हर साल मॉनसून मुंबई वालों के लिए राहत की जगह आफत लेकर आता है. दो दिन की बारिश में ही पूरा शहर पानी-पानी हो जाता है. लोकल ठप हो जाती हैं, हवाई यात्राएं चौपट होने लगती हैं.स्कूल-कॉलेज बंद हो जाते हैं. हर इलाके में जलभराव हो जाता है. इस बार तो तकनीकी खराबी और बारिश की वजह से मोनो रेल तक फंस गई.
मंगलवार शाम को भारी बारिश के बीच दो मोनोरेल अलग-अलग स्टेशनों के बीच खराब हो गईं, जिससे करीब 800 यात्री फंस गए. पहली घटना में 582 यात्रियों को क्रेन की मदद से बाहर निकाला गया, जो डेढ़ से दो घंटे तक पावर फेल्योर की वजह से मोनोरेल के अंदर फंसे रहे. दूसरी घटना में लगभग 200 यात्रियों को थोड़ी देर बाद सुरक्षित निकाला गया. ये घटनाएं उस समय हुईं, जब भारी बारिश के चलते हार्बर और सेंट्रल लाइन की लोकल ट्रेन सेवाएं ठप हो गई थीं.
मोनोरेल मुंबई में 20 किमी लंबे रूट पर चेंबूर से संत गाडगे महाराज चौक तक चलती है. मंगलवार को शाम 6.38 बजे भक्ति पार्क और मैसूर कॉलोनी के बीच मोनोरेल का एक रैक मोड़ पर झुक गया. बताया गया कि लोकल ट्रेनें बंद होने के कारण भारी भीड़ मोनोरेल में चढ़ गई, जिससे पावर आउटेज (बिजली गुल) की स्थिति बनी.
मोनोरेल डेढ़ घंटे से ज़्यादा समय तक फंसी रही, इस दौरान कई यात्रियों को घुटन महसूस हो रही थी, जिनमें से 23 लोगों का मौके पर ही इलाज किया गया, जबकि 2 लोगों को सायन अस्पताल ले जाया गया, जिनमें एक 20 वर्षीय युवती भी शामिल थी. जब एजेंसियां मौके पर पहुंचीं, तो वे दरवाज़ा नहीं खोल पाए. दमकल कर्मियों ने खिड़की के शीशे तोड़कर क्रेन की मदद से यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाला और एक बड़ा हादसा टल गया.
क्या कहा MMRDA ने?
मोनोरेल का संचालन करने वाली मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MMRDA) ने शुरुआत में कहा था कि ये घटना मैसूर कॉलोनी स्टेशन के पास बिजली आपूर्ति में मामूली समस्या के कारण हुई. बाद में उसने दावा किया कि यह घटना ट्रेन में अत्यधिक भीड़ के कारण हुई. असली कारण जांच के बाद पता चलेगा. MMRDA के बयान में कहा गया है कि एक मोनोरेल ट्रेन (आरएसटी-4) भक्ति पार्क और चेंबूर के बीच मैसूर कॉलोनी स्टेशन के पास रुक गई. प्रारंभिक जांच से पता चला है कि अत्यधिक भीड़ के कारण ट्रेन का कुल वजन लगभग 109 मीट्रिक टन हो गया, जो इसकी निर्धारित क्षमता 104 मीट्रिक टन से अधिक था. इस अतिरिक्त वजन के कारण पावर रेल और करंट कलेक्टर के बीच यांत्रिक संपर्क टूट गया, जिससे ट्रेन को चलाने के लिए आवश्यक बिजली आपूर्ति बाधित हो गई.
सीएम फडणवीस ने दिए जांच के आदेश
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मोनोरेल के खराब होने के कारणों का पता लगाने के लिए जांच के आदेश दिए हैं. एमएमआरडीए का कहना है कि ये समस्या तकनीकी खराबी के कारण हुई, क्योंकि ट्रेन की बिजली आपूर्ति बाधित हो गई थी. हालांकि इसका वास्तविक कारण जांच के बाद ही स्पष्ट होगा.
घाटे में चल रही मोनोरेल परियोजना
मोनोरेल परियोजना वित्तीय घाटे में है और मोनोरेल को पर्याप्त यात्री नहीं मिल रहे हैं. परियोजना का संचयी घाटा 2023-24 में 520 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान था. MMR में 185 किलोमीटर लंबा मोनोरेल नेटवर्क बनाने के लिए मोनोरेल परियोजना की एक योजना तैयार की गई थी. ये निर्णय लिया गया कि मोनोरेल मार्ग को उन इलाकों से होकर ले जाया जाएगा, जहां बेस्ट की बसें भी पर्याप्त संख्या में नहीं गुजरतीं. जैसे ही एमएमआरडीए को संकेत मिले कि पहला मोनोरेल मार्ग विफल हो रहा है, उसने पूरी परियोजना को बंद कर दिया और 20 किलोमीटर पर ही रोक दिया.
प्रोजेक्ट में लेटलतीफी
मोनोरेल का दूसरा फेस 5 साल बाद शुरू हुआ. पहला चरण 2014 में चेंबूर से वडाला तक शुरू हुआ, दूसरा चरण 2015 में शुरू होना था, लेकिन 2019 में लोअर परेल को जोड़ते हुए शुरू हुआ. तब से यह परियोजना घाटे में चल रही है. ये देश का एकमात्र मोनोरेल मार्ग है जिसे 2460 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था. एक मोनोरेल ट्रेन की यात्री क्षमता लगभग 562 बताई जाती है.
कौन करता है मोनोरेल का संचालन?
MMRDA मोनोरेल को घाटे से उबारने की कोशिश कर रहा है. लेकिन दूसरी ओर मोनोरेल के बंद होने और तकनीकी खराबी की घटनाएं लगातार हो रही हैं. मेसर्स लार्सन एंड टुब्रो और स्कोमी इंजीनियरिंग से मोनोरेल के संचालन, प्रबंधन और रखरखाव की ज़िम्मेदारी लेने के बाद भी MMRDA मोनोरेल में तकनीकी खराबी नहीं रोक पा रहा है. मोनोरेल ट्रेनें कम समय में ही खराब हो गई हैं. इस वजह से लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं.
8 साल पहले मोनोरेल कोच में लग गई थी आग
2017 में मोनोरेल कोच में आग लग गई थी. इस आग में मोनोरेल पूरी तरह जलकर राख हो गई थी. इस दुर्घटना के कारण मोनोरेल नौ महीने तक बंद रही. इससे MMRDA को भारी आर्थिक नुकसान भी हुआ. इस घटना के बाद ही MMRDA ने निजी संस्थाओं से मोनोरेल परियोजना का कार्यभार संभाला. चूंकि वर्तमान ट्रेनें विदेशों में बनी हैं, और उनकी मरम्मत करना मुश्किल है. दिसंबर तक मोनोरेल बेड़े में 10 घरेलू निर्मित मोनोरेल ट्रेनें शामिल किए जाने की योजना है. इनमें से सात गाड़ियाँ मुंबई पहुँच चुकी हैं और उनका परीक्षण चल रहा है.
मुस्तफा शेख