वाराणसी की एक अदालत ने 31 जनवरी बड़ा फैसला सुनाते हुए ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा करने का अधिकार दे दिया. ज़िला जज अजय कृष्ण विश्वेश के आदेश के महज 8 घंटे के भीतर मस्जिद के तहखाने में पूजा शुरु हो गई. अदालती आदेश के बाद एक बार फिर ज्ञानवापी को लेकर देशभर में बहस शुरू हो गई है. दरअसल ज्ञानवापी, सनातनी लोगों के दिल पर अंकित एक ऐसा शब्द है, जिसकी महिमा का वर्णन न केवल सनातन ग्रंथों में है बल्कि कई प्रतिष्ठित अंग्रेजी इतिहासकारों द्वारा काशी पर किए गए शोधकार्यों और उनकी पुस्तकों से भी इसकी पुष्टि होती है.
दैवीय ग्रंथों और आध्यात्मिक खोज की कहानियों से भरे सनातन ग्रंथों में अक्सर ज्ञानवापी को एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में उद्धृत किया गया है. इसी तरहत वाराणसी का अध्ययन करने वाले अंग्रेजी इतिहासकार भी इन ग्रंथों से सहमति जताते हैं. ई बी हैवेल और एडविन ग्रीव्स जैसे लेखकों ने ब्राह्मण के कुएं के किनारे बैठकर तीर्थयात्रियों को पानी पिलाने का आकर्षक विवरण प्रस्तुत किया है.
सनातन ग्रंथों में है ज्ञानवापी सहित 6 वापियों का जिक्र
ज्ञानवापी का उल्लेख सनातन ग्रंथों में भी मिलता है. स्कंद पुराण के काशी खंड में कहा गया है कि ज्ञानवापी का निर्माण स्वयं भगवान शिव ने किया था.लिंग पुराण में 6 प्रमुख वापियों यानि कुओं का जिक्र है. पहली वापी ज्येष्ठा वापी है. दूसरी वापी है ज्ञानवापी; इसे ज्ञानवापी नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यह भगवान शिव के आशीर्वाद से बनाई गई थी और इसका पानी पीने से भक्त प्रबुद्ध हो जाते हैं और सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करते हैं. तीसरी वापी का नाम कर्कोटक वापी है, जो नागकुआं के नाम से प्रसिद्ध है. चौथी वापी का नाम भद्रवापी है. पांचवी वापी शंखचूड़ वापी है और छठी वापी को सिद्ध वापी के नाम से जाना जाता है.
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अंग्रेजी लेखकों की कलम से
ई. बी. हेवेल ने अपनी पुस्तक "बनारस-द सेक्रेड सिटी" में ज्ञानवापी की उत्पत्ति के संबंध में दो सिद्धांतों का जिक्र किया है. उनके अनुसार, इस कुएं से जुड़ी किंवदंती यह है कि एक समय की बात है जब बनारस सूखे से पीड़ित था. बारह वर्षों तक बारिश नहीं हुई थी जिसकी वजह से नगर की भयंकर दुर्दशा हो गई. अंततः एक ऋषि, जो महान हिंदू संतों में से एक थे, ने शिव का त्रिशूल पकड़कर उसे इसी स्थान पर धरती में गाड़ दिया. तुरंत पानी का एक झरना फूट पड़ा, जो पूरे शहर की परेशानी दूर करने के लिए पर्याप्त था. चमत्कार के बारे में सुनकर शिव ने कुएं में अपना निवास स्थान बना लिया और आज भी वहीं हैं.
एक और किंवदंती, और अधिक ऐतिहासिक आधार के साथ कहती है कि जब विश्वेश्वर के पुराने मंदिर को औरंगजेब ने नष्ट कर दिया था तो एक पुजारी ने मूर्ति ले ली और उसे कुएं में फेंक दिया. दोनों अंग्रेजी लेखकों ने उस ब्राह्मण का अच्छे से विवरण दिया है जो कुएं के पास बैठकर तीर्थयात्रियों को पानी देता था. दोनों लेखकों ने अन्य छोटे मंदिरों और गणेश की बड़ी आकृतियों के बारे में भी लिखा है.
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ईबी हैवेल ने इस तरह किया ज्ञानवापी का जिक्र
ई.बी. हैवेल ने अपनी पुस्तक "बनारस-द सेक्रेड सिटी" में लिखते हैं, 'ज्ञान-कूप यानि ज्ञान का कुआं, स्वर्ण मंदिर और औरंगज़ेब की मस्जिद के बीच बड़े चतुर्भुज में स्थित है, जो पुराने विश्वेश्वर मंदिर के स्थान पर बनाया गया है. यह एक सुंदर सारासेनिक पिलर से ढका हुआ है, जिसे 1828 में ग्वालियर के दौलत राव सिंधिया की विधवा ने बनवाया था. पास में विशाल पत्थर से बना हुआ बैल (नंदी) हैं. तीर्थयात्रियों की भीड़ को हमेशा देखने और अध्ययन करने के लिए बहुत कुछ मिलता है. एक ब्राह्मण प्रत्येक तीर्थयात्री को एक घूंट पानी पिलाने के लिए करछुल (डोई) लेकर कुएं के पास बैठता है. कोलोनेड एक पसंदीदा विश्राम स्थल है, और वहां आप अक्सर उन तीर्थयात्रियों को देख सकते हैं जो अपने संरक्षक देवता की तस्वीर और प्रतीकों को अपने साथ ले जाते हैं. फर्श पर एक छोटे से मंदिर की व्यवस्था करते हैं और विधि-विधान से पूजा करते हैं.'
एडविन ग्रेव्स इस ऐसे किया ज्ञानवापी का वर्णन
एडविन ग्रेव्स अपनी पुस्तक 'काशी द सिटी इलस्ट्रियस'में लिखते हैं, 'ज्ञान बापी-एक ढलानदार पगडंडी वाली गली से उतरते हुए पहली इमारत जो नज़र में आती है वह औरंगजेब की मस्जिद है, जो मस्लिमों द्वारा ध्वस्त किए गए विश्वनाथ के पुराने मंदिर की जगह बनाई गई है. यह एक अच्छी इमारत है, हालांकि इसका बहुत अधिक उपयोग नहीं किया गया है और यह हमेशा से ही हिंदुओं की आंखों की किरकिरी रही है क्योंकि यह उस स्थान के बिल्कुल केंद्र में है जिसे वे विशेष रूप से पवित्र भूमि मानते हैं. इसी जगह पर साल 1809 में झगड़ा हुआ था जो विनाशकारी साबित हुआ. मस्जिद के पीछे और इसके आगे के भाग में संभवतः पुराने विश्वनाथ मंदिर के कुछ टूटे हुए अवशेष हैं.'
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इस पुस्तक में वह आगे लिखते हैं, 'मस्जिद के पूर्व में एक सादा लेकिन अच्छी तरह से निर्मित स्तंभ स्थित है, जो ज्ञान बापी, ज्ञान के कुएं को कवर करता है. यह कुआं पत्थरों की दीवार से घिरा हुआ है, जिस पर एक ब्राह्मण बैठता है. उपासक कुएं पर आते हैं, फूल चढ़ाते हैं, और ब्राह्मण के हाथ से कुएं से एक छोटा चम्मच पानी प्राप्त करते हैं और इसे वे अपने माथे और आंखों पर लगाते हैं, और उनमें से कुछ थोड़ा पीते हैं, और फिर खुश होकर चले जाते हैं. स्तंभ के उत्तर में एक बैल की एक विशाल आकृति है, जो महादेव की नंदी है. इस बैल को बहुत सम्मान के साथ माना जाता है, इस बैल के नजदीक गौरी शंकर यानि पार्वती और महादेव की आकृतियों वाला एक मंदिर है.इसी खुली जगह में एक या दो अन्य छोटे मंदिर और गणेश की एक बड़ी आकृति है, जिसे ज्ञान के कुएं के पास उपयुक्त रूप से रखा गया है क्योंकि गणेश बुद्धि के देवता हैं.'
बिश्वजीत