कृषि कानूनों के खिलाफ राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर पिछले दो महीने से किसान आंदोलन जारी है. किसान और सरकार के बीच कई बार वार्ता हुई, लेकिन नतीजे अभी तक नहीं निकला. ऐसे में 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई घटना ने किसान और सरकार की बीच दूरी बन गई है. ऐसे में किसान आंदोलन का चेहरा बना चुके राकेश टिकैत के राइट हैंड माने जाने वाले भारतीय किसान युनियन के महासचिव धर्मेंद्र मलिक ने जेडीयू महसचिव केसी त्यागी का नाम सरकार और किसानों के बीच मध्यस्थता करने के लिए सुझाया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर केसी त्यागी का नाम आखिर क्यों मध्यस्थता के लिए दिया जा रहा है.
त्यागी के मन में मध्यस्थता के लिए तैयार
कृषि कानूनों को लेकर किसान संगठन और सरकार के बीच कई दौर की हुई बातचीत बेनतीजा रही. ऐसे में धर्मेंद्र मलिक चाहते हैं कि जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी सरकार और किसानों के बीच मध्यस्थता करें. किसान नेता के ऑफर को केसी त्यागी ने तो स्वीकार किया है, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इजाजत के बाद ही वो अपना कदम आगे बढ़ाने की बात कर रहे हैं. हालांकि, केसी त्यागी चाहते हैं कि नीतीश कुमार, शरद पवार और प्रकाश सिंह बादल जैसे नेताओं की समिति बने, जो सरकार और किसान के बीच मध्यस्थता करने में अहम भूमिका अदा करे. इसके अलावा उनके मन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का भी नाम है.
किसानों ने त्यागी का नाम क्यों सुझाया
केसी त्यागी किसान आंदोलन से निकलकर राजनीति में आए हैं. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के सानिध्य में रहकर केसी त्यागी ने राजनीतिक पारी का आगाज किया था. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की अगुवाई में उन्होंने किसानों के हक की कई लड़ाई भी लड़ी हैं और अपने आपको आज भी किसान नेता के तौर पर वो पेश करते रहे हैं. यही वजह है कि वो कहते हैं कि अगर वह किसानों की मध्यस्थता करते हैं तो ये उनके लिए यह सम्मान की बात होगी. खुद भी स्वीकार करते हैं कि महेंद्र सिंह टिकैत के रास्ते को उन्होंने आज भी नहीं छोड़ा है. इसीलिए किसानों की मांग के प्रति संवेदनशील हैं और राकेश टिकैत के प्रति सहानुभूति रखते हैं.
पश्चिम यूपी और किसान पृष्ठभूमि से आते हैं त्यागी
गाजियाबाद के गांव मोरटा में जन्मे केसी त्यागी सक्रिय राजनीति में 9 अगस्त, 1974 को आए, जिस दिन चौधरी चरण सिंह ने लोकदल की नींव रखी, चरण सिंह से उनकी नजदीकियों का आलम ये था कि 1984 में उन्हें हापुड़-गाजियाबाद लोकसभा का चुनाव भी लड़वाया. चौधरी चरण सिंह के सानिध्य में रहने और पश्चिम यूपी से आने की वजह से किसान राजनीति से जुड़े रहे हैं. महेंद्र सिंह टिकैत ने 1988 में दिल्ली के आंदोलन किया था तो केसी त्यागी भी उनके साथ शामिल थे. हालांकि, उस समय वो वीपी सिंह के साथ जनता दल में थे.
केसी त्यागी त्यागी के 1989 में हापुड़-गाजियाबाद सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचने के बाद महेंद्र सिंह टिकैत के साथ संबंध काफी मजबूत हो गए थे. इसके पीछे एक वजह यह भी रही कि गाजियाबाद का इलाके में टिकैत परिवार का दबदबा कायम था, जहां से त्यागी ने जीत हासिल की थी. किसान राजनीति में राकेश टिकैत के कदम रखने के बाद भी केसी त्यागी से भी उनके रिश्ते बेहतर रहे हैं. इसीलिए केसी त्यागी ने कृषि कानून के खिलाफ अपना अलग स्टैंड ले रखा है और एमएसपी की गारंटी कानून के समर्थन में लगातार बयान दे रहे हैं. यही वजह है कि राकेश टिकैत के करीबी धर्मेंद्र मलिक ने केसी त्यागी का नाम मध्यस्थता के लिए सुझाया है.
त्यागी की सभी दलों में अच्छी पैठ
जेडीयू नेता केसी त्यागी एनडीए में रहते हुए भी अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि बना रखी है. सपा से लेकर कांग्रेस, अकाली और इनेलो और आरएलडी जैसे तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ उनकी अच्छी पटती है. ऐसे में केसी त्यागी अगर मध्यस्थता के लिए नाम सुझाए गए हैं ताकि वो बीजेपी और एनडीए के साथ-साथ विपक्षी दलों के नेताओं को भी राजी कर सकें.
किसान-सरकार के बीच मध्यस्था के लिए केसी त्यागी ने भी अकाली दल के संस्थापक प्रकाश सिंह बादल के नाम सुझाया है ताकि पंजाब के किसानों को साधा जा सके. कृषि कानून को लेकर सबसे ज्यादा पंजाब के किसानों में गुस्सा है, जिसके चलते अकाली दल ने एनडीए का साथ छोड़ा था. साथ ही उन्होंने एनसीपी प्रमुख शरद पवार का नाम सुझाया है, जो यूपीए सरकार में कृषि मंत्री रह चुके हैं. इस तरह पवार के जरिए यूपीए के घटकदलों को राजी करने की रणनीति है. इसके अलावा नीतीश कुमार के नाम पर एनडीए और बीजेपी नेताओं के बीच सहमति बनाने की रणनीति अपना रहे हैं. ऐसे में देखना है कि केसी त्यागी को इस मध्यस्थता को किस मुकाम पर ले जाते हैं?
कुबूल अहमद