तमिलनाडु में वन्नियार समुदाय को आरक्षण देने पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई. साथ ही कोर्ट ने वन्नियार समुदाय को साढ़े दस फीसदी आरक्षण देने के अधिनियम को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया.
मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु में सबसे पिछड़े माने जाने वाले समुदायों में से एक वन्नियार समुदाय के लोगों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लिए 10.5 फीसदी आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया है. हाईकोर्ट की खंडपीठ ने तमिलनाडु विधानसभा के उस अधिनियम को भी रद्द कर दिया है जो नौ महीने पहले फरवरी में पारित किया गया था.
कोर्ट ने 50 याचिकाओं पर की सुनवाई
ये आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग को दिए जाने वाले 27 फीसदी आरक्षण में ही शामिल है. मद्रास हाईकोर्ट में जस्टिस एम दोरइस्वामी और जस्टिस के मुरली शंकर की बेंच ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 50 याचिकाओं पर लंबी सुनवाई की. सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला देते हुए बेंच ने कहा कि यह हमारे सामने बड़ा वैधानिक प्रश्न ये था कि क्या राज्य सरकार को आंतरिक आरक्षण देने का अधिकार है?
बेंच ने कहा, आरक्षण को लेकर संविधान में पर्याप्त स्पष्टीकरण दिए गए हैं. उनकी रोशनी में राज्य विधानसभा से पारित आंतरिक आरक्षण देने वाला यह कानून संविधान सम्मत नहीं है. राज्य सरकार ऐसा कानून नहीं ला सकती लिहाजा इसे पारित करना भी संविधान के अनुकूल नहीं है.
संविधान में इसका साफ साफ उल्लेख- बेंच
कोर्ट ने कहा कि इस पूरी प्रक्रिया को लेकर संविधान में साफ-साफ उल्लेख किया गया है. मद्रास हाईकोर्ट में दाखिल इन याचिकाओं में से कई याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी यदि आरक्षण की ऐसी व्यवस्था लागू हुई तो वन्नियार समुदाय के लोगों को ही सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए आरक्षण का लाभ मिलेगा. जबकि अति पिछड़ा जातियों यानी मोस्ट बैकवर्ड क्लासेस में शामिल अन्य 25 जातियों और 68 पिछड़ी जातियों को बाकी बचा लगभग 17 फीसदी कोटा ही साझा करना होगा.
क्या कहा राज्य सरकार ने?
मद्रास हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार ने कहा था कि ये अधिनियम बनाने के पीछे उनका कोई राजनीतिक मकसद नहीं था. बल्कि अति पिछड़ी माने जाने वाली जातियों में सबसे ज्यादा आबादी वाले वन्नियार समुदाय के हित में शुरू की गई थी. हालांकि बेंच ने सभी पक्षकारों को सुनने के बाद सरकार की दलील नामंजूर करते हुए अधिनियम को अवैध ठहरा कर रद्द कर दिया.
संजय शर्मा