न्यूक्लियर प्रोग्राम के आर्टिकेक्ट, कलाम के अहम सहयोगी... नहीं रहे साइंटिस्ट आर. चिदंबरम

आर चिदंबरम ने भारत की सुरक्षा और एनर्जी सिक्योरिटी में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने 1994-95 के दौरान अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष थे. वह 2008 में 'आईएईए की 2020 और उससे आगे की भूमिका' पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए महानिदेशक, आईएईए द्वारा नियुक्त प्रतिष्ठित व्यक्तियों के आयोग के सदस्य भी थे.

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भारत के अनुभवी परमाणु वैज्ञानिक राजगोपाला चिदंबरम का 88 वर्ष की उम्र में निधन. (PTI Photo) भारत के अनुभवी परमाणु वैज्ञानिक राजगोपाला चिदंबरम का 88 वर्ष की उम्र में निधन. (PTI Photo)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 04 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:55 PM IST

भारत के अनुभवी वैज्ञानिक डॉ. राजगोपाला चिदंबरम का शनिवार को 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने तड़के 3 बजकर 20 मिनट पर मुंबई के जसलोक अस्पताल में अंतिम सांस ली. परमाणु ऊर्जा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि 1975 और 1998 के परमाणु परीक्षणों में राजगोपाला चिदंबरम ने अहम भूमिका निभाई थी. वह भारत के न्यूक्लियर वेपन प्रोग्राम से भी जुड़े रहे.

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राजगोपाला चिदंबरम न्यूक्लियर एनर्जी कमीशन के अध्यक्ष और भारत सरकार के प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर थे. उन्हें 1975 ने पद्म श्री और 1999 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. डॉ. आर चिदंबरम ने पोखरण-I (1975) और पोखरण-II (1998) के परमाणु परीक्षण तैयारियों का समन्वय किया था. उन्होंने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के निदेशक के रूप में भी कार्य किया.

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आर चिदंबरम ने भारत की सुरक्षा और एनर्जी सिक्योरिटी में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने 1994-95 के दौरान अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष थे. वह 2008 में 'आईएईए की 2020 और उससे आगे की भूमिका' पर एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए महानिदेशक, आईएईए द्वारा नियुक्त प्रतिष्ठित व्यक्तियों के आयोग के सदस्य भी थे. अपने पूरे करियर के दौरान, चिदंबरम ने भारत के परमाणु हथियारों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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वह 1974 में पोखरण टेस्ट रेंज में भारत के लिए पहला परमाणु परीक्षण (स्माइलिंग बुद्धा) करने वाली टीम का हिस्सा रहे. मई 1998 में दूसरे परमाणु परीक्षण की तैयारियों का नेतृत्व करते हुए परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) की टीम का नेतृत्व और प्रतिनिधित्व करने पर उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई. वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान 1998 में पोखरण रेंज में भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण के दौरान एपीजे अब्दुल कलाम की टीम में शामिल थे.

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