SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अग्रिम जमानत पर लगाई कड़ी शर्तें

सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत पर एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि जमानत तभी मिलेगी, जब यह प्रथम दृष्टया सिद्ध हो जाए कि कोई अपराध नहीं हुआ है.

Advertisement
सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट मामलों में अग्रिम जमानत पर लगाई सख्त शर्तें (File Photo: PTI) सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट मामलों में अग्रिम जमानत पर लगाई सख्त शर्तें (File Photo: PTI)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 04 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:05 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (SC/ST) अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत तभी स्वीकार्य है, जब यह साबित हो जाए कि इस अधिनियम के तहत कोई अपराध नहीं बना है. यह फैसला चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के.वी. चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की बेंच ने दिया. बेंच ने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने वाले आदेश को रद्द कर दिया.

Advertisement

यह फैसला एक शिकायतकर्ता की अपील पर दिया गया, जिसने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसे सार्वजनिक रूप से जातिसूचक गालियां देकर अपमानित किया और लोहे की छड़ से पीटा. 

शिकायतकर्ता की मां और चाची के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया गया था. जस्टिस अंजारिया द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया है कि प्रथम दृष्टया मामला SC/ST अधिनियम की धारा 3 के तहत दंडनीय अपराध के तत्वों के आधार पर बनता है.

अपमान और धमकी...

आरोपी ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता को उसके जाति के नाम से अपमानित किया था. इसके साथ ही घर जलाने की धमकी भी दी थी. 'मंगत्यानो' शब्द का इस्तेमाल साफ तौर से शिकायतकर्ता को अपमानित करने के इरादे से किया गया था. यह अपमान इसलिए किया गया क्योंकि शिकायतकर्ता ने आरोपी की इच्छा के मुताबिक विधानसभा चुनाव में एक विशेष उम्मीदवार को वोट नहीं दिया था.

Advertisement

यह भी पढ़ें: PM और RSS पर 'आपत्तिजनक' कार्टून का मामला, सुप्रीम कोर्ट ने कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय को दी अग्रिम जमानत

अदालत ने यह साफ किया कि पहली नजर में यह मामला बनता है या नहीं, यह तय करते वक्त अदालतें 'मिनी-ट्रायल' करके साक्ष्य के दायरे में प्रवेश नहीं कर सकतीं. कोर्ट ने कहा कि अपराध का प्रथम दृष्टया न बनना एक ऐसी स्थिति है, जहां कोर्ट सिर्फ एफआईआर में दिए गए बयानों को पढ़कर ही इस नतीजे पर पहुंच सकती है. इस संबंध में एफआईआर में दिए गए आरोप निर्णायक होंगे.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement