीठ ने समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने को मना कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को मनमाना करार देते हुए व्यक्तिगत चुनाव को सम्मान देने की बात कही.
देश की सर्वोच्च अदालत ने इस केस की गंभीरता देखते हुए 495 पेजों में अपना फैसला सुनाया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने अलग से फैसला लिया जबकि जस्टिस एएम खानविलकर ने दीपक मिश्रा के फैसले से खुद को जोड़ा.
खास बात यह रही कि इस ऐतिहासिक फैसले के लिए जजों ने काफी ज्यादा होमवर्क किया था. फैसले में दुनियाभर की चर्चित कविता-कहानियों का जिक्र था, जिनमें शेक्सपियर से लेकर मंडेला तक शामिल थे. फैसले में नाटकों, गीतकारों, चितंकों और पूर्व के जजों के बयानों का भी हवाला दिया गया.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसले के दौरान जर्मन विचारक जॉन वुल्फगांग गेटे को कोट करते हुए कहा, 'मैं जैसा हूं मुझे उसी तरह स्वीकार करो'. इसके अवावा चीफ जस्टिस ने जर्मन दार्शनकि आर्थर शोपेनहॉवर के व्यक्तिवाद के सिद्धांत को भी अपने फैसले में रेखांकित करते हुए कहा, 'कोई भी अपने व्यक्तिवाद से पीछा नहीं छुड़ा सकता'.
कोर्ट में गूंजी गुलाब की महक
दीपक मिश्रा के फैसले में रोमियो एंड जूलियट से लिए गईं शेक्सपियर की सदाबहार पक्तियों का भी जिक्र था, जिसमें उन्होंने कहा, 'नाम में क्या रखा है, अगर गुलाब को हम किसी और नाम से भी पुकारें तो वो ऐसी ही खूबसूरत महक देगा'. इसके अलावा सीजेआई ने मानवाधिकारों पर दक्षिण अफ्रीका के महान नेता और नस्लवाद के विरोधी नेल्सन मंडेला को भी कोट किया.
ऐतिहासिक फैसले के दौरान जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने समान सेक्स कपल पर टिप्पणी करते हुए लॉर्ड अल्फ्रेड डगलस की कविता की लाइन को कोट करते हुए कहा, अगर प्यार निडर है तो उसे किसी नाम की जरूरत नहीं'. इसके साथ ही उन्होंने शेक्सपियर के नाटक जुलियस सीसर से बुनियादी अधिकारों से जुड़ी कुछ बातों का भी जिक्र किया.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने जीवन, प्यार और अपराधीकरण पर हाई कोर्ट की पहली महिला जज लीला सेठ के आर्टिकल का हवाला दिया. इसके अलावा उन्होंने अपने फैसले में लिओनार्ड कोहेन के गाने 'डेमोक्रेसी' का भी जिक्र किया. जस्टिस चंद्रचूड़ ने नैतिकता और न्याय के जिक्र करते हुए मार्टिन लूथर किंग जूनियर को भी कोट किया.
क्या कहती है धारा 377
धारा 377 में अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध के तौर परिभाषित किया गया है. इस धारा के मुताबिक जो कोई भी प्रकृति की व्यवस्था के विपरीत किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ यौनाचार करता है, उसे उम्रकैद या दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है. आईपीसी में समलैंगिकता को अपराध माना गया है.
आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स करता है, तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सजा या आजीवन कारावास से दंडित किए जाने का प्रावधान है. उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा. यह अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है और यह गैर जमानती भी है.
अनुग्रह मिश्र