एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ED) ने विदेश मंत्रालय और उसकी विदेश मिशनों और दूतावासों की मदद से एक बड़े NRI एडमिशन रैकेट का पर्दाफाश किया है. इस रैकेट में निजी मेडिकल कॉलेजों की लगभग 18,000 रिज़र्व सीटों पर MBBS, UG और PG कोर्सेस में एडमिशन के लिए फर्जी NRI दस्तावेजों का इस्तेमाल किया जा रहा था.
ED ने छापेमारी के दौरान कई कॉलेज से NRI सर्टिफिकेट्स जब्त किए और उन्हें वेरिफिकेशन के लिए विदेश मिशनों को भेजा. जांच में सामने आया कि अधिकांश दस्तावेज नकली थे. साथ ही, US में काम करने वाले नोटरी अधिकारियों के जाली स्टांप्स भी मिले.
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जांच से पता चला कि एजेंट कॉलेज से पैसे लेकर फर्जी NRI दस्तावेज तैयार कर रहे थे. वे नकली फैमिली ट्री बनाते थे, जिनमें असंबंधित NRI को छात्रों के रिश्तेदार दिखाया जाता था. कई मामलों में एक ही NRI के दस्तावेज का इस्तेमाल अलग-अलग छात्रों के लिए किया गया. इस पूरे नेटवर्क में कॉलेज के प्रमोटर्स की भी भूमिका सामने आई है, जिन्होंने एजेंटों के जरिए छात्रों को सीट दिलाकर भारी मुनाफा कमाया.
कॉलेज प्रमोटर्स को दी जाती थी रिश्वत
जांच में यह भी सामने आया कि कुछ NRI खुद इस रैकेट में शामिल थे. एजेंट्स ने उन्हें रिश्वत दी ताकि वे अपने नाम का इस्तेमाल छात्रों के एडमिशन के लिए होने दें. मौजूदा नियमों के अनुसार, छात्र की फीस NRI प्रायोजक द्वारा ही दी जानी चाहिए, लेकिन ED ने पाया कि ज्यादातर मामलों में फीस छात्रों के परिवार ने दी, जिससे नीति का असली उद्देश्य - विदेशी मुद्रा अर्जन - प्रभावित हुआ.
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खुलासे के बाद केंद्र सरकार ने बदले नियम
केंद्र सरकार ने इस खुलासे के बाद तुरंत NRI प्रवेश नीति में बदलाव किया है. स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक (DGHS) ने नए दिशा-निर्देश जारी किए, जिनमें हर NRI सर्टिफिकेट का दूतावास या विदेश मिशन से ऑथेंटिकेशन होना अनिवार्य किया गया. विदेश मंत्रालय ने भी दूतावासों के लिए नए वेरिफिकेशन गाइडलाइन्स लागू किए, जिनमें 'प्रथम श्रेणी' और 'द्वितीय श्रेणी' रिश्तेदारों की परिभाषा तय की गई है.
कई मामलों में पाया गया कि जिन NRI प्रायोजकों के नाम पर आवेदन किया गया था, वे उस समय भारत में मौजूद ही नहीं थे, जबकि उनके दस्तावेज पर नोटराइज्ड तारीख दर्ज थी. इससे पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठे हैं.
अरविंद ओझा