इंसान के डॉक्टरों की तरह जानवरों के डॉक्टर भी अपने मरीज की जान बचाने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं. हालात इमरजेंसी के हों तो जानवरों के डॉक्टर भी बिना देरी किए अपने मरीज के लिए हाजिर होते हैं. वहीं हालात जो भी हों, इन्हें पालने वाले परिवार भी इनकी देखरेख में कोई कमी नहीं छोड़ते. इसका जीता जागता उदाहरण तब देखने को मिला जब दिल की जानलेवा बीमारी से पीड़ित एक कुत्ते के ऑपरेशन के लिए एक सर्जन जर्मन से मुंबई पहुंचा. इसके बाद डॉक्टरों ने वैफल नाम के माल्टीज कुत्ते की ओपन-हार्ट सर्जरी की.
जन्म से ही दिल की बीमारी से पीड़ित था वैफल
वैफल जब सिर्फ एक महीने का था तब उसे पालने वाले परिवार को एहसास हुआ कि उसके साथ कुछ तो सामान्य नहीं था. वैफल की मालिक मुंबई के जुहू की निवासी रानी वंकावाला ने बताया कि वैफल को चार साल पहले घर लाया गया था. जब मैंने पहली बार उसे पकड़ा, तो मुझे एक असामान्य आवाज और कंपन महसूस हुई. जब डॉक्टरों के पास लेकर पहुंचे तो हमें मालूम हुआ कि उसे जन्म से ही दिल की बीमारी है, जिसे पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस भी कहा जाता है .
ओपन चेस्ट कार्डियक सर्जरी के लिए जर्मनी से बुलाए सर्जन
वंकावाला ने आगे बताया वैफल की स्थिति का एहसास होने के बाद हमने उसे एक गैर-इवेसिव सर्जरी के लिए अमेरिका या यूरोप भेजने के बारे में सोचा लेकिन कोविड के कारण ये संभव नहीं था. पिछले कुछ महीनों में हम डॉ मथियास फ्रैंक से मिले जिन्होंने कहा कि उन्होंने यह सर्जरी पहले भी की है. इसलिए, हमने उन्हें जर्मनी से बुलाने और उनसे ही वैफल की ओपन चेस्ट कार्डियक सर्जरी कराने फैसला किया.
'इतनी गंभीर बीमारी में भी चार साल जीवित रहा'
पशु हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ दीप्ती देशपांडे ने कहा - चमत्कारी बात यह थी कि इस गंभीर बीमारी के बाद भी वैफल चार साल से जीवित था. हमने सोचा थी कि इस बीमारी के साथ वह एक साल से अधिक जीवित नहीं रहेगा. वह बच गया और जैसा कि हमने देखा कि उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी तो हमने सर्जरी कराने का फैसला किया. हमने जर्मनी के कार्डियक सर्जन डॉ. मथियास फ्रैंक से संपर्क किया जिन्होंने विदेश में रहकर पहले इस तरह की सर्जरी की है. इस सर्जरी को पेटेंट आर्टेरियसस का सर्जिकल लिगेशन कहा जाता है और इसे डॉ. चौसालकर के टॉप डॉग पेट्स क्लिनिक में किया गया था.
थोड़ा-थोड़ा खाने देते थे, वजन नहीं बढ़ने दिया
वंकावाला ने कहा कि उनका पहला प्लान कुत्ते को सर्जरी के लिए यूके ले जाने का था, जहां एक गैर-इनवेसिव ऑपरेशन किया जाएगा. अगर भारत में ये किया जाता, तो यह एक ओपन-हार्ट सर्जरी होती, जिसमें अब तक बहुत कम सफलता मिली है. इस उम्र तक वैफल पालने में बहुत सावधानी बरती गई. यह भी उसके जीवित रहने का बड़ा कारण था. उन्होंने आगे बताया कि हमने बीमारी में उसका बहुत ध्यान रखा. हमने उसका वजन नहीं बढ़ने दिया और हम उसे थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कई बार खाना देते थे. वह घर का चक्कर लगाकर थक जाता था इसलिए हम उसे सैर के लिए बाहर नहीं ले जाते थे. वह एक फाइटर है. डॉक्टरों ने कहा था कि सर्जरी टेबल पर भी उसकी मौत हो सकती है. लेकिन मेरे बच्चों ने कहा कि कोशिश करके देखते हैं. सर्जरी के चार हफ्ते बाद, वैफल अब ठीक है और वापस शरारतें करने लगा है. परिवार इस बात से खुश है कि वैफल आखिरकार पूरी तरह ठीक हो गया.
मुस्तफा शेख