राज्यसभा में संस्कृत ने बनाई मजबूत पकड़, पांचवें नंबर पर पहुंची

राज्यसभा में क्षेत्रीय भाषाओं का सदस्यों द्वारा जमकर प्रयोग किया जा रहा है. खास बात ये है कि विलुप्त होती जा रही भाषा संस्कृत ने राज्यसभा में मजबूत पकड़ बना ली है. सदन की कार्यवाही के दौरान संस्कृत का प्रयोग बेहद तेजी से बढ़ा है.

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राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू (फाइल फोटो) राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू (फाइल फोटो)

हिमांशु मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 16 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 1:29 PM IST
  • राज्यसभा में 5वीं भाषा के रूप में उभरी संस्कृत
  • क्षेत्रीय भाषा का उपयोग राज्यसभा में 512 प्रतिशत बढ़ा
  • 12 हस्तक्षेप किये गए संस्कृत में

राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं में संस्कृत ने अपनी पकड़ मजबूत बना ली है. 2019-20 के दौरान संस्कृत भाषा में 19 सदस्यों ने अपने विचार रखे. साफ शब्दों में कहा जाए तो राज्यसभा में संस्कृत भाषा 5वीं भाषा के रूप में उभरी है. 2018-20 के दौरान सदस्यों ने 22 में से 10 भाषाओं में अपने विचार रखे. 

अगस्त 2017 में राज्यसभा का अध्यक्ष बनने पर एम वेंकैया नायडू ने सदन के सदस्यों को अपनी मातृभाषा में अपने विचार रखने के लिए प्रस्ताव पारित किया. इसके पीछे की सोच ये थी, कि क्षेत्रीय भाषा में सदस्य अपने विचारों को आसानी से आदान प्रदान कर सकते हैं, जबकि दूसरा भाषा में उन्हें अपने विचारों को रखने में कठिनाई होती है. 

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इसके बाद से राज्यसभा में क्षेत्रीय भाषा में सदस्यों ने अपने विचार रखने शुरू किए. 2018 से 2020 के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही में क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग कई गुना बढ़ा है. इस अवधि के दौरान डोगरी, कश्मीरी, कोंकणी और संथाली का उपयोग भी सदन में पहली बार किया गया. इसके अलावा छह अन्य भाषाएं असमिया, बोडो, गुजराती, मैथिली, मणिपुरी और नेपाली भाषा का उपयोग भी लंबे समय के बाद सदन में किया गया. 

सदन की कार्यवाही के दौरान हिंदी और अंग्रेजी भाषा सबसे अधिक बोली जाती हैं. हिंदी के अलावा 21 अन्य भाषाओं की बात की जाये, तो 14 वर्ष की अवधि में इन भाषाओं का उपयोग पांच गुना 512 प्रतिशत तक बढ़ गया है.  

राज्यसभा सदस्यों ने 2004 से 2017 के बीच 269 मौकों पर हिंदी के अलावा प्रतिवर्ष 0.291 प्रति बैठक की दर  से 923 बैठकों के दौरान 10 अन्य भाषाओं में बात की. वहीं 2020 में 49 हस्तक्षेप क्षेत्रीय भाषाओं में हुए. साफ शब्दों में समझें तो 33 बैठकों के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग में 512 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 

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2013-17 के दौरान हुईं 329 सभाओं में सदस्यों ने 96 बार केवल 10 क्षेत्रीय भाषाओं में बात की, जो बहस तक सीमित रही. 2018-20 के दौरान 163 बैठकों में क्षेत्रीय भाषा का उपयोग 135 बार किया गया, जिसमें 66 हस्तक्षेप बहस में, 62 शून्य काल में और 7 विशेष उल्लेख शामिल रहे. 22 अनुसूचित भाषाओं में से चार डोगरी, कश्मीरी, कोंकणी और संथाली का उपयोग पहली बार सदन में 1952 के बाद से किया गया. 

 क्षेत्रीय भाषाओं का इस क्रम में हुआ प्रयोग

सदन की कार्यवाही के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग 2013 से 2017 तक 329 बैठकों में और 2018 से 2020 के दौरान 163 बैठकों में किया गया. संस्कृत की बात करें तो 2019 से 2020 के दौरान 12 हस्तक्षेप इस भाषा में किये गए. जिसके बाद हिंदी, तेलुगू, उर्दू और तमिल के बाद आने वाली 22 अनुसूचित भाषाओं में से संस्कृत पांचवी व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के रूप में उभरी है.

 

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