सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को उस याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें चुनाव के बीच चुनावी बॉन्ड (इलेक्टोरल बॉन्ड) की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की गई थी. ADR की ओर से दाखिल याचिका पर वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा इलेक्टोरल बॉन्ड सत्ताधारी दल को चंदे के नाम पर रिश्वत देकर अपने काम कराने का जरिया बन गया है. वहीं चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह चुनावी बॉन्ड योजना का समर्थन करता है.
इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि हमेशा ये रिश्वत का चंदा सत्ताधारी दल को ही नहीं बल्कि उस दल को भी चंदा मिलता है, जिसके अगली बार सत्ता में आने के आसार प्रबल रहते हैं.
प्रशांत भूषण ने कहा की रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने भी इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. क्योंकि आरबीआई का कहना है कि बॉन्ड्स का सिस्टम आर्थिक घपले का एक तरह का हथियार या जरिया है. कई लोग देश-विदेशों में पैसे इकट्ठा कर औने-पौने इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकते हैं. ये दरअसल सरकारों के काले धन के खिलाफ कथित मुहिम की सच्चाई बयान करता है, बल्कि उनकी साख पर भी सवाल खड़े करता है.
सीजेआई ने पूछा जब कोई इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद रहा होता है तो क्या वो ये घोषित करता है कि खरीदने में इस्तेमाल रकम उसकी घोषित संपत्ति का हिस्सा है? इस पर AG केके वेणुगोपाल ने कहा कि वह अपने बैंक खाते से चेक के जरिए खरीदता है. कोर्ट ने फिर पूछा- हमारा सवाल है कि वो रकम खरीदने वाले की आयकर घोषणा के तहत होती है या फिर अघोषित धन का हिस्सा?
इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि अक्सर लोग नकद भुगतान से भी खरीदते हैं. जबकि AG वेणुगोपाल ने कह कि खरीदने वाले को डिस्क्लोजर देना होता है.
कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई बॉन्ड खरीद कर आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुंचा सकता है? क्या ऐसा संभव है? तो इस पर सॉलिसीटर जनरल (SG) ने कहा कि सिर्फ राजनीतिक दल ही उसे कैश करा सकते हैं.
CJI ने पूछा कि लेकिन कुछ पार्टियों के गुप्त एजेंडे में किसी आतंकवादी मुहिम, किसी विरोध प्रदर्शन की आड़ मे हिंसा फैलाने की मुहिम को स्पॉन्सर करें तो? क्योंकि कई पार्टियों का ऐसा घोषित अघोषित एजेंडा रहता है. इस पर AG केके वेणुगोपाल ने कहा कि सभी पार्टियां सालाना आय-व्यय का ब्योरा निर्वाचन आयोग को देती हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से सालाना इनकम टैक्स रिटर्न भी जमा करती हैं.
वहीं चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह चुनावी बॉन्ड योजना का समर्थन करता है, क्योंकि अगर ये नही होगा तो राजनितिक पार्टियों को नगद चंदा मिलेगा. चुनाव आयोग ने कहा कि हालांकि, वह चुनावी बॉन्ड योजना में और पारदर्शिता चाहता है.
फिलहाल चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है. कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया. कोर्ट ने पक्षकारों से कहा कि वो चाहें तो लिखित दलील कोर्ट के पास भिजवा सकते हैं.
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संजय शर्मा / अनीषा माथुर