राजस्थान विधानसभा में बाबुओं को बचाने वाला बिल पेश, बीजेपी के दो विधायकों ने भी किया विरोध

राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार की कोशिश उस अध्यादेश को सदन से पास कराने की होगी, जिससे अब जजों, न्यायिक अधिकारियों, अफसरों और लोक सेवकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराना मुश्किल हो जाएगा. वसुंधरा राजे सरकार की ओर से लाए गए इस संसोधन अध्यादेश के मुताबिक, अब कोई भी व्यक्ति जजों, अफसरों और लोक सेवकों के खिलाफ अदालत के जरिये एफआईआर दर्ज नहीं करा सकेगा. मजिस्ट्रेट बिना सरकार की इजाजत के न तो जांच का आदेश दे सकेंगे न ही प्राथमिकी का दर्ज कराने का आदेश दे सकेंगे. इसके लिए उसे पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी.

Advertisement
वसुंधरा राजे वसुंधरा राजे

साद बिन उमर

  • जयपुर,
  • 23 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 1:30 PM IST

राजस्थान में पूर्व व मौजूदा जजों और सरकारी बाबुओं को 'बचाने' वाला वसुंधरा सरकार का विवादास्पद अध्यादेश विधानसभा में पेश किया गया. इस विवादस्पद विधेयक के पेश होते ही सदन में हंगामा शुरू हो गया, जहां कांग्रेस नेताओं के साथ बीजेपी के भी दो नेताओं घनश्याम तिवारी और एन रिजवी ने इस बिल का विरोध किया. इस दौरान सदन में भारी हंगामे के चलते विधानसभा की कार्यवाही मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी गई.

Advertisement

'अपराध का लाइसेंस देगा नया कानून'

इस बीच 'दंड विधियां (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017'  के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में भी जनहित याचिका दाखिल की गई है. याचिका में इस अध्यादेश को 'मनमाना और दुर्भावनापूर्ण' बताते हुए इसे 'समानता के साथ-साथ निष्पक्ष जांच के अधिकार'  के खिलाफ बताया गया है. इसमें कहा गया है कि इससे 'एक बड़े तबके को अपराध का लाइसेंस दे दिया गया है.

'सरकारी बाबुओं के काले कारनामे छिपाने की कोशिश'

वहीं एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी इस विवादित कानून का विरोध किया है. एडिटर्स गिल्ड ने इसे 'पत्रकारों को परेशान करने, सरकारी अधिकारियों के काले कारनामे छिपाने और भारतीय संविधान की तरफ से सुनिश्चित प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाला एक घातक कानून' बताया है.

कांग्रेस ने काली पट्टी बांधकर किया विरोध

इस अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेसी विधायकों ने मुंह पर काली पट्टी बांधकर विधानसभा के बाहर विरोध मार्च किया. विधायकों ने हाथ में बैनर ले रखे थे, जिस पर लिखा था- लोकतंत्र की हत्या बंद करो, काला कानून वापस लो, सरकार चाहे मुखबंद देश चाहे आवाज बुलंद...

Advertisement

वहीं इस विरोध प्रदर्शन में शामिल सचिन पायलट ने कहा, 'हम इस अध्यादेश के खिलाफ राज भवन की तरफ मार्च कर रहे थे. पुलिस ने हमें हिरासत में ले लिया. सरकार अपने भ्रष्टाचार छुपाना चाहती है. हम प्रेस को ज्ञापन सौंपेगे.'

वसुंधरा सरकार को केंद्र का साथ

इस विधेयक को लेकर विभिन्न वर्गों का विरोध झेल रही वसुंधरा सरकार को केंद्र का साथ मिलता दिख रहा है. केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री पीपी चौधरी ने इस विधेयक को लेकर कहा कि यह बिल्कुल परफेक्ट और बैलेंस्ड कानून है. इसमें मीडिया का भी ध्यान रखा गया है और किसी व्यक्ति के अधिकारों का भी. इस समय में इस कानून की बहुत ज्यादा जरूरत है.

जजों, अफसरों, नेताओं के खिलाफ FIR की लेनी होगी इजाजत

दरअसल राज्य की वसुंधरा राजे सरकार की कोशिश उस अध्यादेश को सदन से पास कराने की होगी, जिससे अब जजों, न्यायिक अधिकारियों, अफसरों और लोक सेवकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराना मुश्किल हो जाएगा.

वसुंधरा राजे सरकार की ओर से लाए गए इस संसोधन अध्यादेश के मुताबिक, अब कोई भी व्यक्ति जजों, अफसरों और लोक सेवकों के खिलाफ अदालत के जरिये एफआईआर दर्ज नहीं करा सकेगा. मजिस्ट्रेट बिना सरकार की इजाजत के न तो जांच का आदेश दे सकेंगे न ही प्राथमिकी का दर्ज कराने का आदेश दे सकेंगे. इसके लिए उसे पहले सरकार से मंजूरी लेनी होगी.

Advertisement

अध्यादेश में कहा गया है कि सरकार के स्तर पर सक्षम अधिकारी को 180 दिन के अंदर जांच की इजाजत देनी होगी. अगर 180 दिन के अंदर जांच की इजाजत नहीं दी जाती है तो इसे स्वीकृत मान लिया जाएगा.

मीडिया पर भी खबरें छापने की रोक

अध्यादेश में यह भी कहा गया है कि किसी भी जज, मजिस्ट्रेट या लोकसेवक का नाम और पहचान मीडिया तब तक जारी नहीं कर सकता है जब तक सरकार के सक्षम अधिकारी इसकी इजाजत नहीं दें. क्रिमिनल लॉ राजस्थान अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस 2017 में साफ तौर पर मीडिया को लिखने पर रोक लगाई गई है.

इस अध्यादेश का विभिन्न तबकों की तरफ से सवाल उठाए जाने के बाद राज्य के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया इसके बचाव में कहते हैं कि ईमानदार अधिकारी को बचाने के लिए हमने ये अध्यादेश लाया है. कोई भी ईमानदार अधिकारी काम करने में डरता था कि कोई जानबूझकर झूठी शिकायत कर उसे फंसा देगा.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement