India Today Conclave Mumbai: हमारे देश में कैनबिस को टैबू समझा जाता है. इसे सीधे तौर पर नशे से जोड़ा जाता है. लेकिन देश की एक बड़ी आबादी को कैनबिस को लेकर कोई खास जानकारी नहीं है. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दूसरे दिन शनिवार को हेम्प (भांग) उत्पादों और इससे जुड़े भ्रम पर चर्चा की गई.
इस चर्चा में इंडिया हेम्प ऑर्गेनिक्स के फाउंडर रोहित कमात और लवीना सिरोही, इट्स हेम्प के फाउंडर श्रीजन शर्मा और बॉम्बे हेम्प कंपनी के सीईओ चिराग टेकचंदानी शामिल हुए.
क्या है हेम्प?
चिराग बताते हैं कि हमारे देश में कैनबस का नाम सुनते ही इसे नशे से जोड़कर देखा जाता है. इसकी वजह इस बारे में कम जानकारी होना या इससे जुड़े भ्रम और मिथकों पर विश्वास करना है.
वह बताते हैं कि कैनबस के प्लांट की दो प्रजातियां होती हैं, पहला हेम्प और दूसरा मैरिजुआना. इन दोनों के बीच जो अंतर है, वो प्लांट में मौजूद कंपाउंड का है, जिसे THC के नाम से जाना जाता है. THC दरअसल एक यूफोरिक हाई कंपाउंड है, जिससे नशा होता है. लेकिन हेम्प में इस कंपाउंड की मात्रा तीन पर्सेंट से भी कम होती है. इसलिए इससे नशा नहीं होता और इसका इस्तेमाल कुकीज, कॉफी, जींस, केक जैसे 25,000 प्रोडक्ट बनाने में किया जा सकता है. इसकी खेती पूरी तरह से लीगल भी है.
वह बताते हैं कि न्यूट्रिशन के लिहाज से देखें तो यह एक तरह का सुपरफूड है, जो अल्जाइमर, आर्थराइटिस और पार्किंसंस जैसी बीमारियों से निजात दिलाने में भी मदद करता है.
कैनबिस से 25,000 प्रोड्क्ट तैयार किए
लवीना सिरोही बताती हैं कि हमने कैनबिस से जुड़े टैबू को तोड़ने के लिए इससे अब तक 25,000 प्रोडक्ट तैयार कर लिए हैं, जिनमें कुकीज, केक, जींस, टॉयलेट पेपर जैसी तमाम चीजें हैं. हम इससे जुड़े नेगिटव नैरेटिव को बदल रहे हैं.
मवेशियों के खाने के लिए हेम्प का इस्तेमाल
यह पूछने पर कि क्या हेम्प का बढ़ता इस्तेमाल दुनिया को बेहतरी के लिए बदल सकता है? इस पर रोहित कहते हैं कि मवेशियों के भोजन के लिए भी हेम्प का इस्तेमाल हो सकता है. यह क्लाइमेट चेंज से निपटने में अहम भूमिका निभा सकता है. प्लास्टिक की जगह हेम्प प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं. यह मेडिकली कितना कारगर है, वह सिद्ध हो गया है.
हेम्प की खेती
वह बताते हैं कि इस प्लांट के पांच हिस्से हैं, उसमें सीड, फाइबर, लीफ, बड और रेजिन हैं. एनडीपीएस एक्ट के मुताबिक, इनमें से सीड, फाइबर और लीफ को नारकोटिक्स कैटेगरी से बाहर रखा गया है. इसलिए इनका बेधड़क इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि गेहूं की तरह हेम्प की खेती की जा सकती है. इसे प्लांट को उगाने में 90 से 120 दिनों का समय लगता है और इसका पौधा 12 फीट लंबा होता है. यह मिट्टी को भी दुरुस्त करता है.
हेम्प की खेती में चीन सबसे आगे
रोहित बताते हैं कि चीन ने हेम्प सेक्टर में बहुत तरक्की कर ली है. वह इसके प्रोडक्शन में दुनिया में सबसे आगे है. यह अरबों डॉलर का बाजार बन सकता है, इसमें अपार संभावनाएं हैं. इसलिए भारत को गंभीरता से इस सेक्टर को भुनाना होगा और अगले पांच से दस साल में हेम्प इंडस्ट्री में अहम भूमिका निभाने के लिए कदम उठाने होंगे.
aajtak.in