अब समय है कि मानहानि को अपराध की श्रेणी से हटाया जाए: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने मानहानि को आपराधिक अपराध के रूप में बनाए रखने का समय समाप्त हो जाने का संकेत दिया और इसे अपराध की श्रेणी से हटाने की आवश्यकता पर जोर दिया है. यह टिप्पणी 2016 के फैसले से महत्वपूर्ण बदलाव है, जिसमें कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 499 को मानहानि का आधार माना था.

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सर्वोच्च न्यायालय ने मानहानि कानून पर बड़ा बयान दिया (Photo: sci.gov.in) सर्वोच्च न्यायालय ने मानहानि कानून पर बड़ा बयान दिया (Photo: sci.gov.in)

सृष्टि ओझा

  • नई दिल्ली,
  • 22 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:55 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को टिप्पणी की है कि अब समय आ गया है कि मानहानि के मामलों को क्रिमिनल ऑफेंस से हटाया जाए. इससे पहले साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि ये क़ानून सही है और मानहानि का अधिकार भी जीवन के अधिकार का हिस्सा है. उस समय आईपीसी की धारा 499 के तहत मानहानि अपराध थी. अब यह धारा बदल गया है और भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 के तहत यह अब भी मानहानि को अपराध मानती है. 

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हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट अब मानहानि को अपराध मानने से फिर से विचार कर रहा है क्योंकि आज के समय में अभिव्यक्ति की आजाती और मीडिया का रोल अहम है. कोर्ट ने कहा कि इसे सुधारने की ज़रूरत है और ताकि लोगों की बोलने की आजादी बनी रहे. 

सुप्रीम कोर्ट के द्वार यह सुझाव तब दिया गया है जब न्यूज पोर्टल 'द वायर' के ख़िलाफ़ एक आपराधिक मानहानि मामले में जजमेंट पर सुनवाई हो रही थी.

क्या है पूरा मामला?

साल 2016 में न्यूज पोर्टल 'द वायर' के ख़िलाफ़ JNU के एक प्रोफेसर द्वारा आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज करवाया गया था. याचिका में मैजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन को चुनौती दी गई थी, जिसे बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था. सुप्रीम कोर्ट ने मानहानि मामले में 'द वायर' को जारी समन को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है. 

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सुनवाई के दौरान जस्टिस एम.एम. सुंदरश ने कहा कि अब समय आ गया है कि इसे अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए. 

सुप्रीम कोर्ट में न्यूज पोर्टल 'द वायर' का पक्ष सिनियर एडवोकेट कपिल सिबल रख रहे थे.

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