'दो महीने में 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को जारी करें राशन कार्ड', SC का राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश

पीठ ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि केंद्र कुछ नहीं कर रहा है. भारत ने कोविड के दौरान यह सुनिश्चित किया कि लोगों तक राशन पहुंचे. यह अभी तक जारी है. हमारी संस्कृति में यह सुनिश्चित करना शामिल है कि कोई भी खाली पेट न सोए.

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सुप्रीम कोर्ट का राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 2 महीने में 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड जारी करने का निर्देश. (प्रतीकात्मक तस्वीर) सुप्रीम कोर्ट का राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 2 महीने में 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को राशन कार्ड जारी करने का निर्देश. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

कनु सारदा

  • नई दिल्ली,
  • 27 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 2:30 PM IST

सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाने के लिए ईश्रम पोर्टल (eShram Portal) पर पंजीकृत 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 2 महीने के भीतर उन्हें राशन कार्ड जारी करने का निर्देश दिया है. न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने आदेशों के अनुपालन से पहले सभी 8 करोड़ प्रवासी श्रमिकों के लिए ईकेवाईसी अपडेट करने की आवश्यकता के मद्देनजर राशन कार्ड जारी करने में अनावश्यक देरी पर चिंता व्यक्त की.

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पीठ ने कहा कि ईश्रम पोर्टल पर रजिस्टर प्रवासी श्रमिकों का राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) लाभार्थियों के साथ मिलान पहले ही किया जा चुका है और उस आधार पर यह पाया गया कि 8 करोड़ लोगों के पास राशन कार्ड नहीं हैं, जिस कारण उन्हें सस्ते दाम पर राशन प्राप्त करने का लाभ नहीं मिल रहा है. अदालत ने यह भी कहा कि ईकेवाईसी की कोई भी प्रक्रिया जो केंद्र करना चाहता है वह उसी समय होनी चाहिए और राशन कार्ड जारी करने के में यह बाधा नहीं बननी चाहिए.

अगली सुनवाई 16 जुलाई को

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनएफएसए की धारा 3 में परिभाषित कोटा के तहत राशन कार्ड जारी किए जाने चाहिए. इसमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत पात्र परिवारों को रियायती मूल्य पर खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार है. पीठ ने कहा, 'वर्तमान में, राज्य सरकारें/केंद्र शासित प्रदेश राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की धारा 3(2) के तहत राशन कार्ड जारी करें. इसके प्रभाव की जांच बाद के चरण में की जाएगी'. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई की अगली तारीख 16 जुलाई तय की.  

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पीठ ने कहा, 'यह सुनिश्चित करना केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अंतिम व्यक्ति तक राशन पहुंचे. हम यह नहीं कह रहे हैं कि केंद्र कुछ नहीं कर रहा है. भारत ने कोविड के दौरान यह सुनिश्चित किया कि लोगों तक राशन पहुंचे. यह अभी तक जारी है. हमारी संस्कृति में यह सुनिश्चित करना शामिल है कि कोई भी खाली पेट न सोए'. अदालत कोविड महामारी और उसके परिणामस्वरूप हुए लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है.

सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज, हर्ष मंदर और जगदीप छोकर की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि 2011 की जनगणना के बाद देश की जनसंख्या में वृद्धि हुई है और एनएफएसए के तहत कवर किए गए लाभार्थियों की संख्या भी बढ़ी है. मामले में याचिकाकर्ताओं ने 2011 की जनगणना के पुराने आंकड़ों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि 10 करोड़ से अधिक श्रमिक को खाद्य सुरक्षा अधिनियम से बाहर हो सकते हैं. और जनसंख्या वृद्धि के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं. 

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