सामना में UPA को बताया गया NGO जैसा, लिखा- सरकार पर दबाव बनाने में रहे नाकाम

सामना में लिखा गया, कांग्रेस के नेतृत्व में एक 'यूपीए' नामक राजनीतिक संगठन है. उस ‘यूपीए’ की हालत एकाध ‘एनजीओ’ की तरह होती दिख रही है. ‘यूपीए’ के सहयोगी दल भी किसानों के असंतोष को गंभीरता से लेते दिखाई नहीं देते. ‘यूपीए’ में कुछ दल होने चाहिए लेकिन वे कौन और क्या करते हैं? इसको लेकर भ्रम की स्थिति है.

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी

मुस्तफा शेख

  • मुंबई,
  • 26 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 9:44 AM IST
  • सामना में यूपीए और उसके विपक्षियों पर हमला
  • कहा- एनजीओ जैसी है यूपीए

शिवसेना के मुखपत्र सामना में शनिवार को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) और उसके सहयोगियों पर जमकर बोला गया. किसान आंदोलन को लेकर विपक्षी दलों के एकजुट न होने को लेकर भी सामना में उनकी आलोचना की गई. संपादकीय में शिवसेना ने कहा, अगर किसान आंदोलन के 30 दिनों के बाद भी नतीजा नहीं निकल पाया है तो सरकार यह सोचती है कि उसे कोई राजनीतिक खतरा नहीं है. किसी भी लोकतंत्र में विपक्ष अहम किरदार अदा करता है. लेकिन कांग्रेस और यूपीए मोदी सरकार पर दबाव बनाने में नाकाम रहे. 

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'एनजीओ जैसा है यूपीए'

सामना में लिखा गया, कांग्रेस के नेतृत्व में एक 'यूपीए' नामक राजनीतिक संगठन है. उस ‘यूपीए’ की हालत एकाध ‘एनजीओ’ की तरह होती दिख रही है. ‘यूपीए’ के सहयोगी दल भी किसानों के असंतोष को गंभीरता से लेते दिखाई नहीं देते. ‘यूपीए’ में कुछ दल होने चाहिए लेकिन वे कौन और क्या करते हैं? इसको लेकर भ्रम की स्थिति है.

राहुल पर्याप्त कर रहे हैं लेकिन...

सामना ने लिखा, 'राहुल गांधी पर्याप्त काम कर रहे हैं लेकिन उनके नेतृत्व में कुछ कमी है. कांग्रेस को पूर्णकालिक अध्यक्ष की जरूरत है. यूपीए को ज्यादा क्षेत्रीय पार्टियों की जरूरत है लेकिन ऐसा भविष्य में संभव होता दिखाई नहीं देता. केवल शरद पवार ही यूपीए में नजर आते हैं. उनकी स्वतंत्र सोच है. उनके अनुभव का लाभ प्रधानमंत्री मोदी तक लेते हैं.'

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सामना में आगे कहा गया कि यूपीए में गड़बड़ है और विपक्ष को एकजुट करने के लिए नेतृत्व की जरूरत है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अन्य राज्यों में नेता बीजेपी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन वे यूपीए के बैनर तले नहीं आना चाहते. ममता बनर्जी ने एनसीपी चीफ शरद पवार की मदद ली क्योंकि बीजेपी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर बंगाल में राज्य सरकार पर दबाव बना रही थी. शरद पवार पश्चिम बंगाल जा रहे हैं. यही वक्त है, जब विपक्ष एकजुट हो और ममता बनर्जी को समर्थन दे, तभी बीजेपी पर दबाव बनाया जा सकता है. 

'विपक्ष करे आत्मचिंतन'

सामना में आगे लिखा गया, 'फिलहाल, लोकतंत्र का जो अधोपतन शुरू है, उसके लिए भारतीय जनता पार्टी या मोदी-शाह की सरकार जिम्मेदार नहीं है, बल्कि विरोधी दल सबसे ज्यादा जिम्मेदार है. वर्तमान स्थिति में सरकार को दोष देने की बजाय विरोधियों को आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है.' 

'सरकार के मन में विपक्ष का अस्तित्व नहीं'

शिवसेना के मुखपत्र में लिखा गया, 'गुरुवार को कांग्रेस ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नेतृत्व में किसानों के समर्थन में एक मोर्चा निकाला. राहुल गांधी और कांग्रेस के नेता दो करोड़ किसानों के हस्ताक्षर वाला निवेदन पत्र लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे. वहीं विजय चौक पर प्रियंका गांधी आदि नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.  गत 5 वर्षों में कई आंदोलन हुए. सरकार ने उनको लेकर कोई गंभीरता दिखाई हो, ऐसा नहीं हुआ. यह विरोधी दल की ही दुर्दशा है. सरकार के मन में विरोधी दल का अस्तित्व ही नहीं है. '

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