कभी किंग मेकर थे ये क्षत्रप, अब अस्तित्व बचाने का है संकट

जो कभी किंग मेकर बने घुमते थे, वह आज अपना सियासी वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हरियाणा की राजनीति के सबसे प्रभावशाली नेताओं में गिने जाने वाले ओम प्रकाश चौटाला हों , अजीत जोगी, चौधरी अजीत सिंह, लालू प्रसाद यादव, ये सभी क्षेत्रीय क्षत्रप अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं.

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ओम प्रकाश चौटाला और चौधरी अजित सिंह ओम प्रकाश चौटाला और चौधरी अजित सिंह

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 12 जून 2019,
  • अपडेटेड 10:56 AM IST

देश की राजनीति में 20वीं सदी के अंत में शुरू हुआ क्षेत्रीय दलों का दबदबा 21वीं सदी के दूसरे दशक में कम होता प्रतीत हो रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव से 2019 के लोकसभा चुनाव तक मोदी मैजिक के सहारे भारतीय जनता पार्टी के दमदार प्रदर्शन से क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व पर ब्रेक लग गया है. राज्यों की सत्ता पर मजबूत पकड़ के साथ गठबंधन राजनीति के दौर में केंद्रीय राजनीति पर भी कभी अच्छी दखल रखने वाले कई क्षत्रपों को आज जनता ने किनारे कर दिया है.

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जो कभी किंग मेकर बने घुमते थे, वह आज अपना सियासी वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हरियाणा की राजनीति के सबसे प्रभावशाली नेताओं में गिने जाने वाले ओम प्रकाश चौटाला हों या अजीत जोगी, चौधरी अजीत सिंह, लालू प्रसाद यादव, ये सभी क्षेत्रीय क्षत्रप अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं.

मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर महागठबंधन का दामन थामने वाले राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी इसी सूची में हैं. बिहार की दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़े कुशवाहा दोनों सीटों पर हार गए. अपनी सांसदी तो गई ही, सभी विधायक भी साथ छोड़कर जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो गए. कुशवाहा के साथ ही केवल कुशवाहा वोट पर निर्भरता और मास लीडर के अभाव से इनकी पार्टी का राजनीतिक भविष्य अधर में नजर आ रहा है.

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चारा घोटाला केस में सजा होने के कारण लोकसभा की सदस्यता गंवाने वाले पहले सांसद राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की पार्टी लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमट गई. पार्टी की स्थापना के बाद स्थापना के बाद सबसे खराब प्रदर्शन के पीछे लालू का बाहर न होना भी बताया जा रहा है. 71 वर्ष के हो चुके लालू को अभी लगभग  13 वर्ष सजा काटनी है. लालू का राजनीतिक करियर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया, पार्टी की राह भी आसान नहीं है.

हरियाणा में समाप्त हो गया चौटाला युग?

'ताऊ' के उपनाम से प्रसिद्ध चौधरी देवीलाल के सियासी कद की छांव में राजनीति की शुरुआत करने वाले उनके पुत्र ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा की राजनीति के पर्याय माने जाते थे. 4 बार मुख्यमंत्री रहे चौटाला भ्रष्टाचार के मामलों में जेल क्या गए, उनकी पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया.

ओम प्रकाश चौटाला के बेटे अजय चौटाला ने जननायक जनता पार्टी नाम से अलग दल बना चुनावी समर में ताल ठोक दी. 2019 के लोकसभा चुनाव में रही सही कसर मोदी लहर ने पूरी कर दी. नतीजा यह हुआ की चौटाला की पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई.

प्रदेश की सभी 10 सीटें प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा के खाते में चली गईं.  ऐसे में जबकि 84 साल के चौटाला जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, उनकी पार्टी के लिए अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है.

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अतीत बन गए चौधरी अजीत?

जाट नेता चौधरी अजीत सिंह ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत को आगे बढ़ाया. लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह न तो खुद संसद पहुंच सके और न ही उनके पुत्र जयंत. 80 साल के हो चले अजीत क्या अब अतीत बन गए हैं, यह सवाल उठना लाजमी भी है. बढ़ती उम्र और खिसक चुके जनाधार से तो यही लग रहा है.

छत्तीसगढ़ में समाप्त हो गया अजीत जोगी का प्रभाव?

मध्य प्रदेश से अलग होकर राज्य बने छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की गिनती कद्दावर आदिवासी नेताओं में होती है. सिविल सर्विसेज के बाद राजनीति में आए 73 साल के जोगी 2003 में भाजपा को सत्ता गंवाने के बाद 2013 के विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस का हाथ थामे रहे, लेकिन विधायक बेटे अमित जोगी को पार्टी से निष्कासित किए जाने के बाद 2016 में छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस नाम से अलग पार्टी बना तीसरी ताकत के रूप में उभरने का दंभ भर रहे थे.

साल 2018 के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में उनका यह दंभ टूट गया. जोगी और उनकी पत्नी समेत महज 5 सीटें ही पार्टी जीत पाई. जोगी लंबे समय से अस्वस्थ और व्हील चेयर पर हैं, ऐसे में उनके राजनीतिक पुनर्जीवन की संभावना भी क्षीण नजर आती है. राजनीति में कब क्या हो, किसका उत्थान किसका पतन हो जाए यह कहा नहीं जा सकता. लेकिन इनके दबदबे का दौर अतीत की बात हो चला है.

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