मंडी एक्ट में संशोधन के बाद क्या हैं हालात? एमपी से ग्राउंड रिपोर्ट

कोरोना संकट में किसानों की फसल की उचित बिक्री के मद्देनजर मध्य प्रदेश सरकार ने मंडी एक्ट में बदलाव कर किसानों को बड़ी राहत दी है. सरकार ने गेहूं के लिए समर्थन मूल्य 1,925 रुपए रखा है. मध्य प्रदेश की अनाज मंडियों से पढ़िये आज तक की ग्राउंड रिपोर्ट.

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अनाज मंडियों में सीमित संख्या में पहुंच रहे हैं किसान (तस्वीर- आज तक) अनाज मंडियों में सीमित संख्या में पहुंच रहे हैं किसान (तस्वीर- आज तक)

रवीश पाल सिंह

  • भोपाल,
  • 06 मई 2020,
  • अपडेटेड 8:46 AM IST

  • सीमित संख्या में मंडी पहुंच रहे हैं किसान
  • मंडी एक्ट में संशोधन से किसानों को राहत

कोरोना संकट में किसानों की उपज उचित कीमत पर बिक सके इसे ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने बड़ा फैसला किया है. सरकार ने मंडी एक्ट में संशोधन कर किसानों को बड़ी राहत दी है. मंडी एक्ट में संशोधन से किसान को क्या राहत मिल रही है, इसे जानने के लिए आज तक की टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची.

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मध्य प्रदेश में इन दिनों सरकार किसानों से गेंहू खरीद रही है. इसके लिए सरकार ने बाकायदा 1,925 रुपये का समर्थन मूल्य भी तय किया है. लेकिन कोरोना की वजह से किसानों को मंडियों में सीमित संख्या में बुलाया जा रहा है. इससे किसानों को फसल बेचने में देरी हो रही है.

कोरोना की वजह से इस बार नई व्यवस्था के तहत किसानों को मोबाइल पर संदेश भेजे जा रहे हैं कि उन्हें किस तारीख पर कितनी उपज लेकर आना है. इससे उपज बेचने में किसान को देरी भी हो रही है और अगली फसल लगाने के लिए पैसों की जो जरूरत है उसमें भी देरी हो रही है.

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निजी व्यापारियों को भी बेचा जा रहा गेहूं

किसानों को हो रही इसी समस्या को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने मंडी एक्ट में कुछ संशोधन किए हैं जिससे किसान चाहे तो अपनी फसल को उपार्जन केंद्र में आकर बेचे या निजी व्यापारियों को प्राइवेट मंडी में जाकर बेचे.

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मंडी एक्ट में संशोधन के बाद आजतक की टीम भोपाल-रायसेन की सीमा पर स्थित अमरावद कलां गांव पहुंची जहां इन दिनों गेहूं की फसल बेची जा रही है. यहां हमें आसपास के गांव से आए कई किसान मिले जो अपनी उपज यहां तो बेचने आए ही, वहीं इसके अलावा निजी व्यापारियों को भी गेहूं बेच रहे हैं.

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खेत में आ रहे व्यापारी

शोभापुर गांव के रहने वाले किसान महेश जिनके खेत में 750 क्विंटल गेहूं की पैदावार हुई है. महेश मंडी में 450 क्विंटल गेहूं लेकर आए लेकिन फोन पर उन्हें व्यापारियों के भी कॉल आ रहे हैं जो उनका गेहूं खरीदना चाहते हैं. यही नहीं, किसान ने बाकायदा अपना करीब 100 क्विंटल गेहूं हाल ही में मंडीदीप के एक व्यापारी को बेचा. इसके लिए इन्हें मंडी तक नहीं जाना पड़ा बल्कि व्यापारी खुद इनके खेत आए और सौदा किया.

हम्माली और ढुलाई का खर्चा भी व्यापारी ने ही वहन किया. इसी वजह से फिलहाल मंडी एक्ट में संशोधन के बाद किसान खुश दिखाई दे रहे हैं क्योंकि वहां उन्हें समर्थन मूल्य से 25 रुपये प्रति क्विंटल भाव ज्यादा मिल रहा है.

किसानों का बचा खर्चा

भोजनगर गांव के रहने वाले किसान प्रेम कुमार लोधी भी इस बात से खुश हैं कि मंडी एक्ट में संशोधन के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि व्यापारी ना केवल उनके खेत में आकर फसल खरीद रहे हैं बल्कि भाड़ा, तुलाई और हम्माली भी खुद ही दे रहे हैं, जिससे उपज का जो भाव मिल रहा है उसमें उन्हें खर्चा नहीं काटना पड़ रहा है .

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मंडी में गेहूं लाने पर उन्हें ट्रैक्टर का भाड़ा और मजदूरों को हम्माली भी देनी पड़ती थी. प्रेम कुमार लोधी ने हाल ही में निजी व्यापारी को करीब 160 क्विंटल गेहूं सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से 25 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा की दर से बेचा है.

दरअसल, हाल ही में शिवराज सरकार ने मंडी अधिनियम के इन कानूनी प्रावधानों में संशोधन किया है-

1. निजी क्षेत्रों में मंडियों की स्थापना हेतु प्रावधान किया गया है.

2. गोदामों साइलो कोल्ड स्टोरेज आदि को भी प्राइवेट मंडी घोषित किया जा सकेगा.

3. किसानों से मंडी के बाहर ग्राम स्तर से फूड प्रोसेसर निर्यातकों होलसेल विक्रेता व अंतिम उपयोगकर्ताओं को सीधे खरीदने का प्रावधान किया गया है.

4. मंडी समितियों को निजी मंडियों के कार्य में कोई हस्तक्षेप नहीं रहेगा.

5. प्रबंध संचालक मंडी बोर्ड से रेगुलेटरी शक्तियों को पृथक कर संचालक विपणन को दिए जाने का प्रावधान किया गया है.

6. पूरे प्रदेश में एक ही लाइसेंस से व्यापारियों को व्यापार करने का प्रावधान किया गया है.

किसानों पर कम होगा खर्चे का बोझ

शिवराज सरकार में कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है कि इससे किसानों पर खर्चे का बोझ भी कम पड़ेगा. उपज का मूल्य ज्यादा मिलेगा जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर करने में मदद मिलेगी.

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बहरहाल, मंडी एक्ट में संशोधन करने वाला मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य तो बन गया है लेकिन सही मायने में इसका लाभ तो तभी होगा, जब कर्ज से डूबा किसान इससे उबर जाएगा और देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाला किसान आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं होगा.

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