मोदी सरकार ने देश की कृषि क्षेत्र की तस्वीर बदलने और किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ायाहै. इसके लिए मोदी सरकार सबसे ज्यादा कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग पर जोर दे रही है, लेकिन राज्य सरकारें फिलहाल इसमें हाथ डालने से कतरा रही हैं. ऐसे में कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग के सपने को मोदी सरकार कैसे साकार कर पाएगी?
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सोमवार को राज्य के कृषि मंत्रियो के सम्मेलन में कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग पर जोर दिया. हालांकि राज्यों से आए कृषि मंत्रियों ने इस पर कोई खास तवज्जो नहीं दी. जबकि इस सम्मेलन में अधिकांश बीजेपी शासित राज्यों के कृषि मंत्री शामिल थे, लेकिन उन्होंने भी इस कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग पर अपनी कोई राय नहीं रखी.
मोदी सरकार 2.0 के पहले बजट में किसानों की दशा सुधारने के लिए सबसे ज्यादा तवज्जो जीरो बजट फॉर्मिंग और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग पर दिया है. यही वजह है कि बजट के तीन दिन के बाद ही सरकार ने देश भर के राज्यों के कृषि मंत्रियों का सम्मेलन बुला लिया. इस सम्मेलन में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यों से आए कृषि मंत्रियों से कहा कि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को लेकर रुचि दिखाएं और राज्य सरकारें इस दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए.
इस दौरन कृषि मंत्री ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के मामलों को भी प्रोत्साहन देने की बात भी कही, लेकिन राज्यों के कृषि मंत्री अपनी ओर से इस दिशा में कुछ भी नहीं बोले. दरअसल कॉन्ट्रैक्ट खेती को लेकर पिछले 10 सालों से लगातार केंद्र की सरकार रणनीति बनाती रही है, लेकिन किसान संगठनों के विरोध के चलते राज्य सरकारें इस दिशा में कदम नहीं उठा सकी है.
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह ने aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि केंद्र सरकार कृषि के क्षेत्र में कितनी भी योजनाएं बना ले लेकिन उसे लागू करने का काम राज्य सरकारों का है. इसीलिए कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग को लेकर मोदी सरकार योजना भले ही बना ले, लेकिन राज्यों के बिना सहमति के इसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सकता है.
वह कहते हैं कि राज्य सरकारें कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग में हाथ डालने से कतरा रही है, क्योंकि किसान संगठन इसके विरोध में है. किसानों को आशांका है कि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग का कानून बन जाने के बाद उनकी जमीन पर कॉरपोरेट और मल्टीनेशनल कंपनियां कब्जा कर लेंगी. उनकी ये आशंका पूरी तरह से निराधार भी नहीं है, कॉरपोरेट अगर खेती करने लगेगा तो फिर किसान क्या करेगा? जिन देशों में कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को अपनाया है, वहां किसानों की हालत बहुत अच्छी नहीं है. इसका जीता जागता उदाहारण ब्राजील सामने है.
कॉन्ट्रैक फॉर्मिंग
कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग का मतलब ये है कि किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए. कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता. इसमें कोई कंपनी या फिर कोई आदमी किसान के साथ अनुबंध करता है कि किसान द्वारा उगाई गई फसल विशेष को कॉन्ट्रैक्टर एक तय दाम में खरीदेगा. इसमें खाद, बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के होते हैं. कॉन्ट्रैक्टर ही किसान को खेती के तरीके बताता है. फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसके डिलीवरी का समय फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है.
कुबूल अहमद