केंद्र की मोदी सरकार देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की तैयारी में जुटी है. यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है, सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून. फिर चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से क्यों न हो. इसमें शादी से लेकर तलाक, संपत्ति के बंटवारे और बच्चा गोद लेने जैसे सभी मामलों में एक जैसा ही नियम-कानून सब लोगों के लिए रहेगा. वर्तमान में गोवा ही एक ऐसा इकलौता राज्य है, जहां 1961 से ही समान नागरिक संहिता यानि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है. हालांकि इसका कई लोग विरोध भी कर रहे हैं.
इस बीच बच्चे को गोद लेने और समान नागरिक संहिता पर मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि अगर कोई बच्चे को गोद लेना चाहता है तो उसमें कोई हर्ज नहीं है. बच्चे को गोद ले सकता है, लेकिन उसमें कुछ इस्लामिक नियम कानून हैं, जिसका उन्हें पालन करना होगा. जहां तक संपत्ति का सवाल है तो पिता अपनी संपत्ति में से बतौर गिफ्ट अपने गोद लिए बच्चे को दे सकता है. उसमें कोई मनाही नहीं है.
गोद लिए बच्चे को संपत्ति बतौर गिफ्ट दी जा सकती है
उन्होंने कहा कि इस्लामिक कानून यह है कि गोद लिए बच्चे का जो असली पिता होगा, उसी का नाम आगे चलेगा. लेकिन गोद लेने वाला शख्स अपने इस बच्चे को अपनी संपत्ति में उसका हिस्सा बतौर गिफ्ट दे सकता है. उसमें कोई मनाही नहीं है. बाकी उसके अपने बच्चों के लिए शरीयत में तय है कि उसके अपने बच्चों में किसको कितना हिस्सा मिलेगा.
समान नागरिक संहिता (Uniform civil code) पर उन्होंने कहा कि ये मसला सिर्फ मुसलमानों से संबंधित नहीं है. बल्कि जितने भी अपने देश में समुदाय हैं, सबके अपने व्यक्तिगत नियम हैं. तो अगर कोई एक यूनिफॉर्म सिविल कोड आता है तो जितने भी धार्मिक समुदाय हैं, उनके धर्म में दिक्कत पैदा होगी और कोई भी बड़ा फायदा होने वाला नहीं है. हम सब जानते हैं मुल्क के संविधान में ही नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा के पहले रिवाज और परंपराओं को विशेषाधिकार दिया हुआ है. विशेष कानून के तहत उनको संरक्षित किया हुआ है. उसको खत्म नहीं कर सकते हैं.
कोई भी पार्टी ड्राफ्ट पेश नहीं कर पाई
उन्होंने कहा कि अपने मुल्क की खूबसूरती यही है कि हर कुछ किलोमीटर पर खाने-पीने, रहन-सहन, कला-संस्कृति बदल जाती हैं और तमाम समुदाय जिस एरिया में रहते हैं, उसको फॉलो करते हैं. हम समझते हैं कि व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है कि कोई भी यूनिफॉर्म सिविल कोड देश में लागू किया जा सके. यही वजह है कि तमाम पार्टियां यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की बात तो करती हैं, यह मुद्दा चुनाव के दौरान ही उठाया जाता है, लेकिन आज तक कोई भी पार्टी कोई भी ड्राफ्ट इस मुल्क के सामने पेश नहीं कर पाई है. जिस पर बहस हो सके.
उन्होंने कहा कि जितने भी समुदाय हैं, उनके अपने पर्सनल लॉ हैं, वह सभी धर्म से और धार्मिक पुस्तकों से संबंधित होते हैं. अपने संविधान में पहले से अपने धर्म को पालन करने का अधिकार दिया हुआ है तो संविधान के 2 अनुच्छेद पहले से हैं, जिनमें आपस में टकराव पैदा होगा और जो लोग अपनी मर्जी से अपने मजहब को अपनी निजी जिंदगी में फॉलो करना चाहते हैं, उसको भी कहीं ना कहीं छीना जाएगा.
संतोष शर्मा