तीन ट्रेन, ताश के पत्तों की तरह बिखरीं बोगियां और 288 मौतें... अब तक नहीं मिले इन 7 सवालों के जवाब

ओडिशा के बालासोर में हुए रेल हादसे के कई घंटों बाद कुछ सवाल अब भी बरकरार हैं, लेकिन उनके जवाब अब तक नहीं मिल पाए हैं. सवाल है कि आखिर 288 लोगों की यात्रा को अंतिम यात्रा बना देने की वजह क्या रही?

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दर्दनाक रेल हादसे से सहमा पूरा देश दर्दनाक रेल हादसे से सहमा पूरा देश

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 03 जून 2023,
  • अपडेटेड 12:27 AM IST

ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार की शाम उस वक्त हड़कंप मच गया, जब दो ट्रेन में डेढ़ हजार से ज्यादा यात्री एक गंभीर हादसे का शिकार हो गए. रेल के इस सफर में किसी की मंजिल हावड़ा से चेन्नई तक की थी तो  किसी का सफर बेंगलुरु से हावड़ा तक का था. लोग खुश थे. शाम का वक्त था. कोई नाश्ता कर रहा था. बच्चे कोल्डड्रिंक और चिप्स खा रहे थे. कुछ लोग रात के खाने की प्लानिंग कर रहे थे. इन डेढ़ हजार लोगों को अंदेशा भी नहीं था कि जिन दो ट्रेनों में वो यात्रा कर रहे हैं, वो उनकी अंतिम यात्रा बनने वाली है.

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इस हादसे के कई घंटों बाद भी सवाल बरकरार हैं, लेकिन उनके जवाब अब तक नहीं मिल पाए हैं. सवाल है कि आखिर 288 लोगों की यात्रा को अंतिम यात्रा बना देने की वजह क्या रही? सबसे पहले इस हादसे की पृष्ठभूमि समझ लेते हैं. दो जून को शुक्रवार के दिन भारत के बड़े स्टेशन में से एक हावड़ा रेलवे स्टेशन से दोपहर 3 बजकर 20 मिनट पर हावड़ा से चेन्नई जाने वाली कोरोमंडल एक्सप्रेस रवाना होती है. इससे करीब साढ़े पांच घंटे पहले साइबर सिटी के नाम से मशहूर कर्नाटक के बेंगलुरु रेलवे स्टेशन से चलने वाली बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस सुबह 10.35 पर निकलती है. 

कुछ दूर चलते ही...

दोनों तरफ से चली ट्रेन स्पीड पकड़ती हैं. यात्री भीतर आराम से अपनी यात्रा के पूरी होने का इंतजार करते रहते हैं कि अचानक ओडिशा के बालासोर स्टेशन से थोड़ा आगे बहानगा बाजार स्टेशन की आउटर लाइन के पास शुक्रवार शाम 7 बजे तीन ट्रेन सबसे बड़े हादसे का शिकार होती हैं. हादसा इतना गंभीर था कि दूर-दूर तक डिब्बे ताश के पत्ते की तरह बिखरे हुए दिखे. ऐसा लगा जैसे कोई भूकंप आया है. मौत का भूकंप. मौत का भूकंप ऐसा कि जिसने तीन ट्रेन के डिब्बों को कागज की तरह मोड़कर इधर उधर फेंक दिया हो. 

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मौत का वो तूफान जहां कोरोमंडल एक्सप्रेस की बोगी मालगाड़ी में टक्कर के बाद उसके ऊपर तक चढ़ गई. एक झटके में जो मुसाफिर थे वो मृतक बन गए. जिन यात्रियों को हंसते हुए ट्रेन के डिब्बे से निकलना था. उन्हें ट्रेन के डिब्बे काटकर निकाला गया. जो खाने कमाने वाले दो जून की रोटी के लिए दो जून को निकले थे. वो अपनों को खोकर हताश हो गए. 

जिस भारतीय रेल में रोज ऑस्ट्रेलिया की आबादी से ज्यादा लोग सफर करते हैं. उस देश में इतना बड़ा रेल हादसा हो जाए तो कई सवाल उठना लाजमी है. इस भयानक रेल हादसे ने कई सवाल छोड़ दिए हैं.

1- तीन ट्रेन कैसे एक साथ हादसे का शिकार हुईं? 

2- हादसा इतना भीषण कैसे बन गया कि सैकड़ों लोगों की जान गई? 

3- सिग्नल गड़बड़ था, ट्रैक गड़बड़ था या ड्राइवर की गलती थी? 

4- क्या रेलवे की नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली कुनीतियों का नतीजा है सबसे बड़ा रेल हादसा?  

5-  ट्रेन को टक्कर से बचाने वाली एंटी कोलिजन डिवाइस का देश में पहली बार 2011-12 में एलान होता है, फिर भी क्यों 13 साल बाद भी ट्रेन टकरा रही हैं? 

6-  ट्रेन की सुरक्षा के लिए तैयार हुई कवच योजना का क्या हुआ? 

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7-  क्या अभी देश में हर ट्रेन को हादसे से बचाने वाले कवच में लंबा वक्त लगेगा? अगर हां तो कितना?  

यह कुछ सवाल हैं जो इस देश के हर नागरिक के जहन में हैं. इन सवालों के जवाब अभी तक नहीं मिल पाए हैं. 

घटनास्थल पर पहुंचे पीएम मोदी

इस हादसे के बाद पीएम मोदी भी घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने पूरा जायजा लेने के बाद इसे दर्दनाक, विचलित करने वाला हादसा बताया. पीएम मोदी ने कहा, मेरे पास शब्द नहीं हैं. पीएम मोदी ने यह भी कहा, दोषियों को बख्शेंगे नहीं.  

चार ट्रैक, तीन ट्रेन और भीषण हादसा

आपको बता दें कि इस घटना वाली जगह पर चार रेलवे ट्रैक थे. हादसे के वक्त तीन ट्रेन थीं. एक के ऊपर एक रेल चढ़ीं और मौत के मंजर सबके सामने है. इस हादसे की एक ऐसी तस्वीर भी सामने आई जिसे देखकर रूह कांप उठेगी. कोरोमंडल एक्सप्रेस में रेलवे की पटरी ट्रेन की निचली परत को चीरकर अंदर घुस चुकी है.  

पीएम को दिखाया गया ट्रैक मैप

इस घटनास्थल पर पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी को एक ट्रैक मैप दिखाया गया. इसमें चार ट्रैक लाइन दिख रही हैं. दो ऊपर नीचे लाल रंग की. जिन्हें लूप लाइन कहते हैं और बीच में दो जो पीले रंग की लाइन दिख रही है. वो एक अप लाइन है, एक डाउन लाइन है. 

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कैसे हुई इतनी बड़ी चूक?

रिपोर्ट के मुताबिक अप लाइन पर कोरोमंडल एक्सप्रेस को ग्रीन सिग्नल मिला हुआ था. जहां लूप लाइन यानी अप लाइन के बगल वाली लाइन पर एक मालगाड़ी खड़ी थी. दावा है कि अप लाइन से चेन्नई जाती कोरोमंडल एक्सप्रेस फुल स्पीड से लूप लाइन में घुस जाती है और लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी को टक्कर मारती है. 
 
भीषण टक्कर के बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस के 21 डिब्बे पलट जाते हैं और डाउन लाइन पर कुछ डिब्बे गिर जाते हैं और तभी डाउन लाइन पर आती यशवंतपुर हावड़ा सुपफास्ट एक्सप्रेस ने अपने ट्रैक पर गिरे डिब्बों को टक्कर मारी और इसके भी दो डिब्बे पटरी से उतर गए. 

मालगाड़ी में जा घुसी कोरोमंडल एक्सप्रेस

एक जांच रिपोर्ट में सामने आया है कि सिग्लन का इश्यू की वजह से कोरमंडल एक्सप्रेस सिग्नल देखने के बाद लूप लाइन में घुस गई. एक रेलवे स्टेशन पर कई ट्रैक अप लाइन, डाउन लाइन होती हैं. एक ट्रेन सामने से दूसरी तरफ से आती है. पहले ट्रेन आती है तो रुक जाती है. ग्रीन होकर ही आगे बढ़ती है. जो कोरोमंडल को ग्रीन देखकर अंदर तो आ गई. अप लाइन में आने की बजाए लूप लाइन में चली गई. 

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ऐसे में एक सवाल यह भी है कि देश में पटरी से ट्रेन के डिब्बे तो पहले भी उतरे हैं. फिर मौत का आंकड़ा इतना ज्यादा कैसे हो गया. यूं तो देश में पिछले साल 35 रेल हादसे हुए. जिसमें 25 ट्रेन के कोच पटरी से उतरे हैं. लेकिन कभी भी सिर्फ पटरी से कोच उतर जाने पर इतनी मौत नहीं देखी गई. तो इस बार ऐसा क्यों हुआ कि मौत का आंकड़ा 250 के पार चला गया? इसकी वजह भी हमने खोजी है.

आखिर मौत का आंकड़ा 250 के पार तक कैसे गया? 

पुरानी रिपोर्ट्स की मदद से समझा जाए तो इस ट्रेन में अक्सर बहुत ज्यादा भीड़ चलती है. संभव है कि हावड़ा से चेन्नई जाने वाली कोरोमंडल एक्सप्रेस में शुक्रवार को भी भारी भीड़ रही होगी. बता दें कि ऐसे लोग जो बंगाल और बिहार के हों और चेन्नई में लेबर का काम करने जाते हैं. उनकी सबसे ज्यादा तादाद इस ट्रेन में रहती है. 

अब अगला सवाल उठता है कि अगर एक ट्रेन के डिब्बे दूसरे ट्रैक पर गिरे हुए थे तो दूसरी ट्रेन क्यों नहीं रुकी? इस सवाल के जवाब में वंदे भारत ट्रेन के जनक कहे जाने वाले रिटायर्ड मैकेनिकल इंजीनियर सुधांशु मणि ने बताया कि 8.36 एक ट्रेन डीरेल हुई, तो दूसरी तरफ से आती ट्रेन को बचाने का टाइम नहीं मिला होगा. अगर दूसरी ट्रेन के लोको पायलट को कुछ मिनट भी मिल जाते तो शायद दूसरी ट्रेन कोरोमंडल में आकर न भिड़ती. 

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डटे रहे रेल मंत्री

हालांकि अभी इस मामले की जांच होनी बाकी है कि असल में चूक कहां हुई है. क्या सिर्फ सिग्नल की गड़बड़ी से इतना बड़ा हादसा हो गया या फिर तकनीकि खामियों ने ढाई सौ से ज्यादा घरों में मातम फैलाया. बताते चलें कि हादसे के बाद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव शनिवार को पूरे दिन वहीं रहे और रेल मंत्री ने खुद अपने सामने रेलवे ट्रैक की मरम्मत का काम भी कराया. उन्होंने कहा कि इस दुर्घटना की जड़ तक जाएंगे. ऐसी घटना दोबारा न हो, इसकी पूरी व्यवस्था की जाएगी. रेल मंत्री ने कहा कि हाईलेवल कमेटी बना दी है, जो पूरे एक्सीडेंट की जांच करेगी. कमिश्नर रेल सेफ्टी को बुलाया है, जांच करेंगे, रूट कॉज में जाएंगे.

यहां समझें कैसे हुआ हादसा-

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