नोटबंदी का वो लम्हा, जब बेकार हो गए जेब में रखे नोट, पढ़िए आपबीतियां

नोटबंदी के 2 साल पूरे हो गए हैं. हालांकि नोटबंदी से देश के काफी लोगों को दिक्कतें उठानी पड़ी थी. ऐसे में हर शख्स की अपनी एक कहानी है.

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नोटबंदी के बाद ATM के बाहर कतारों में लोग (फोटो-फाइल) नोटबंदी के बाद ATM के बाहर कतारों में लोग (फोटो-फाइल)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 08 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:15 PM IST

नोटबंदी के दो साल गुरुवार को पूरे हो गए. आठ नवंबर, 2016 शाम के आठ बजे मोदी सरकार ने एक हजार और 500 के नोट बंद करने का ऐलान किया था. सरकार के इस कदम के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों को काफी दिक्कतों को सामना करना पड़ा था. एटीएम के बाहर लंबी-लंबी कतारें नजर आ रही थीं.

देश में हर शख्स की नोटबंदी से जुड़ी अपनी एक परेशानी की कहानी थी. कोई हर रोज के खर्च के लिए कैश की तलाश में एटीएम-एटीएम भटक रहा था तो कोई बैंक से बाहर कतारों में रात गुजार रहा था. ऐसी दिलचस्प आपबीती.

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एक दिन बाद ही थी बहन की शादी

रायबरेली के किला बजार के रहने वाले यासिर अहमद खुद ही बैंक में नौकरी करते हैं, लेकिन नोटबंदी मार से उन्हें जूझना पड़ा था. वो कहते हैं नोटबंदी के एक दिन बाद बहन की शादी थी. मैं बैंक से छुट्टी लेकर घर आ चुका था. घर में सारी नोट हजार और 500 सौ की थी. ऐसे में जब अचानक नोटबंदी का ऐलान हुआ तो पूरा परिवार हमारी तरफ बड़ी उम्मीदों से देखने लगा. ऐसे में पापा ने जब कहा कि अब कैसे सब कुछ होगा, तो उस वक्त मेरे पास कोई जवाब नहीं था. घर की पहली शादी थी पूरे परिवार के बड़े अरमान थे. ऐसे में लड़के के बड़े भाई ने पापा को फोन करके कहा कि परेशान मत होना जो हो सके वो करना. इसी बीच, हमारे बैंक के साथियों ने और कई करीबी दोस्तों ने 100 रुपये के नोटों का हमें इंतजाम कराया. तब जाकर सब हो सका है.

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लगा नोटबंदी पर लोग झूठी खबरें फैला रहे..

इलाहाबाद के मूल निवासी रमेश शुक्ला फिलहाल नोएडा में रह रहे हैं. नोटबंदी के दौरान रमेश भोपाल में रहते थे. मोदी के नोटबंदी के घोषणा के बाद भोपाल में कैश फ्लो की दिक्कत नहीं थी. रमेश शुक्ला ने बताया तमाम सोशल साइट्स पर देश के अलग-अलग हिस्सों में नोटबंदी की परेशानियों के लेकर उन्हें लगता था कि ये सब बकवास है लोग जानबूझ कर ऐसी कहानियां साझा कर रहे हैं और लिख रहे हैं.

लेकिन नोटबंदी के एक पखवाड़े बाद जब रमेश ने नौकरी बदली और उन्हें भोपाल से दिल्ली शिफ्ट होना पड़ा तब वो नोटबंदी की परेशानी से दो चार हुए. चूंकि उन्होंने नोएडा को भोपाल जैसा ही समझा था कैश ज्यादा लेकर नहीं आए थे. इस वजह से उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा.

उन्होंने बताया, यहां कैश की बहुत दिक्कत थी, इस वजह से जहां 100 या 150 में काम चल सकता था. वहां दो गुने पैसे खर्च करने पड़े. दरअसल नोटबंदी के बाद तमाम जगह दुकानों पर डिजिटल लेन-देन चलन में बहुत नहीं था. इस वजह से उन्हें ऑटो की जगह कैब बुक करना पड़ता था. सामान्य होटलों की जगह खाने पीने के लिए महंगे रेस्टोरेंट और दुकानों का सहारा लेना पड़ता था. जाहिर सी बात है इन सब में उन्हें अपने बजट से ज्यादा खर्च करना पड़ता था.

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कैश के लिए शहर-शहर भटका

कुशीनगर के रहने वाले महेंद्र कुमार बताते हैं कि 23 नवंबर को शादी थी, जिसके लिए खरीदारी शुरू ही की थी कि सरकार ने नोटबंदी का ऐलान कर दिया. इसके बाद कैश के लिए जिस तरह से दिक्कत हुए और दर-दर भटकना पड़ा, उसे बयां नहीं कर सकता. स्थानीय दुकानदारों के भुगतान और मैरिज हाल से लेकर कैटरिंग तक सभी कैश मांग रहे थे. ऐसे में एक बार लगा कि शादी को कुछ दिनों के लिए टाल दिया जाए, लेकिन रिश्तेदारों को न्योता दिया जा चुका था. इसके चलते शादी को उसी तारीख में करनी मजबूरी बन गई थी. इसके लिए हमें दोस्तों से पैसे इकठ्ठे करने के लिए शहर-शहर जाना पड़ा. नोटबंदी के चलते शादी का बहुत व्यवस्था नहीं हो सकी, बस रस्म अदायगी हुई.

घर बनवाने का काम बीच में रोकना पड़ा

बिहार के छपरा के रहने वाले शिवदीप सिंह फिलहाल दिल्ली में रह रहे हैं. वो बताते हैं कि दीपावली का त्योहार मनाने के लिए गांव गए थे, कुछ ही कैश ले गए थे. इसी बीच पिता जी ने घर बनवाने का काम शुरू करा दिया था. अचानक सरकार ने नोटबंदी का ऐलान कर दिया, जिसके चलते कैश की बहुत ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ा. एटीएम में पैसे थे नहीं और शहर में दुकानदारों के पास कार्ड स्वीप मशीने थी नहीं. ऐसे में घर बनावाने के काम को बीच में ही रुकवाना पड़ा था. दिल्ली लौटने के लिए पैसे का किसी तरह से इंतजाम किया.

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जिसे फोन करो वही दुख बयां कर रहा था

मेरठ के मवाना कस्बे के रहने वाले शैहरिफ फाजिल का कोई बैंक अकाउंट नहीं है. नोटबंदी के दौरान उनके पास हजार और 500 की नोट तकरीबन 5 लाख रुपये घर में था. वो बतातें है कि रिश्तेदारों और दोस्तों के जरिए किसी तरह से उनके अकाउंट में पैसों को जमा करवाया. हालांकि बाद में उन पैसों को वापस पाने के लिए काफी दिक्कतें उठानी पड़ी. पैसे रहते हुए भी लग रहा था कि बिन पैसे के हैं. जिस भी दोस्त को फोन किया वो अपना दुख बयां करता ऐसे में तीन महीने बहुत परेशानियों में गुजरे हैं.

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