जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षा बलों के काफिले पर हुए आतंकी हमले में 37 जवान शहीद हो गए. इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है. यहां बताना जरूरी है कि जैश की स्थापना कुख्यात आतंकी मौलाना मसूद अजहर ने की थी. ये वही मसूद अजहर है जिसे मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की टीम ने 1994 में कश्मीर से पकड़ा था.
आतंक की दुनिया में मसूद अजहर के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसे छुड़ाने के लिए दिसंबर 1999 में आतंकियों ने कंधार विमान हाईजैक की घटना को अंजाम दिया. तब आतंकियों के साथ मध्यस्थता करने के लिए भारत से जो टीम भेजी गई उसमें तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह और अजीत डोभाल भी शामिल थे. वैसे तो इस घटना को बीस बरस बीत गए लेकिन मसूद अजहर आज भी NSA अजीत डोभाल के लिए सिरदर्द बना हुआ है.
पुलवामा में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर अजीत डोभाल और मौलाना मसूद अजहर को आमने सामने खड़ा कर दिया है. साल 1994 में जब कश्मीर में मसूद अजहर को पकड़ा गया तब उसकी उम्र महज 26 साल की थी. अजहर पुर्तगाल के फर्जी पासपोर्ट के आधार पर पत्रकार के तौर पर भारत में दाखिल हुआ था. लेकिन मसूद अजहर का कद कितना बड़ा है इसका पता तब चला जब अजीत डोभाल और उनकी टीम को उसके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से कनेक्शन का पता चला. मसूद अजहर उस वक्त आईएसआई के इशारे पर आतंकी संगठन हरकत-उल-अंसार और हरकत-उल-मुजाहिद्दीन के बीच खराब होते रिश्ते को सुधारने के मकसद से आया था.
मसूद अजहर के पकड़े जाने के पांच साल बाद यानी 1999 में इंडियन एयरलाइंस की काठमांडू से दिल्ली आने वाले IC-814 विमान का हाईजैक हुआ. आतंकियों ने विमान में सवार 180 यात्रियों को छोड़ने के लिए मसूद अजहर, उमर शेख और मुश्ताक जरगर को रिहा करने की शर्त रखी. तब अजीत डोभाल और कुछ अन्य अधिकारियों को तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह के साथ मध्यस्थता के लिए अफगानिस्तान के कंधार भेजा गया. पिछले साल अपनी एक किताब के विमोचन में अजीत डोभाल ने खुलासा किया था कि तालिबान के अपहरणकर्ताओं को आईएसआई की मदद ना प्राप्त होती तो हम इस संकट को खत्म कर सकते थे.
बहरहाल भारत ने तब यात्रियों की सुरक्षा को ज्यादा प्राथमिकता दी. लेकिन हाईजैक की इस घटना के ठीक दो साल बाद यानी 2001 में मसूद अजहर ने लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद के साथ मिलकर देश की संसद पर हमले की साजिश रची. उस वक्त भी अजीत डोभाल और उनकी टीम को इसकी जांच का जिम्मा सौपा गया. लेकिन अजहर भारत की पहुंच से दूर रहा.
साल 2001 में अमेरिका के 9/11 हमले के बाद दुनिया की कई आतंकी संगठनों समेत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जैश-ए-मोहम्मद को भी आतंकी संगठन घोषित किया. इसके बाद साल 2002 में पाकिस्तान ने भी जैश पर प्रतिबंध लगा दिया. प्रतिबंध के बावजूद मसूद अजहर पाकिस्तान में खुला घूमता रहा और भारत के खिलाफ जहर उगलता रहा. इस दौरान मसूद अजहर का नाम कश्मीर में सीधे किसी बड़ी घटना में सामने नहीं आया.
लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत में हुए दो बड़े आतंकी हमलों से एक बार फिर मसूद अजहर ने दस्तक दी है. पहला बड़ा हमला 2 जनवरी 2016 को पंजाब के पठानकोट में एयरफोर्स बेस पर हुआ. इस हमले में शामिल जैश-ए-मोहम्मद के सभी आतंकी मारे गए, जबकि 5 जवान शहीद हुए. आतंकियों के सफाए के लिए ऑपरेशन की जिम्मेदारी एनएसजी के विशेष दस्ते को दी गई और इसकी निगरानी सीधे अजीत डोभाल कर रहे थे. यह ऑपरेशन तीन दिन तक चला. पाकिस्तान इस हमले के बाद मसूद अजहर, उसके भाई और अन्य आतंकियों को हिरासत में ले लिया और आईएसआई की एक टीम जांच के लिए पठानकोट भेजी.
इसके बाद दूसरी बड़ी आतंकी घटना जिसने पूरे देश को हिला दिया, वो थी उरी सेक्टर के सेना मुख्यालय पर. 18 सितंबर 2016 को उरी सेक्टर में एलओसी के पास स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुए आतंकी हमले में 19 जवान शहीद हो गए. जबकि 4 आतंकी मारे गए थे. इस हमले की साजिश भी मसूद अजहर ने पाकिस्तान में बैठकर रची थी. लेकिन भारतीय सेना ने इस हमले का बदला पाकिस्तान की सीमा मे घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक से दिया.
अब एक बार फिर पुलवामा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है जो उरी सेक्टर में सेना कैंप पर हुए हमले से भी बड़ा है. इस हमले की जिम्मेदारी भी मसूद अजहर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है. अब इसे इत्तेफाक कहा जाय या कुछ और कि कांधार विमान हाईजैक की घटना के 20 साल बाद देश के NSA अजीत डोभाल हैं. जबकि सीमा के उस पार आतंक का आका मसूद अजहर अपने संगठन की सफलता पर भारत की पकड़ से दूर मुस्कुरा रहा होगा.
विवेक पाठक