अचानक आई तेज बारिश और ट्रैफिक जाम से जब 31 जुलाई को पूरा दिल्ली-NCR जूझ रहा था, उसी दौरान इंसानियत की नायाब मिसाल पेश की गई. दिल्ली एयरपोर्ट से गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल तक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया, जिसमें एक दिल को अस्पताल तक पहुंचाया गया. इस दौरान 13 मिनट में 18 किलोमीटर की दूरी तय की गई. करीब 100 पुलिस अधिकारियों की मदद से रोहतक के 34 वर्षीय व्यक्ति की जान बचाने के लिए दिल को कोलकाता से गुरुग्राम 4 घंटे में पहुंचाया गया.
पहला ग्रीन कॉरिडोर कोलकाता में पुलिस ने एक सरकारी अस्पताल से बनाया, जहां 54 वर्षीय महिला को ब्रेन डेड घोषित किया गया था. अस्पताल के अधिकारियों ने बताया कि राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) से मंजूरी मिलने के बाद दिल को अस्पताल से कोलकाता के नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहुंचाया गया. इसके बाद दिल को इंडिगो एयरलाइंस के जरिए दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहुंचाया गया.
'सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत काम कर रहा था दिल'
दिल्ली और गुरुग्राम पुलिस ने अस्पताल के कर्मचारियों के साथ मिलकर दूसरा ग्रीन कॉरिडोर बनाया. भारी ट्रैफिक जाम और अचानक हुई बारिश के बावजूद दिल को IGI एयरपोर्ट से गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल तक 18 किलोमीटर की दूरी तय करके मात्र 13 मिनट में पहुंचाया गया. लगभग 100 पुलिस अधिकारियों की मदद और सहयोग से चार घंटे के भीतर पूरी प्रक्रिया की गई.
जब दिल अस्पताल पहुंचा तो फोर्टिस गुरुग्राम के कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी के डॉ. उदगीथ धीर के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने इसे प्रत्यारोपित किया. डॉ. धीर ने कहा कि 34 वर्षीय मरीज को गंभीर अवस्था में अस्पताल में लाया गया था, उसका दिल सिर्फ 10 से 15 प्रतिशत काम कर रहा था. वह पहले से ही लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (LVAD) के साथ कृत्रिम हृदय सहायता पर था और हृदय प्रत्यारोपण के लिए NOTTO की लिस्ट में रजिस्टर्ड था.
'मरीज की हालत अभी स्थिर'
हार्ट ट्रांसप्लांट को लेकर डॉ. धीर ने कहा कि इस केस में तत्काल हृदय प्रत्यारोपण आवश्यक था. फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के सुविधा निदेशक यश रावत ने कहा कि रोगी की हालत फिलहाल स्थिर है और हम अगले कुछ दिनों में उसे ठीक कर पाएंगे.
ट्रांसप्लांटेशन का ब्योरा देते हुए फोर्टिस हॉस्पिटल गुरुग्राम के डॉ. उद्गीथ धीर ने बताया, 'इस मामले में तत्काल हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी करना बेहद जरूरी था. क्योंकि मरीज की हालत डाइलेटेड कार्डियोमायोपैथी की वजह से काफी गंभीर थी और वह एडवांस हार्ट फेलियर स्टेज में थे. अस्पताल के स्टाफ, ट्रैफिक पुलिस और इंडिगो एयरलाइंस के बीच तालमेल के चलते कोलकाता से हार्ट को कम से कम समय में दिल्ली पहुंचाया गया. यदि मरीज का तुरंत उपचार नहीं किया जाता तो वह एडवांस हार्ट फेलियर की अवस्था में रहते, जिसमें पल्मोनेरी आर्टरी प्रेशर भी बढ़ता जाता और आने वाले दिनों में वह सर्जरी के लायक भी नहीं रहते. ऐसी स्थिति में पहुंचने के बाद हार्ट ट्रांसप्लांट की संभावना भी काफी कम हो सकती थी. फिलहाल मरीज की हालत स्थिर है और हमें उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में वह चलने-फिरने लगेंगे.'
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के फैसिलिटी डायरेक्टर यश रावत ने कहा, 'यह फोर्टिस गुरुग्राम में पहला हार्ट ट्रांसप्लांट है. हम डोनर के परिवार के आभारी हैं जिन्होंने अपने ब्रेन डेड परिजन के अंग को दान करने और अपार दुःख की इस घड़ी में भी एक अनजान जीवन को बचाने का फैसला किया. हम नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यूज ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (नोटो) के भी आभारी हैं, जिन्होंने डोनेशन की पूरी प्रक्रिया को सुगम बनाया. हम तत्काल रिस्पॉन्स देने के लिए इंडिगो एयरलाइंस तथा ग्रीन कॉरिडोर तैयार करने के लिए कोलकाता, दिल्ली और गुरुग्राम पुलिस के आभारी हैं, इनके सहयोग से ही हार्ट को तत्काल ट्रांसपोर्ट किया जा सका. साथ ही, मैं सरकार के प्रति भी आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने इस पूरे मामले में प्राथमिकता के आधार पर जरूरी सुरक्षा एवं सहयोग प्रदान किया. विभिन्न पक्षों के बीच इस तालमेल के चलते ही महत्वपूर्ण जीवन बचाया जा सका है.'
ऑर्गन फेलियर की समस्या से जूझते हैं हर साल 5 लाख लोग
इंडिगो एयरलाइंस के प्रवक्ता ने बताया, 'हम जीवनरक्षा के इस प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने पर बेहद सम्मानित महससू कर रहे हैं. इंडिगो में हमारी टीम को फोर्टिस हॉस्पिटल के मेडिकल प्रोफेशनल्स, पुलिस एवं अन्य सरकारी एजेंसियों के साथ सहयोग करने पर बेहद गर्व है. सभी के सहयोग से समय पर हृदय को ट्रांसपोर्ट कर प्रतीक्षारत मरीज को लगाया जा सका. ऐसी परिस्थितियों में एक-एक सेकंड बेहद कीमती होता है और हम सभी सहयोगियों के बेहद आभारी हैं कि उन्हें इस पूरी प्रक्रिया को सफल बनाने में हरसंभव सहयोग हमें प्रदान किया. हम कोलकाता और दिल्ली एयरपोर्ट स्टाफ के भी आभारी हैं, साथ ही एयरलाइंस के समर्पित क्रू सदस्यों के प्रति भी आभार ज्ञापन करते हैं जिन्होंने तत्काल कार्रवाई कर इस महत्वपूर्ण मिशन में अपना पूरा योगदान दिया.'
एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल करीब 5 लाख भारतीय ऑर्गन फेलियर की समस्या से जूझते हैं और केवल 2 से 3 प्रतिशत को ही जीवनरक्षक ट्रांसप्लांट का लाभ मिल पाता है. हर साल, सैकड़ों भारतीय अंग दान की प्रतीक्षा करते हुए अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं. अंग दान/प्रत्यारोपण के बारे में जागरूकता के अभाव और गलतफहमियों के चलते, अंग दानकर्ताओं की लगातार कमी बनी हुई है. हर साल, दान किए गए अंगों तथा ट्रांसप्लांट का इंतजार करने वाले लोगों के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है.
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