महाराष्ट्र चुनाव 2024 में बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति की जीत में माधव फार्मूला (माली, धनगर, वंजारी) एक प्रभावशाली फैक्टर बना. यह फार्मूला अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के प्रमुख समुदायों को एकजुट करके उनके समर्थन को सुनिश्चित करने पर आधारित था. इसका उद्देश्य OBC वोट बैंक को मजबूत करना और विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और महाविकास अघाड़ी (MVA) को चुनौती देना था.
माधव फार्मूला के प्रमुख बिंदु
OBC समुदायों पर फोकस: बीजेपी ने माली, धनगर, वंजारी जैसे प्रभावशाली OBC समुदायों पर फोकस किया, जो ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रहते हैं. इन समुदायों को जोड़कर बीजेपी ने OBC वोटों का ध्रुवीकरण किया.
मराठा आरक्षण पर संतुलन
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय की आरक्षण की मांग ने OBC समुदायों में उनके अधिकारों पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंताएं पैदा की थीं. बीजेपी ने OBC समुदाय को आश्वस्त करने के लिए यह संदेश दिया कि उनको मिलने वाला आरक्षण सुरक्षित रहेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा 'एक हैं तो सेफ हैं' इसी रणनीति का हिस्सा था.
OBC और गैर-मराठा वोट बैंक की मजबूती: इस फार्मूले ने महायुति को OBC और गैर-मराठा हिंदू वोटों को एकजुट करने में मदद की. इसके अलावा, बीजेपी ने धनगर और अन्य OBC समूहों के लिए अलग-अलग योजनाओं और नीतियों का वादा किया, जिससे उन्हें और मजबूती मिली.
क्षेत्रीय प्रभाव
माधव फार्मूला ने विदर्भ, मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में महायुति को निर्णायक बढ़त दिलाई. विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्र, जहां खेती-किसानी और आरक्षण प्रमुख मुद्दे थे, इन क्षेत्रों में इस रणनीति का खास असर रहा.
चुनौती और नतीजे
हालांकि, OBC और मराठा समुदायों के बीच संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण था. फिर भी, OBC के बड़े हिस्से का समर्थन बीजेपी के पक्ष में आने से महायुति को बहुमत तक पहुंचने में मदद मिली. यह रणनीति महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में बीजेपी की स्थिति मजबूत करने का महत्वपूर्ण साधन बनी. माधव फार्मूला ने दिखाया कि जातीय और सामुदायिक गणित को समझकर सही संदेश और रणनीति से चुनावी नतीजे बदल सकते हैं.
माधव फॉर्मूला (माली, धनगर, वंजारी) की शुरुआत महाराष्ट्र में 1980 के दशक में हुई थी. इस रणनीति का उद्देश्य ओबीसी समुदाय के प्रभावशाली समूहों को बीजेपी के समर्थन में लाना था. इसे बीजेपी नेता वसंतराव भागवत ने प्रमोद महाजन, गोपीनाथ मुंडे, पांडुरंग फुंडकर और महादेव शिवणकर जैसे नेताओं के साथ मिलकर लागू किया था. यह फॉर्मूला ओबीसी समुदाय की बड़ी संख्या वाले समूहों- माली, धनगर, और वंजारी—को साथ जोड़ने पर केंद्रित था, क्योंकि इनका प्रभाव राज्य के कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक है.
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इस फॉर्मूले ने बीजेपी को राज्य में अपनी जड़ें मजबूत करने में मदद की, विशेष रूप से कोल्हापुर, सांगली, सोलापुर, पुणे, अकोला, नांदेड़, और यवतमाल जैसे क्षेत्रों में. गोपीनाथ मुंडे ने इसे और सफल बनाया, विशेष रूप से 2014 के चुनावों में, जहां धनगर समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का वादा भी किया गया था. इसके परिणामस्वरूप बीजेपी ने ओबीसी मतदाताओं के बीच बड़ी पकड़ बनाई. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस पुराने फॉर्मूले को फिर से अपनाया ताकि मराठा और ओबीसी समूहों के बीच संतुलन बनाकर एक व्यापक जनाधार तैयार किया जा सके. इसने महायुति गठबंधन को बड़ी जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई.
(रिपोर्ट- नीरज)
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