23 अप्रैल को हुई कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक में भारत ने इतिहास में पहली बार इंडस वाटर ट्रीटी (IWT) को निलंबित करने का फैसला लिया था. यह फैसला सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियों के गंभीर प्रभावों को देखते हुए लिया गया है.
भारत स्पष्ट रूप से यह संदेश देना चाहता है कि आतंकवाद और जल सहयोग एक साथ नहीं चल सकते. मसलन, "खून और जल एक साथ नहीं बह सकते.” यह नई नीति आतंक और सहयोग के बीच एक रेखा खींचती है.
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सीसीएस बैठक के बाद फैसला (23 अप्रैल)
सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने सीमा पार आतंकवाद के कारण बिगड़ती सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की। सबसे महत्वपूर्ण निर्णय एक मापा राजनीतिक और रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में आईडब्ल्यूटी को निलंबित करना था।
2. आतंकवाद की बढ़ती लागत!
यह कदम स्पष्ट करता है कि आतंकवाद अब कूटनीतिक और बुनियादी ढांचे की लागत वहन करेगा. भारत दांव बढ़ाने के लिए जल कूटनीति जैसे गैर-सैन्य उपकरणों का लाभ उठा रहा है.
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3. आईडब्ल्यूटी पर फिर से बातचीत के लिए दबाव-
भारत ने कहा कि उसने संधि पर फिर से विचार करने की अपील की और तर्क दिया कि 1950-60 के दशक की इंजीनियरिंग धारणाएं पुरानी हो चुकी हैं, जलवायु परिवर्तन ने जल उपलब्धता को प्रभावित किया है, समकालीन जरूरतों के मद्देनजर न्यायपूर्ण डिस्ट्रीब्यूशन की जरूरत है, लेकिन पाकिस्तान ने इन मुद्दों को संबोधित नहीं किया, इसलिए अब भारत पहलगाम में आतंकवादी हमलों के बाद सख्त कूटनीतिक दंड के रूप में इसे स्थगित कर रहा है.
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