शंटिंग ऑपरेशन के दौरान इंजन और ट्रेन के कोच के बफर्स के बीच फंसने से शनिवार को एक रेलवे कर्मचारी की कुचलकर मौत हो गई. बिहार के बरौनी जंक्शन स्टेशन पर हुई इस दर्दनाक घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसमें भारतीय रेल परिचालन में कर्मचारियों की सुरक्षा और पुरानी मैनुअल कपलिंग प्रणाली पर गंभीर चिंता जताई गई है. रेल मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक, 2019 से नवंबर 2023 के बीच कम से कम 361 रेलवे कर्मचारियों की ड्यूटी के दौरान मौत हो गई.
प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में दुर्घटना के पीछे मैनुअल कपलिंग प्रक्रिया के दौरान दो पॉइंट्समैन के बीच कॉर्डिनेशन की कमी को कारण बताया गया है. कथित तौर पर एक पॉइंट्समैन ने लोको ड्राइवर को गलत सिग्नल दिया, जिसके कारण लोको के बीच काम कर रहे दूसरे पॉइंट्समैन की मौत हो गई. लेकिन इस घटना के बाद देश में ट्रेन के डिब्बों या इंजन को जोड़ने के लिए अपनाई जा रही तकनीक पर भी सवाल उठ रहे हैं.
तमाम मीडिया रिपोर्टों से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि अकेले 2024 में मैनुअल कपलिंग से संबंधित कम से कम 13 घटनाएं हुईं, जिनमें कम से कम सात रेलवे कर्मचारियों की जान चली गई.
वर्तमान कपलिंग प्रक्रिया में कॉर्डिनेशन का तरीका संबंधित ट्रैक मेंटेनर को दिए जाने वाले 'मैनुअल शंट सिग्नल और झंडे' है. भारतीय रेलवे के सूत्रों ने आजतक को बताया, “लाल और हरे झंडे के साथ-साथ हाथ के सिग्नल का भी इस्तेमाल किया जाता है.”
यह घटना ट्रैक मेंटेनर्स के लिए भारतीय रेलवे के सुरक्षा उपायों पर फिर से ध्यान केंद्रित करती है, जिसमें 2018 में शुरू किया गया रक्षक नामक कॉर्डिनेशन उपकरण भी शामिल है. हैंडहेल्ड वॉकी-टॉकी डिवाइस के रूप में डिजाइन किया गया, यह एडवांस सिस्टम ट्रैक कर्मचारियों को उनकी लाइन पर आने वाली ट्रेनों के बारे में चेतावनी देने के लिए एलईडी लाइट, बजर और कंपन अलर्ट का उपयोग करता है.
मानक सुरक्षात्मक गियर जैसे कि जूते, दस्ताने, रेनकोट, जैकेट और टूलकिट के साथ, रक्षक डिवाइस भी कुछ मार्गों पर ट्रैक रखरखाव श्रमिकों को दिए जाते हैं. लेकिन इस डिवाइस की भी सीमाएं हैं. सूत्रों ने बताया कि रक्षक केवल एक "अतिरिक्त सुरक्षा डिवाइस" बना हुआ है, जबकि रेलवे ट्रैक मेंटेनर्स की व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए IRPWM (भारतीय रेलवे स्थायी मार्ग मैनुअल) प्रावधानों पर निर्भर रहना जारी रखता है.
एक सूत्र ने बताया, "रक्षक गोल्डन क्वाडिलेटरल-गोल्ड डायगनल रूट्स पर ट्रैक मैंटेनर्स के लिए वीएचएफ (वेरी हाई फ्रिव्केंसी) आधारित एप्रोचिंग ट्रेन वार्निंग सिस्टम है, जिसे को 2018 में मंजूरी दी गई थी. हालांकि, फील्ड में इसके इस्लेमाल होने पर इसकी सीमित सीमाओं के बारे में जानकारी हुई. यह मल्टी-लाइन सेक्शन या स्वचालित सिग्नलिंग ब्लॉक में काम नहीं करता है, लाइन-ऑफ-विजन पर निर्भर करता है और पहाड़ी इलाकों, घाट सेक्शन, घने जंगलों, इमारतों, मोड़ और छाया क्षेत्रों में भी काम नहीं करता है. इसका प्रदर्शन एंटीना की दिशा और ऊंचाई पर भी निर्भर करता है."
भारतीय रेलवे में कपलिंग विधियां
स्क्रू कपलिंग का उपयोग आईआरएस वैगनों और आईसीएफ (इंटीग्रल कोच फैक्ट्री) द्वारा डिजाइन किए गए कोचों में किया जाता है, जिनका इस्तेमाल अधिकतर भारत में किया जाता है. इसके लिए एक ट्रेन डिब्बे (या इंजन) को पार्क किए जाने की आवश्यकता होती है, जबकि ट्रैक वर्कर मैन्युअल रूप से ट्रेनों को जोड़ता है. गाड़ी आगे बढ़ती है, घूमने वाले पोर को संरेखित करती है, जो एक पिन के साथ घूमते हैं और लॉक होती है, जबकि शॉक-एब्जॉर्बिंग बफर्स कनेक्शन को स्थिर करने के लिए मिलते हैं.
रेल कर्मचारियों को डिब्बों के बीच खड़े होने की जरूरत होती है जब वे एक साथ आते हैं और लिंक को कपलर पॉकेट में ले जाते हैं. उन्हें डिब्बों के एक साथ आने के बाद लिंक को जगह पर रखने के लिए पिन डालनी होती है. यह प्रक्रिया श्रमिकों के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा करती है. यही कारण है कि धीरे-धीरे ये प्रक्रिया दुनिया के देशों में अब बंद हो चुकी है.
भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले स्क्रू कपलिंग का दूसरा विकल्प सेंट्रल बफर कपलिंग सिस्टम है, जिसका इस्तेमाल एलएचबी (लिंक-हॉफमैन-बुश) प्रकार के कोचों में किया जाता है.
भारतीय रेलवे धीरे-धीरे ICF कोचों की जगह LHB कोच लगा रहा है, जो स्क्रू कपलिंग के बजाय सेंट्रल बफर कपलिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं. LHB कोच, अपनी एंटी-क्लाइम्बिंग विशेषता के लिए जाने जाते हैं जो दुर्घटनाओं में एक के ऊपर एक करके चढ़ने से बचाते हैं. ये पारंपरिक कोचों की तुलना में अधिक सुरक्षित, तेज और अधिक आरामदायक होने के लिए डिजाइन किए गए हैं.
हालांकि, यह सेंट्रल बफर कपलिंग (CBC) सिस्टम कपलिंग के लिए स्वचालित है, लेकिन अनकपलिंग के लिए मैनुअल है, जिसका मतलब है कि शंटिंग प्रक्रिया में मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है.
एडवांस कपलिंग प्रक्रियाएं
यूरोपीय देशों में विकसित की जा रही नवीनतम कपलिंग विधि डिजिटल ऑटोमेटिक कपलिंग (DAC) है. यह जर्मनी, ऑस्ट्रिया और स्विटजरलैंड में ट्रेनों की संख्या बढ़ाने के लिए अपनाई जा रही रेल माल परिवहन की डिजिटलीकरण प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण घटक है.
वर्तमान में, जर्मनी में अधिकांश ट्रेनें अल्बर्ट कपलिंग विधि का उपयोग करती हैं जो एक प्रकार का चुंबकीय कपलिंग है, जिसमें शून्य मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है. अमेरिका में जेनी कपलर नामक केंद्र बफर कपलिंग का एक अधिक परिष्कृत रूप उपयोग किया जाता है जो बिना किसी मनुष्य की सहायता के बोगियों को जोड़ता और अलग करता है.
वहीं फ्रांस में आमतौर पर शारफेनबर्ग कपलर नामक इलेक्ट्रिक और वायवीय कनेक्शन और डिस्कनेक्शन का उपयोग करने वाली एक पूरी तरह से स्वचालित रेलवे कपलिंग विधि का इस्तेमाल किया जाता है.
बिदिशा साहा / पीयूष मिश्रा