भाजपा ने अपना नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने की दिशा में एक और कदम बढ़ा दिया है. पार्टी ने कुछ राज्यों में अपने पार्टी अध्यक्षों का का चुनाव कर लिया है. दरअसल, जेपी नड्डा के स्थान पर नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करने के लिए, बीजेपी को एक निश्चित संख्या में राज्यों में नए पार्टी अध्यक्षों का चुनाव करना होता है. इसके लिए पार्टी पहले विभिन्न राज्यों में संगठन के चुनाव करा रही है, जिसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर संगठन के चुनाव होंगे. बता दें कि बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल करीब 2 साल पहले समाप्त हो चुका है, उन्हें लगातार एक्सटेंशन दिया जा रहा है.
बीजेपी के इतिहास में ये पहला मौका है, जब किसी अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, इतने लंबे समय तक, नया अध्यक्ष नहीं चुना गया है. पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तभी हो सकता है कि जब कम से कम 19 राज्यों में अध्यक्ष की नियुक्ति हो चुकी हो और अगले 2 दिन में यह लक्ष्य पार हो जाएगा. बीजेपी अगले 2 दिन में 26 राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव करा लेगी. आपको बता दें कि बीजेपी की 37 मान्यता प्राप्त स्टेट यूनिट्स हैं, पार्टी के संविधान के मुताबिक 50% राज्यों में संगठनात्मक चुनाव होने के बाद ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होता है.
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बीजेपी के संविधान के मुताबिक पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष वही व्यक्ति हो सकता है, जो कम से कम 15 सालों तक पार्टी का सदस्य रहा हो. बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचक मंडल करता है, जिसमें संघ की भी अहम भूमिका बताई जाती है. फिलहाल बीजेपी ने जिस तेजी से हाल ही में, राज्यों में अपने अध्यक्ष नियुक्त किये हैं, उससे यही लगता है कि अब बहुत जल्दी, नए राष्ट्रीय अध्यक्ष पर तस्वीर साफ हो जाएगी. बीजेपी के संविधान में लिखा है कि निर्वाचक मंडल में से कोई भी 20 सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के नाम का संयुक्त रूप से प्रस्ताव कर सकते हैं. ये संयुक्त प्रस्ताव, कम से कम ऐसे 5 प्रदेशों से आना जरूरी है, जहां राष्ट्रीय परिषद के चुनाव संपन्न हो चुके हों.
राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की ओर बीजेपी का एक और कदम
बीजेपी ने संगठन पर्व के दूसरे चरण में 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय परिषद के चुनाव करा लिए हैं. अगले 2 दिन में मध्य प्रदेश, दमन दीव, लद्दाख और पश्चिम बंगाल में भी प्रदेश अध्यक्ष चुन लिए जाएंगे. यानी पार्टी के संविधान के मुताबिक जरूरी 19 राज्यों में संगठन चुनावों का आंकड़ा पार होकर, 26 राज्यों तक पहुंच जाएगा. तीसरे दौर में उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा और कर्नाटक जैसे राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव पूरे होंगे. फिलहाल बीजेपी अध्यक्ष पद की दौ़ड़ में जिन नामों की चर्चा है, उनमें कई केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं, इसलिए उनके चयन की स्थिति के बाद कैबिनेट फेरबदल की भी संभावना जताई जा रही है.
सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुलाई के दूसरे सप्ताह में विदेश यात्रा से वापसी के बाद, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा की जा सकती है. फिलहाल नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने, आने वाले समय में कई चुनौतियां भी होंगी, जिनमें नवंबर में होने वाले बिहार और 2026 में बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम विधानसभा के चुनाव शामिल हैं. इसके अलावा कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर टकराव बना हुआ है. यूपी में विधानसभा चुनाव केवल डेढ़ साल दूर हैं, लिहाजा पार्टी को सोच समझकर फैसला करना है. दुविधा गुजरात में भी बनी हुई है, क्योंकि जिस तरह से गुजरात में सभी जिलाध्यक्षों के चुनाव हो चुके हैं, तो फिर प्रदेश अध्यक्ष पर क्यों पेच फंसा है?
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BJP के सामने कर्नाटक में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव चुनौती
इसी तरह कर्नाटक में भी बीजेपी के सामने बड़ी विकट स्थिति है. पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा चाहते हैं कि उनके बेटे विजयेंद्र को ही एक बार फिर प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए, लेकिन मामला इतना आसान नहीं. ऐसे में, सवाल ये है कि क्या बीजेपी इन राज्यों में संगठन का चुनाव कराए बिना ही, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव कर लेगी? सवाल ये भी है कि नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर, क्या बीजेपी और संघ में आम सहमति बन गई है? क्योंकि जेपी नड्डा ने साल 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान एक बयान दिया था, जिसके बाद बीजेपी से संघ की नाराजगी बढ़ गई थी. जेपी नड्डा ने कहा था कि जब बीजेपी कमजोर थी तो उसे आरएसएस की जरूरत थी, अब बीजेपी खुद मजबूत है तो उसे संघ की वैसी जरूरत नहीं है.
लेकिन इन खबरों को बहुत ही जल्द खारिज कर दिया गया. 29 अप्रैल को जब पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई थी, तो पहली बार मोहन भागवत प्रधानमंत्री आवास पहुंचे थे. तो क्या, वहां भी बीजेपी अध्यक्ष को लेकर कोई बात हुई थी? सूत्रों की मानें तो संघ की तरफ से बीजेपी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर सारे मानदंड बता दिये गए हैं. बीजेपी के लिए नया अध्यक्ष बहुत ही महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि उसे साल 2029 के लोकसभा चुनावों की तैयारी करनी होगी. वहीं बीजेपी के लिए साल 2027 में यूपी विधानसभा चुनाव काफी अहम है. खासकर साल 2024 के लोकसभा चुनावों में, बीजेपी को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करना भी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है.
उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी को सारे समीकरण साधने जरूरी
ऐसे में उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी के लिए, सारे समीकरण साधने जरूरी हैं. और वहीं पर प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव बीजेपी के लिए एक चैलेंज बना हुआ है. यूपी में बीजेपी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, तो फिर क्यों उनकी जगह नए चेहरे की तलाश अभी तक पूरी नहीं हो पाई है? महाराष्ट्र में रवींद्र चव्हाण को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष चुन लिया गया है. मध्य प्रदेश में हेमंत खंडेलवाल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष होंगे. उत्तराखंड में महेंद्र भट्ट दूसरी बार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं. हिमाचल प्रदेश में राजीव बिंदल को तीसरी बार बीजेपी ने प्रदेश की कमान सौंपी है. तेलंगाना में रामचंदर राव को प्रदेश अध्यक्ष चुना गया है. इन राज्यों ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की लाइन क्लीयर कर दी है.
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यूपी में 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी के अंदर जिस तरह मतभेद सामने आए थे, तो क्या प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव भी उन्हीं मतभेदों के कारण अटका हुआ है? आपको बता दें कि यूपी में लोकसभा चुनावों के नतीजे गड़बड़ाने से बीजेपी में बात उठी थी कि सरकार से बड़ा संगठन होता है. उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने यह बयान दिया था, जिसके बाद उनके और सीएम योगी के बीच मनमुटाव की अटकलें लगने लगी थीं. हालांकि, बीजेपी की तरफ से सारे मतभेद सुलझाने का दावा किया गया था. लेकिन सवाल ये है कि प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव पर बीजेपी की गाड़ी क्यों अटकी है? बीजेपी ने इस साल मार्च में ही लगभग 70 जिला अध्यक्षों और नगर अध्यक्षों की नियुक्ति कर दी थी. लेकिन कुछ जिला अध्यक्षों और नगर अध्यक्षों के पद अब भी खाली हैं और प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव से पहले ये पद भी भरे जाने हैं. तीन महीने से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी, सवाल यही बना हुआ है कि यूपी में बीजेपी को अगला अध्यक्ष कब मिलेगा?
उत्तर प्रदेश में बीजेपी दरअसल जातीय समीकरणों को भी परख रही है. अखिलेश यादव ने पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक (PDA) का झंडा उठा रखा है और 2027 के चुनाव से पहले बीजेपी को इसकी काट ढूंढनी है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में संघ जिस तरह अपनी भूमिका चाहता है, कुछ वैसा ही उत्तर प्रदेश में भी चाहता है. आपको बता दें कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले भी, यूपी में पार्टी की अंतर्कलह इतनी बढ़ गई थी कि मामले की गंभीरता को देखते हुए संघ को हस्तक्षेप करना पड़ा था. संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने साथ लेकर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या के घर उनके बेटे की शादी की बधाई देने के लिए गए थे.
यूपी बीजेपी अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं ये प्रमुख नाम
ऐसे में संघ और पार्टी दोनों चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष संगठन को मजबूत करने वाला ही हो. सूत्रों की मानें तो उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संभावित नामों पर चर्चा कर चुके हैं. यही नहीं, कई दलित और ओबीसी चेहरों को लेकर संगठन से सुझाव भी मांगे गए हैं. लेकिन आखिरी फैसला अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी को ही लेना है. यूपी में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लिए जिन ओबीसी चेहरों पर चर्चा हुई है, उनमें योगी सरकार में पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह, और केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा के नाम भी शामिल हैं. ये दोनों लोध बिरादरी से आते हैं. ओबीसी चेहरो में पूर्व केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति और राज्यसभा सांसद बाबूराम निषाद के नाम पर भी चर्चा चल रही है.
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इसके अलावा योगी आदित्यनाथ की पसंद के तौर पर दो नाम सामने हैं, जिनमें जलशक्ति मंत्री और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, जो ओबीसी हैं और कुर्मी समाज से आते हैं, और दूसरे ब्राह्मण चेहरे के रूप दिनेश शर्मा बताए जा रहे हैं. जबकि दलित समाज से पूर्व केंद्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया, जो केंद्र में पार्टी महासचिव रह चुके हैं, उनके साथ-साथ विद्यासागर सोनकर और विनोद सोनकर के नाम पर चर्चा हुई है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पार्टी आलाकमान किसी ओबीसी या दलित को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहता है. प्रदेश की सत्ता पर योगी आदित्यनाथ विराजमान हैं, जो ठाकुर जाति से आते हैं. सत्ता सवर्ण हाथों में है, तो पार्टी की रणनीति संगठन की जिम्मेदारी ओबीसी या फिर दलित को सौंपने की है.
बीते लोकसभा चुनाव में दलित और ओबीसी दोनों ही वर्गों के वोट बीजेपी से छिटके हैं, ऐसे में पार्टी तय नहीं कर पा रही है कि मौजूदा हालात में किस वर्ग पर दांव खेल जाए. उत्तर प्रदेश में फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव टाले जाने की जो सबसे बड़ी वजह है, वो प्रदेश में कई स्तर पर होने वाले बदलाव हैं. प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के साथ ही योगी कैबिनेट में फेरबदल होगी. केशव प्रसाद मौर्य को क्या कोई नई जिम्मेदारी मिल सकती है, इस पर भी चर्चा चल रही है. क्या संगठन में उन्हें कोई बड़ा पद दिया जा सकता है.
आजतक ब्यूरो