मणिपुर में न्याय की राह पर एक लंबा इंतजार खत्म हुआ है. लगभग 26 साल पहले, 29 अगस्त 1998 को हुए कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में इंफाल वेस्ट सेशंस कोर्ट ने चार पूर्व पुलिस कमांडो पर हत्या और साजिश के आरोप तय कर दिए हैं. यह मामला भारतीय सेना के मेजर शिमरिंगम शैजा और अन्य चार लोगों की कथित तौर पर फर्जी मुठभेड़ में मौत से जुड़ा है.
अदालत ने जिन आरोपियों पर आरोप तय किए हैं, उनमें तत्कालीन सब-इंस्पेक्टर थोकचोम कृष्णातोंबी और कांस्टेबल खुंदोंगबम इनाओबी, थांगखोंगम लुंगदिम और मोहम्मद अख्तर हुसैन शामिल हैं. इन पर आईपीसी की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 201 (सबूत मिटाना), और 34 (साझा इरादे से किया गया कृत्य) के तहत आरोप तय हुए हैं.
क्या था मामला?
मेजर शैजा, जो मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री यांगमाशो शैजा के भाई थे, 29 अगस्त 1998 को चार अन्य लोगों के साथ एक वाहन में यात्रा कर रहे थे. पुलिस ने दावा किया था कि वाहन ने रुकने के संकेत को नजरअंदाज किया और फायरिंग शुरू कर दी, जिसके जवाब में पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की. इस मुठभेड़ में चार लोग मारे गए और एक गंभीर रूप से घायल हुआ.
लेकिन समय के साथ पुलिस की कहानी पर सवाल उठने लगे. चश्मदीदों और मृतकों के परिवारों ने इस दावे को खारिज करते हुए इसे एक सुनियोजित हत्या बताया. मेजर शैजा की पत्नी पेमला शैजा ने दूसरी एफआईआर दर्ज कराई और इस घटना को निर्दोष नागरिकों की ठंडी दिमाग से की गई हत्या करार दिया.
सुप्रीम कोर्ट की दखल और सीबीआई जांच
मामले में वर्षों तक कोई प्रगति नहीं हुई, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2017 में हस्तक्षेप नहीं किया और सीबीआई को मामले की जांच का निर्देश नहीं दिया. इस जांच में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और जस्टिस सी उपेंद्र आयोग ने भी सहयोग किया.
सीबीआई की विशेष जांच टीम (SIT) ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि वाहन से बरामद किए गए हथियार संभवतः प्लांट किए गए थे और यह मुठभेड़ स्टेज की गई थी ताकि असली हत्याओं को ढका जा सके. जून 2020 में सीबीआई ने छह पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी.
फिलहाल कोर्ट ने चार आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए हैं, लेकिन बाकी के चार पर कार्रवाई मणिपुर सरकार के गृह विभाग द्वारा अभियोजन की अनुमति न देने के कारण रुकी हुई है.
बेबी शिरीन