न अविरल-न निर्मलः गंगा के गुणों पर बांधों ने लगा दिया ग्रहण

यही विकास का वो विद्रूप चेहरा है जो सभ्यता और संस्कृति की पावन धारा में सड़ांध पैदा करने से बाज़ नहीं आता. इस विकास का लक्ष्य गंगा की पवित्रता और अविरलता सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि इसकी निगाहें गंगा सफाई के लिए आवंटित बजट की बंदरबांट पर ही ज्यादा टिकी रहती हैं. ऐसा सालों से होता रहा है और आगे नहीं होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है.

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कब साफ होगी गंगा (फाइल फोटो) कब साफ होगी गंगा (फाइल फोटो)

विवेक पाठक / मोहित ग्रोवर

  • नई दिल्ली,
  • 09 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 8:31 AM IST

मोक्षदायिनी गंगा को लेकर देश में सुनवाई होती है, विचार-विमर्श होता है, समारोह और सेमिनार होते हैं तब चर्चा गंगा को स्वच्छ करने से आगे नहीं बढ़ पाती. लिहाजा एक नई तारीख का एलान होता है कि गंगा अमुक वर्ष तक साफ कर दी जाएगी और सुनवाई अगली तारीख की घोषणा तक मुल्तवी कर दी जाती है. यही विकास का वो विद्रूप चेहरा है जो सभ्यता और संस्कृति की पावन धारा में सड़ांध पैदा करने से बाज़ नहीं आता. इस विकास का लक्ष्य गंगा की पवित्रता और अविरलता सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि इसकी निगाहें गंगा सफाई के लिए आवंटित बजट की बंदरबांट पर ही ज्यादा टिकी रहती हैं. ऐसा सालों से होता रहा है और आगे नहीं होगा इसकी कोई गारंटी नहीं है.

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ऐसे में गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी के सदस्य रहे प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी का कहना है कि अब गंगा में गंगाजल बचा ही कहां है, जिसे साफ करने की बात हो रही है? गंगा में जो भी पानी है वह नालों या सहायक नदियों का है. गोमुख से गंगासागर तक हज़ारों नालों और कल कारखानों का रसायन सीधे गंगा में गिराया जा रहा है. इसके बावज़ूद गंगा में इतनी क्षमता है कि इन सारे विषैले पदार्थों के असर को खत्म कर दे. लेकिन मुश्किल ये है कि इसके लिए गंगाजल की जरूरत है जो अब गंगा में बचा ही नहीं है.

गंगा में अब नहीं बचा है गंगाजल

प्रोफेसर त्रिपाठी कहते हैं कि गंगा को मां कहे जाने के पीछे सिर्फ पौराणिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक कारण भी हैं. दरअसल गंगा में खुद को साफ करने की नैसर्गिक क्षमता है जो हिमालय से बहने वाली किसी अन्य नदी में नहीं है. इसका कारण गंगा के प्रवाह का वो मार्ग है जिसे भगीरथ पथ कहा जाता है. गोमुख से जब गंगा निकलती है तब तीन तरह के ईको सिस्टम बनाती है.

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पहला हिमालय से पिघलने वाले ग्लेशियर का पानी जब भगीरथ पथ से गुज़रता है तो पहाड़ों की चट्टानों से मिनरल्स भी अपने साथ लेकर आता है. जो काफी फायदेमंद होते हैं. दूसरा गंगा का पानी हिमालय पर उगने वाले औषधीय पेड़ों की जड़ों से छन कर भी आगे बढ़ता है जिसकी वजह से इसके पानी में औषधीय क्षमता है. तीसरा गंगा के जल में बैक्टीरियोफेज वायरस होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को समाप्त कर देते हैं.

गंगा का रास्ता बदल जाने व टिहरी बांध के द्वारा गंगा की धारा रोक दिए जाने से गंगा के ये गुण पहाड़ों तक ही सीमित रह गए हैं. वहीं मैदानी इलाकों में गंगा की तलहटी में प्रदूषण के कारण इतने हानिकारक रसायन इक्टठा हो गए हैं जिनके बारे में कोई चर्चा नहीं करता. सारी योजना गंगा की सतही सफाई तक सीमित रह जाती है.

टिहरी बांध ने घोंट दिया गंगा का दम

टिहरी बांध का निर्माण तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार के दौरान शुरू हुआ था. 1999 में अटल सरकार के समय ये सवाल खड़े हुए कि कहीं इस बांध से गंगा की आध्यात्मिक ताकत को नुकसान तो नहीं होगा? लिहाज़ा अटल ने वरिष्ठ बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में बांधों की वजह से गंगा पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों और टिहरी बांध पर भूकंप से पड़ने वाले प्रभाव की जांच के लिए एक कमेटी गठित की. इस कमेटी में चार सदस्य विश्व हिंदू परिषद के थे.

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गंगा के आध्यात्मिक महत्व पर इस कमेटी का कहना था कि बांध में 10 सेंटीमीटर या 4 इंच परिधि वाली पाइप लगा देने से गंगा का प्रवाह बना रहेगा और इसकी अविरलता बरकरार रहेगी. लेकिन इस बात को नज़रअंदाज कर दिया गया कि नदी का पानी रुक जाने की वजह से इसके नैसर्गिक गुण-जिनमें लाभदायक मिनरल्स शामिल हैं बांध के एक तरफ ही जमा हो जाएंगे और इसका फायदा बांध के दूसरे तरफ नहीं पहुंचेगा. टिहरी में बांध बन जाने और गंगा का प्रवाह रुक जाने की वजह से ही यहां पाई जाने वाली महासीर मछली भी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गईं. ये मछलियां गंगा के पानी को साफ रखती थीं.

फिर अनशन पर प्रोफेसर जी डी अग्रवाल

आईआईटी कानपुर से सेवानिवृत्त प्रोफेसर जी डी अग्रवाल का कहना है कि गंगा की मुख्य सहयोगी नदी पर लोहारी नागपाला, भैरव घाटी और पाला मनेरी बांधों का निर्माण मुरली मनोहर जोशी कमेटी के रिपोर्ट सौंपने के बाद शुरू हुआ. अगस्त 2010 में उनके अनशन के बाद तत्कालीन मनमोहन सरकार ने भागीरथी नदी पर बन रहे इन प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था.

लेकिन जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है मोदी सरकार बंद पड़े इन प्रोजेक्ट को फिर शुरू करेगी. प्रोफेसर जी डी अग्रवाल फिलहाल केंद्र सरकार की गंगा को लेकर उदासीनता से नाराज़ होकर एक बार फिर अनशन पर बैठे हैं.

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