पहले पेजर फटे, फिर वॉकी-टॉकी और इसके बाद तो सिलसिला सा चल निकला. इजरायल-हमास वॉर की आग इन धमाकों के साथ लेबनान और सीरिया तक पहुंच गई. आलम ये है कि पेजर के बाद फोन, मोबाइल और यहां तक की सोलर पैनल तक ब्लास्ट हो रहे हैं. बड़ी तादाद में हुए इन धमाकों में मरने वालों की संख्या बेशक कम है, लेकिन घायल हजारों में हैं और इससे भी कहीं ज्यादा है धमाकों की दहशत.
इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद के जब ऐसे अभियानों की बात निकलती है तो दूर तक जाती है और फिर मोसाद के ही कई पुराने मिशन भी याद कर लिए जाते हैं. भारत में भी रॉ खुफिया मिशन को अंजाम देती रही है, जो अब इतिहास है. इतिहास में युद्धों-लड़ाइयों वाले किस्सों की तो भरमार है और जब-जब युद्ध कौशल का जिक्र होता है तो गुप्तचरी, जासूसी, खुफिया तंत्र उसके प्रमुख हिस्से रहे हैं. आमतौर पर इसे छल कहा जाता है, लेकिन प्रसिद्ध कहावत है कि युद्ध और प्रेम में सब जायज है. तो अगर युद्ध जायज है तो जासूसी भी जायज है और भारतीय इतिहास जिसका सिरा लेकर आगे बढ़ें तो वह पुराणों तक पहुंच जाता है, उन कहानियों में भी जासूसी अभियान घटनाक्रम का प्रमुख हिस्सा रहे हैं.
हनुमान जी का लंका जाना
सबसे मानक और प्रसिद्ध पौराणिक गाथा रामायण को ही लें तो इसमें जगह-जगह कई जासूसी और खुफिया मिशन मिलते हैं. हनुमानजी का लंका जाना एक बड़ा जासूसी मिशन ही था. इसके साथ ही हनुमान जी ने खुफिया तरीके से रावण के सैन्य बल, शस्त्रागार, कोषागार की पूरी जानकारी ली. किलेबंदी कहां-कहां से है और हर द्वार का प्रमुख रक्षक कौन है, उन्होंने इन सबकी पूरी कुंडली खंगाली. उन्होंने किले की रक्षिका और लंका के प्रवेश द्वार की बड़ी सैन्य चौकी पर मौजूद कमांडर लंकिनी को पहले ही मार गिराया. इसके अलावा रावण के पुत्र अक्ष कुमार को भी मार दिया. लंका दहन करके हनुमानजी ने रावण के शस्त्रागार को जला दिया था और सैन्य बल को काफी कम कर दिया था.
रावण ने अहि-महि से कराई थी राम-लक्ष्मण की किडनैपिंग
रामायण में ही अहि रावण और महि रावण नाम के असुरों का जिक्र मिलता है, जिन्होंने युद्ध के बीच ही शिविर से राम-लक्ष्मण का अपहरण कर लिया था. ये रावण की ओर से कराया गया बड़ा खुफिया ऑपरेशन था, जिसमें दुश्मन के घर में घुसकर उनके मुखिया की ही किडनैपिंग को अंजाम दिया गया था. रावण के इस बड़े कदम का रामदल की ओर से करारा जवाब दिया गया. इसके लिए हनुमानजी समुद्र के रास्ते पाताल गए. यहां उनकी मुठभेड़ अहि रावण और महि रावण के अंगरक्षक से हुई.
यह कोई और नहीं, बल्कि मकरध्वज था, जिसके जैविक पिता हनुमानजी ही थे. जब दोनों का आमना-सामना हुआ तो युद्ध के दौरान ही मकरध्वज को अपने पिता के बारे में पता चला. इस तरह दुश्मन का सबसे बड़ा राजदार अपने दल में आ गया. मकरध्वज ने हनुमान को अहि रावण और महि रावण के गुप्त पूजा स्थल की जानकारी दी. हनुमान वहां पहुंचे जहां अहि-महि पाताल देवी की पूजा कर रहे थे और राम-लक्ष्मण की बलि चढ़ाने की तैयारी कर रहे थे. हनुमान ने चुपके से माता की प्रतिमा वहां से हटा दी और खुद प्रतिमा बनकर खड़े हो गए. जैसे ही अहि-महि ने कहा, बलि स्वीकार करो देवी, हनुमान ने दोनों की गर्दन मरोड़ दी.
रावण ने कराई थी रामदल की जासूसी, लेकिन पकड़ा गया था जासूस
रामायण में एक और जासूसी प्रकरण का जिक्र मिलता है. युद्ध के शुरू होने से पहले रावण का एक गुप्तचर जिसका नाम शुक था, उसे सागर किनारे डेरा डाले रामदल मे भेजा था. शुक एक पक्षी का रूप धरकर श्रीराम के शिविर में पहुंचा और चारों तरफ घूम-घूम कर रेकी कर रहा था. हनुमान और जांबवंत को उस पर कुछ शक हुआ, लेकिन विभीषण ने उसे देखकर पहचान लिया था. वहीं, शुक ने सुग्रीव और अंगद को भी अपनी ओर मिलाने की कोशिश की थी. जब उसकी पोल खुल गई तो वानर सेना ने उसे मारना चाहा, तब श्रीराम ने उन्हें रोक लिया और कहा, गुप्तचर भी अतिथि होता है, इन्हें सम्मान के साथ पूरा शिविर घुमाओ और सम्मान सहित ही वापस भेज दो. रावण की ये जासूसी चाल फेल हो गई थी.
महाभारत का लाक्षागृह भी था खुफिया मिशन, जो फेल रहा
महाभारत का जिक्र करें तो यह तो पौराणिक काल में होने वाले सबसे भीषण महायुद्ध की गाथा है. गुप्तचर अभियानों का होना तो इस गाथा का महत्वपूर्ण हिस्सा है. महाभारत में लाक्षागृह की घटना बड़े जासूसी अभियान के तौर पर सामने आती है. पांडव वारणावत ग्राम में एक शिव मंदिर की स्थापना और वसंत के मौसम में लगने वाले बड़े फागुन मेले को देखने जा रहे थे. यह उनकी एक मास की विश्राम यात्रा भी थी. आम तौर पर हर साल इस मेले का उद्घाटन करने खुद धृतराष्ट्र जाते थे, लेकिन इस बार शकुनि ने चालबाजी से कहा कि अब युधिष्ठिर युवराज हैं तो उन्हें भी महाराज के दायित्व और कर्तव्य समझने होंगे. इस तरह उसने पूरे पांडव परिवार को वारणावत भेजने का प्लान तैयार कर लिया.
क्या था शकुनि का प्लान?
वारणावात में शकुनि ने पांडवों के रहने के लिए छह महीने पहले से ही एक छोटा लेकिन भव्य भवन तैयार करने की योजना बना ली थी. उसने अपने ही एक एजेंट पुरोचन को कॉट्रैक्टर बनाकर धृतराष्ट्र के पास भेजा, जिसने इसके लिए टेंडर भी हासिल कर लिया. फिर पुरोचन ने पटसन, लाख, जूट, घी जैसे ज्वलनशील पदार्थों का इस्तेमाल भवन बनाने में किया. इसके अलावा उसने अपने ही लोगों को भवन में सेवक-सेविकाओं के तौर पर रखवा दिया. इसे पूरे घटनाक्रम को महाभारत काल के एक बड़े गुप्त षड्यंत्र के तौर पर देखा जाता है, जिसकी तैयारी महीनों पहले से हो रही थी. योजना थी कि लाख के महल में पांडवों को कुंती समेत जलाकर भस्म कर दिया जाए.
लेकिन विदुर ने समझ लिया था शकुनि का खेल
हालांकि शकुनि की इस चाल को जिस बारीकी से विफल किया गया, वह भी इसके जवाब में की गई बड़ी कूटनीतिक गतिविधि थी. शास्त्रों में इसे विदुर नीति कहा गया है. विदुर हस्तिनापुर के महामंत्री थे. एक दिन वह वारणावत मेले की तैयारियों को लेकर समीक्षा बैठक कर रहे थे. इस दौरान उन्हें महसूस हुआ कि मेला परिसर में कच्चे सन की खेप अधिक पहुंच रही है. इसके अलावा घी और लाख भी गाड़ी भर-भरकर पहुंचाए जा रहे थे. उन्होंने जब पूछताछ की तो घी की खपत पकवानों के लिए बताई गई. विदुर इससे संतुष्ट नहीं हुए. उन्होंने गुप्तचरों से इसका पता लगवाया.
विदुर की पांच गुप्त पहेलियां
विदुर को गुप्तचरों से पूरी साजिश पता चल गई थी, लेकिन वह इसके पीछे के चेहरे को अच्छी तरह पहचानना चाहते थे. इसलिए उन्होंने पांडव परिवार को वारणावत जाने से नहीं रोका, लेकिन वह युधिष्ठिर को सचेत करना चाहते थे. उन्हें कोई ऐसा मौका नहीं मिल रहा था कि जिसमें वह युधिष्ठिर को इसकी जानकारी दे सकें, इसलिए आखिरी दिन जब पांडव वारणावत के लिए जाने ही वाले थे तो उन्होंने कौरव-पांडवों के बीच यूं ही पहेलियों का खेल करवाया.
इसी दौरान उन्होंने युधिष्ठिर से कोडवर्ड में पांच बातें कहीं.
1. ये अमलतास फूलने की ऋतु है और जब ये फूलते हैं तो लगता है कि जंगल में आग लगी हुई है.
2. लेकिन जंगल की आग से बचता कौन है? वो जो बिल में रहता है.
3. रात अमावस की है तो प्रकाश कैसा?
4. लेकिन सुबह का प्रकाश सबसे पहले देखना
5. सब पुराना छोड़ दो, नए की ओर बढ़ो
"जले वञ्च्छसि दुर्धर्षाः शत्रवस्त्वां न हिंस्युः।
न चाग्निर्दहते त्वां च नैव शुष्काणि वायसाः।।" (महाभारत, आदिपर्व, 135.10)
जले वञ्चयितव्योऽग्निः, पर्वतो वञ्चयेत् पतन्।
अन्धे नदति मातङ्गे, शारदः शीघ्रमागतः।। (महाभारत, आदिपर्व, 142.7)
येनारण्ये त्वमग्निस्थं पाषाणे पतितं वने।
चरन्तं कण्टकैर्युक्तं प्राज्ञः संप्रक्षिपेत् प्रियः।। (महाभारत, आदिपर्व, 142.8)
(वन में आग से बचो, गिरते हुए पर्वत से बचो, अंधे हाथी के बीच मत फंसो और शरद ऋतु के जल्दी आगमन को पहचानो, यदि तुम जल में रहोगे तो कोई शत्रु तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा, न ही अग्नि तुम्हें जला सकेगी और न ही सूखे लकड़ी जैसे खतरे तुम्हें प्रभावित करेंगे, जो तुम्हें मार्ग में या जंगल में फंसे हुए, विनाश से घिरे हुए बचाएगा, वही धर्मज्ञ है, और उसे समय पर पहचान लेना )
पांडव जब वारणावत पहुंचे तो युधिष्ठिर और अर्जुन इस बारे में सोचने लगे कि आखिर विदुर काका ने चलते-चलते ये पहेलियां क्यों बूझीं? युधिष्ठिर ने कहा कि, पता नहीं अभी तो उनकी बात समझ नहीं आ रही है, लेकिन आज से हम पांचों में से हर रात एक भाई जरूर जागते हुए बिताएगा. इसी तरह 8 दिन बीत गए. वारणावत गांव के लोग हर रोज अपने युवराज से मिलने आते थे और उनके लिए भेंट लेकर आते थे. एक दिन एक मजदूर, हाथ में पिंजरा लेकर आया जिसमें चूहा था. इसे देखकर अर्जुन को विदुर का प्रश्न याद आया कि जंगल की आग से कौन बचा रहता है, चूहा, क्योंकि वो बिल में रहता है.
पांडवों की ऐसे बची जान
पांडव अब समझ चुके थे कि उन्हें इस महल में जलाकर मारने की योजना है. तब उस मजदूर ने संकेत में खुद को विदुर का आदमी बताया और सुरंग खोदने के काम में लग गया. अब पांडव पूरा षड्यंत्र और विदुर नीति के एक-एक शब्द समझ चुके थे. योजना थी कि पुरोचन अमावस्या की रात भवन में आग लगा देगा, लेकिन पांडवों ने एक दिन पहले ही लाक्षागृह में आग लगा दी और सुरंग से सुरक्षित स्थान पर निकल गए. जाने से पहले उन्होंने अपने आभूषण, वस्त्र उसी महल में छोड़ दिए. पुरोचन भी आग में जलकर मारा गया और एक भीलनी बुढ़िया भी अपने चार बेटों के साथ आग में भस्म हो गई. सबने समझा पांडव मारे गए.
जरासंध का वध, कृष्ण की कूटनीति
महाभारत में जरासंध का वध एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी और ये बहुत बड़ा गुप्तचर अभियान भी था. कृष्ण ने जरासंध को 16 बार हराया था. जरासंध हर साल द्वारिका पर आक्रमण के लिए निकलता था, इसके लिए वह राक्षसों, क्रूर राजाओं और अत्याचारी योद्धाओं का पूरा गठबंधन तैयार करता था. हर बार कृष्ण सिर्फ जरासंध को छोड़कर बाकी सबको मार देते थे. इस तरह वह छल से अपनी सभी शत्रुओं को एक ही जगह इकट्ठा करके 16 साल तक उनका वध करते रहे.
वेश बदलकर पहुंचे थे श्रीकृष्ण-अर्जुन और भीम
जरासंध को मारने के लिए कृष्ण, अर्जुन व भीम छिपकर और ब्राह्मणों का वेश बनाकर मगध पहुंचे. उन्हें कोई पहचान नहीं पाया. पहले उन्होंने साधु वेश में नगर भ्रमण करके पूरे मगध की संरचना को समझ लिया, इसके साथ ही जहां-जहां से जरासंध को सहायता मिल सकती थी, उन राजाओं को या तो मार दिया या फिर मूर्छित कर दिया. जरासंध ने मल्ल युद्ध का आयोजन रखा था. कृष्ण ने फूलमाली बनकर सभी अतिथि राजाओं को फूल भिजवाए. ये फूल नशीले थे, जिनको सूंघते ही राजा नशे में झूमने लगे. इसके बाद भीम ने जरासंध को मल्ल युद्ध में ललकारा और कृष्ण का संकेत पाकर उसे दो टुकड़ों में चीर दिया.
जयद्रथ का वध भी कूटनीति से हुआ
महाभारत युद्ध के दौरान जयद्रथ का वध भी कृष्ण की कूटनीति थी. उसके पिता ने जयद्रथ के साथ श्राप जोड़ रखा था कि जो भी जयद्रथ का सिर काटकर जमीन पर गिराएगा, उसके खुद के सिर में भयंकर विस्फोट हो जाएगा. अर्जुन ने जब जयद्रथ को तीर मारा तो कृष्ण ने कहा कि इसे ऐसा बाण मारो कि इसका सिर जाकर इसके पिता की गोद में गिरे. अर्जुन ने ऐसा ही किया. जयद्रथ का सिर तो काटा, लेकिन वो जाकर गिरा जयद्रथ के पिता की गोद में. बेटे का कटा सिर देखकर वह संभल नहीं पाया और गलती से उसे जमीन पर गिरा दिया. इस तरह जयद्रथ और उसके पिता दोनों मारे गए.
चाणक्य के अर्थशास्त्र में है जासूसी का विज्ञान
पौराणिक काल से निकलकर प्राचीन इतिहास की ओर बढ़ें तो जासूसी गतिविधियां उस दौर में काफी देखने को मिलती हैं. भारत में नंद वंश, मौर्य वंश, गुप्त काल, शुंग वंश जैसे समय में, जब राजतंत्र हावी रहा था तब जासूसों और गुप्तचरों का होना शासन व्यवस्था का अनिवार्य अंग था. चाणक्य का काल लगभग 350 ईसा पूर्व का है और उनके अर्थशास्त्र में जहां शासन व्यवस्था के कई सूत्र दर्ज हैं, वहीं उन्होंने गुप्तचर व्यवस्था पर खासतौर से प्रकाश डाला है. नंदवंश को उखाड़ फेंकने का संकल्प कर लेने वाले चाणक्य ने चंद्रगुप्त को तैयार करते हुए उससे कई गुप्त अभियान कराए, जिन्होंने घनानंद के शासन की जड़ें हिला दीं.
चंद्रगुप्त ने घनानंद को गुप्त तरीकों से किया कमजोर
चंद्रगुप्त ने नंदवंश को समाप्त करने के लिए घनानंद को आंतरिक तौर पर कमजोर किया. चंद्रगुप्त ने पहले उसकी नाक के नीचे घनानंद का बड़ा खजाना लूटा. फिर उसके पांचों भाइयों को एक-एक करके कूटनीति से मारा. चंद्रगुप्त ने चाणक्य की मदद से ऐसी स्थितियां पैदा कर दीं कि खुद घनानंद ने अपने दो भाइयों को मौत के घाट उतार दिया. इसके अलावा चंद्रगुप्त ने अंदर ही अंदर सेना में भी बड़ा विद्रोह कराकर, कई सैनिकों को अपनी ओर मिला लिया था.
अशोक, कलिंग का विजेता और गुप्तचर नीति
चंद्रगुप्त के बाद अशोक मौर्य वंश के एक ऐसे राजा के रूप में उभरता है, जिसके राज्य का विस्तार कश्मीर से आगे काबुल, कंधार, बलोचिस्तान तक था. दक्षिण में सुदूर दक्षिण को छोड़कर दक्षिणापथ के कई प्रदेश राजधानी पाटलिपुत्र के अधीन थे. अशोक के दौरान सबसे भीषण युद्ध का जिक्र कलिंग विजय के तौर पर मिलता है. इस विजय में भीषण रक्तपात हुआ और लाखों कलिंग सैनिक मारे गए. ये युद्ध इतना भीषण था कि तकरीबन एक साल तक चला. कलिंगों ने ये लड़ाई मैदान में तो लड़ी ही, लेकिन उन्हें सबसे अधिक आघात पहुंचा अशोक की छल और गुप्तचर नीति से.
अशोक की सीक्रेट सोसायटी!
अशोक के बारे में इतिहासकारों का मत है कि उसने 'सीक्रेट सोसायटी' बनाई थी. उनका दावा है कि इस सीक्रेट सोसायटी से गुप्त रूप से कई लोग शामिल थे और अलग-अलग विद्याओं के जानकार थे. इस सीक्रेट सोसायटी के सर्वेसर्वा सिर्फ 9 लोग थे. इतिहास में नवरत्न का कॉन्सेप्ट भी अशोक के ही साम्राज्य से निकलता है. इन 9 लोगों को ' Nine Unknown Men' कहा जाता है. ये 9 लोग विषविद्या (रसायन), तंत्र विद्या, योग शास्त्र, शस्त्र शास्त्र जैसी विधाओं में माहिर थे. कई दावे ऐसे भी हैं कि ये लोग टाइम ट्रैवल भी कर सकते थे और युद्ध का परिणाम बदलने के लिए इसका प्रयोग भी करते थे. हालांकि इसके स्पष्ट प्रमाण कभी नहीं मिले हैं.
सिकंदर को पोरस के गुप्तचरों ने पहुंचाया नुकसान
सप्त सैंधव प्रदेश के राजा पोरस और तक्षशिला के राजा आम्भी के बीच भी समु्द्री व्यापार को लेकर शत्रुता थी. सिकंदर जब विश्व विजय का सपना लेकर भारत आया था तो पहले उसका सामना आम्भि से हुआ. सिंधु और झेलम नदी के विशाल फैलाव के कारण वह उस पार से भारत आने में असमर्थ था. तब आम्भि ने उसे गुप्त तरीके से सिंधु नदी पार करवा दी, लेकिन अब आगे बढ़ने पर झेलम नदी फैली दिख रही थी, जो कहीं उथली थी तो कहीं महासागरों जितनी गहरी थी. कई महीनों की कोशिश के बाद सिकंदर किसी तरह कबीलों से होते हुए झेलम पार कर पाया, लेकिन उसके काफी सैनिक इन जंगलों में मारे गए.
क्या कहते हैं इतिहासकार?
एक यूनानी इतिहासकार दियोदोरस ने भारत को सपेरों का देश इसलिए कहा है, क्योंकि सिकंदर को इस संकट का पता ही नहीं था. जंगलों के बीच कई सैनिकों की मौत जहरीले सांपों के काटने से हो गई. फिर ये लोग जब आगे बढ़े तो पोरस के साथी और छापामार युद्धों में माहिर कबीलों के सरदारों ने सेना पर विष बुझे तीर मारे. ये तीर जानलेवा कम थे, लेकिन घायल ऐसा कर देते थे कि सैनिकों में बिल्कुल ताकत नहीं बचती थी. पोरस की हार का एक कारण ये भी था कि उसके कई सैनिक मलेरिया जैसे ज्वर के शिकार हो गए.
इतिहासकार ईएडब्ल्यू बैज लिखते हैं कि झेलम के किनारे सिकंदर की सबसे बड़ी क्षति हुई कि उसका प्यारा घोड़ा मारा गया और इसने सिकंदर को काफी कमजोर किया. वह बताते हैं कि आम्भि ने सिकंदर की मदद सिंधु और झेलम को पार करने में जरूर की, लेकिन उसे भी नहीं पता था कि उसकी सेना के अधिकारियों के बीच पोरस के लोग भी हैं, जिन्होंने सेना को दलदल भरे जंगली रास्तों की ओर मोड़ दिया. जहां जंगली कीड़ों ने सैनिकों को बीमार किया.
सैनिकों से ही नहीं, सांप-बिच्छू और कीड़ों से भी लड़े सिकंदर के सैनिक
जहरीले बिच्छुओं और सांपों का कदम-कदम पर सामना करना पड़ा. इनसे बचे तो मधुमक्खी और मच्छरों ने रही-सही कसर पूरी की. सैनिक भारत की कभी गर्म तो कभी सर्द जलवायु नहीं झेल पाये. पोरस के जासूसों ने अपनी नीति में देखने में सरल लेकिन असल में बेहद जटिल तकनीकों का प्रयोग किया था. खुद सिकंदर भी, जो पोरस से तो बच गया, लेकिन भारत से यूनान लौटते समय किसी अज्ञात तीर से घायल हो गया और फिर कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई.
देवकीनंदन खत्री की चंद्रकांता के जासूस
ये तो थीं इतिहास की बातें. हिंदी साहित्य में रहस्यमयी कथा लेखक रहे हैं देवकीनंदन खत्री, जिन्होंने मशहूर उपन्यास चंद्रकांता संतति लिखा था. हिंदी साहित्य के इतिहास में यह ऐसी कृति है, जिसे पढ़ने के लिए लोगों ने बड़े पैमाने पर हिंदी पढ़ना सीखा. इस उपन्यास के केंद्र में ही छद्म जासूसी अभियान शामिल है. राजा शिवदत्त की विष कन्याओं में एक विषकन्या पात्र है जो एक अंगूठी पहनती है, जिसका पत्थर जहरीला है. कोई ऐसा दुश्मन जिससे जिंदा भी रखना हो और असक्त भी, तब वह विषकन्या पहले उसे मोहजाल में फंसाती थी और फिर धीरे से शरीर के किसी हिस्से से अंगूठी का पत्थर छुआ देती थी. ऐसा होती है, उस स्थान पर एक बड़ा फोड़ा उभर आता था और दुश्मन बिल्कुल जड़ हो जाता था. इसके अलावा बद्रीनाथ और सोमनाथ चुनारगढ़ के महाअय्यार होते हैं जो रूप बदलने, सेना में घुसकर युद्ध की बाजी पलटने, शत्रु राज्य में जाकर भेद लेने में पक्के थे.
कुल मिलाकर जासूसों और जासूसी की जो करामातें विश्वास करने में भी मुश्किल होती हैं, वो कभी किस्सों में तो कभी असल में समाज का हिस्सा रही हैं. काल्पनिक कथाओं में उनकी दिलचस्प भूमिकाओं ने ही वास्तविकता में भी उनसे काफी उम्मीदें बढ़ा रखी हैं. इजरायल के लिए मोसाद इन उम्मीदों पर खरा उतर रहा है.
विकास पोरवाल