देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का गुरुवार रात 92 साल की उम्र में निधन हो गया. देश की अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने और प्रधानमंत्री रहते कई कल्याणकारी योजनाओं के लिए लोग आज उन्हें याद कर रहे हैं. 1992 में मनमोहन सिंह ने प्रसार भारती को एक इंटरव्यू दिया था जिसमें उन्होंने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और बेरोजगारी दूर करने पर अपने विचार साझा किए थे.
1992 में मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री थे. डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में कार्य करते हुए साल 1991 में शुरू किए गए आर्थिक उदारीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसमें सरकारी नियंत्रण को कम करना, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ाना और स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स को लागू करना शामिल था, जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया था.
जब मनमोहन सिंह ने बताया बेरोजगारी दूर करने का तरीका
इंटरव्यू में मनमोहन सिंह ने कहा, 'बेरोजगारी को लेकर मेरा विचार है कि सिर्फ मांग को बढ़ावा देने से अगर भारत की बेरोजगारी दूर हो सकती तो वो कोई मुश्किल नहीं है. डेफिसिट फाइनेंसिंग जितना आप करना चाहे कर सकते हैं तो मैं इस चीज से बिल्कुल सहमत नहीं हूं कि बेरोजगारी को दूर करने के लिए हमें डेफिसिट फाइनेंसिंग करना है और डिमांड को बढ़ाना है, चाहे उसके लिए हमारे पास साधन ही नहीं हो.'
उन्होंने कहा, 'मेरा ये यकीन है कि आप फिस्कल डेफिसिट को कंट्रोल कीजिए और उसके साथ जो स्ट्रक्चरल चेंज हमने लाए हैं, टैक्स में, इंपोर्ट में उससे सप्लाई रिस्पॉन्स इतने बढ़ेंगे कि कुछ ही अरसे में आप देखेंगे कि देश की आर्थिक हालत पर उसका बहुत अच्छा असर पड़ेगा. इन्वेस्टमेंट बढ़ेगी, इन्वेस्टमेंट प्रॉफिटेबिलिटी बढ़ेगी. उसके साथ बेरोजगारी भी कम होगी.'
1991 से 1996 के बीच रहे भारत के वित्तमंत्री
1971 में मनमोहन सिंह भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए. इसके तुरंत बाद 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में उनकी नियुक्ति हुई. वह जिन कई सरकारी पदों पर रहे उनमें वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी शामिल है. मनमोहन सिंह 1991 से 1996 के बीच भारत के वित्तमंत्री भी रहे. आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति शुरू करने में उनकी भूमिका को दुनिया भर में आज भी सराहा जाता है.
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