मध्य प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी कही जाने वाले इंदौर में सड़कों पर घूमते आवारा पशुओं को लेकर पशुपालकों के खिलाफ नया फरमान जारी किया गया है.
प्रशासन ने गोपालकों की सूची तैयार की है. जिला प्रशासन 27 अगस्त से कार्यवाही की शुरुआत करेगा और जिन गोपालकों के पशु सड़कों पर घूमते दिखेंगे उनके खिलाफ प्रतिबंधात्मक धाराओं के साथ जिलाबदर और रासुका के तहत भी कार्रवाई की जाएगी. इस कार्रवाई में प्रशासनिक अमले के साथ पुलिस और नगर निगम की टीम भी होगी.
डीआईजी इंदौर संतोष सिंह ने बताया कि प्रशासनिक कार्रवाई के दौरान पुलिस बल मौजूद होगा और आदेशानुसार कार्रवाई की जाएगी. डीआईजी ने ये भी बताया कि ट्रैफिक व्यवस्था और पशुओं से होने वाली दुर्घटनाओं के चलते प्रशासन ने बैठक कर पशुपालकों को जिलाबदर करने जैसे निर्णय लिए हैं.
इंदौर की महापौर मालिनी गौड़ भी आवारा पशुओं के आंतक से त्रस्त है. उन्होंने बताया कि कई बार लोगों ने उन्हें फोन कर बताया कि सड़कों पर बैठे पशुओं की वजह से किस तरह दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं. इन्हीं सब बातों को मद्देनज़र रखते हुए जिला कलेक्टर, डीआईजी और महापौर की संयुक्त बैठक में पशुपालकों पर कड़ी कार्रवाई करने का निर्णय लिया गया है.
कुछ साल पहले तक निगम मालवा मिल, जीपीओ में बने कांजी हाउस और कोंदवाड़ों में पकड़े गए पशु रखता था. उस समय इंदौर में 3 कांजी हाउस थे लेकिन अब अब केवल एक ही बचा है. नई कार्य योजना के तहत एक तरफ जहां नगर निगम और जिला प्रशासन पशु पालकों पर सख्त कार्रवाई करेगा. वहीं पशुओं के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाएगी.
इधर कानून के जानकार कलेक्टर के आदेश को विधि की मंशा के विपरीत बता रहे हैं. उनका कहना है कि कलेक्टर गोपालकों को नोटिस जारी कर सकते हैं और उल्लंघन होने पर आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन जिलाबदर और रासुका के तहत किसी भी गोपालक का अपराध सिद्ध करने में प्रशासन के पसीने छूट जाएंगे. बड़ा सवाल ये है कि अगर आरोपी गोपालक अपना पशु मानने से ही इंकार कर देगा तो प्रशासन के पास सच्चाई जानने के लिए कोई विकल्प नहीं है.
गोपालकों के खिलाफ कलेक्टर का आदेश वज्रपात की तरह गिरा है. यादव समाज आदेश के खिलाफ मैदान में उतरने का मन बना चुका है. चेतावनी के लहजे में उनका कहना है कि तुगलकी फरमान के जरिये अगर ज्यादती की गई तो वो कड़ा रुख अख्तियार करेंगे.
केशव कुमार / रवीश पाल सिंह