झूठी याचिका दाखिल करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट सख्त, CBI को जांच का दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने भगवान सिंह के नाम पर झूठा हलफनामा और वकालतनामा दाखिल करने के मामले की जांच CBI को सौंपी. कोर्ट ने सीबीआई को दो महीने में जांच पूरी कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया. यह मामला रिंकी और सुखपाल की अपील पर आधारित है, जिसे भगवान सिंह ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी.

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सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 21 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:29 AM IST

भगवान के नाम पर झूठा हलफनामा और वकालतनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने के मामले की जांच अब सीबीआई करेगी. कोर्ट ने कहा कि सीबीआई दो महीने में जांच पूरी कर रिपोर्ट देगी. सीबीआई ये पड़ताल करेगी कि कोर्ट में चल रहे एक मुकदमे में असली वादी के नाम से अपील दाखिल करने से इनकार करने और अपने उस मामले की पैरवी करने के लिए किसी भी वकील को नियुक्त नहीं करने का प्रतिपक्षियों का दावा किसने कब और कैसे किया.

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सुप्रीम कोर्ट ने भगवान सिंह के नाम से झूठी याचिका दाखिल करने के मामले की जांच CBI को सौंपते हुए कहा कि इस मामले मे प्रतिवादी सुखपाल, रिंकी और उनके सहयोगियों ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को धोखा देने और न्याय प्रणाली की साख को दांव पर लगाने की कोशिश की है, क्योंकि उन्होंने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मे दाखिल किए जाने वाले दस्तावेजों को जाली बनाने के साथ भगवान सिंह के नाम पर उनकी जानकारी, सहमति के बिना दाखिल की गई झूठी कार्यवाही की साजिश की. लिहाजा इसकी जांच पड़ताल CBI को सौंपना उचित हैं.

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झूठे केस में किसी को फंसाना दंडनीय अपराध

कोर्ट ने कहा कि यह अफसोस की बात है कि कानून की प्रक्रिया का खुल्लमखुल्ला दुरुपयोग किया जा रहा है. जस्टिस बेला माधुर्य त्रिवेदी की अगुआई वाली पीठ ने कहा कि इस तरह की कार्यवाही में किसी को झूठा फंसाना भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत दंडनीय अपराध है.

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कोर्ट ने कहा कि यह न केवल उसे व्यक्ति के साथ धोखाधड़ी है जिसकी जानकारी के बिना याचिका दाखिल की गई बल्कि यह न्यायालय के साथ भी धोखाधड़ी है. कोर्ट धोखाधड़ी के साधन के रूप में इस्तेमाल होने की अनुमति नहीं दे सकता. वह ऐसा होने पर अपनी आंखें बंद कर नहीं बैठा रह सकता है. पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद नौ सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए यह संकेत दिया था कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश पारित करेगी कि वकीलों द्वारा अदालत की नजर में धोखाधड़ी करने की ऐसी घटना दोबारा न हो.

साथ ही कोर्ट ने वकीलों की माफी स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा था कि कोर्ट उनके लिए कोई नरमी नहीं बरतने वाले हैं. दरअसल जुलाई में यह मामला तब सामने आया जब एक वादी भगवान सिंह ने भरी अदालत में कहा कि वह उन वकीलों में से किसी को नहीं जानता जो सुप्रीम कोर्ट में उसका प्रतिनिधित्व करने का दावा कर रहे हैं.

बेटी के अपहरण का दर्ज कराया था मामला

दरअसल भगवान सिंह ने अपनी बेटी रिंकी के अपहरण को लेकर एक मामला दर्ज कराया. वहीं जब इस मामले में रिंकी का बयान सामने आया तो रिंकी ने बताया कि वह सुखपाल के साथ खुद की मर्जी से गई थी. साथ ही उसने यह भी दावा किया कि जब वह सुखपाल के साथ भागी थी. उसी दौरान अजय कटारा ने उसका बलात्कार किया था.

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हालांकि, हाईकोर्ट में जब यह मामला आया तो वहां हाईकोर्ट ने अजय कटारा को बलात्कार के केस से बरी करने का आदेश दिया. हाईकोर्ट के इस आदेश को रीकॉल करने की अर्जी दाखिल की जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया. अब हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिंकी के पिता भगवान सिंह के नाम से अपील दाखिल की गई और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए यूपी सरकार को नोटिस जारी किया.

भगवान सिंह पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के द्वारा नोटिस जारी किए जाने के लगभग एक महीने के बाद रिंकी के पिता भगवान सिंह की तरफ से सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को पत्र लिखकर कहा गया है कि उन्होंने ऐसी कोई अपील दाखिल करने का कोई हलफनामा या हस्ताक्षर ही किया है और ना ही अपने इस मामले की पैरवी के लिए कोई वकील ही नियुक्त किया है.

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उन्होंने रजिस्ट्री को लिखे गए पत्र में यह भी दावा किया कि किसी और ने साजिश के तहत याचिका दाखिल की है और ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की. जहां रिंकी और सुखपाल ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि भगवान सिंह ने खुद ही SLP दाखिल करने के लिए वकालतनामा के कागजात उन्हें दिए थे.

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वहीं भगवान सिंह की ओर से इसका खंडन करते हुए कहा कि वह अपनी बेटी और उसके पति से तीन साल से नहीं मिले हैं. वहीं पीठ को यह भी बताया गया कि SLP नोटरी की हुई है, लेकिन नोटरी भगवान सिंह की मौजूदगी में नहीं किया गया था. फिलहाल CBI इस मामले की जांच कर दो महीने में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपेगी.

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