हिमाचल प्रदेश में कुदरत की तबाही जारी है. आधा से ज्यादा राज्य कुदरत की मार झेल रहा है. लगातार बारिश और पोंग डैम के गेट खुलने से हिमाचल पानी-पानी हो गया है. खेतों में पानी घुस गया है. सारी की सारी फसलें तबाह हो गई हैं. वहीं, हिमाचल में बसे घरों के आसपास बस पानी ही पानी नजर आ रहा है. इसी के साथ, हिमाचल प्रदेश से लैंडस्लाइड की भी खबरें आ रही हैं. प्रभावित इलाकों से लोगों का रेस्क्यू भी जारी है.
हिमाचल में तबाही की तस्वीरें तो लगातार सामने आ रही हैं. ऐसे में समझना जरूरी है कि आखिर क्यों हिमाचल प्रदेश इस संकट का सामना कर रहा है. दरअसल, पोंग डैम से कल यानी 16 अगस्त को 1 लाख 44 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया. पोंग डैम से आज 1 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जाएगा. इस डैम से एक दिन में 50 हजार क्यूसेक पानी छोड़ना ही सुरक्षित रहता है यानी कल औसत से तीन गुना ज्यादा पानी छोड़ा गया जिसका नतीजा सबके सामने है.
पंजाब पर भी टूट सकता है कहर
पोंग डैम का पानी कहर बनकर टूट रहा है. अभी तो डैम के पानी की वजह से हिमाचल में तबाही दिख रही है लेकिन इसका असर पंजाब पर भी पड़ सकता है. पोंग हिमाचल प्रदेश का बेहद अहम बांध है. इसका निर्माण ब्यास नदी पर 1975 में हुआ था. ये डैम पंजाब की भी लाइफलाइन है. हालांकि, अभी जैसे हालात हैं पंजाब में गुरदासपुर, अमृतसर, होशियारपुर, कपूरथला और तरणतारण जिलों तक ब्यास नदी के पानी का कहर पहुंच सकता है. इसलिए पंजाब को भी सावधान रहने की जरूरत है.
हिमाचल की तीनों प्रमुख नदियां उफान पर हैं. ब्यास, रावी और सतलुज नदी तबाही पर उतर आई हैं. हिमाचल में अब तक बाढ़ से 71 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं, 10 हजार करोड़ के नुकसान का अंदाजा है, लेकिन ये सिलसिला थमता नहीं दिख रहा. मौसम विभाग ने हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश का अलर्ट जारी किया है. भारी बारिश हिमाचल प्रदेश में अपने साथ और तबाही लेकर आएगी.
शिमला में घरों पर मंडरा रहा गिरने का डर
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सर्वे की मानें तो हिमाचल प्रदेश में 17 हजार से ज्यादा जगहों पर लैंडस्लाइंड का खतरा बना हुआ है. केवल शिमला में ही 1357 जगहों पर भूस्खलन की आशंका है. सोलन व शिमला में चिकनी मिट्टी है. फोरलेन बनाते वक्त मिट्टी को डंगों के भीतर या सड़क में डंप किया गया है. अब बारिश में मिट्टी फूल रही है जिससे लैंडस्लाइड और सड़क धंसने की खबरें सामने आ रही हैं.
स्पेस एप्लिकेशन सेंटर की मानें तो हिमाचल प्रदेश में 935 ग्लेशियर और झीलों के टूटने का खतरा मंडरा रहा है. वहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की एक्सपर्ट कमेटी की मानें तो शिमला उच्च जोखिम वाले भूकंप क्षेत्र में आता है. अंदेशा पहले ही जताया गया है कि अगर तेज भूकंप आ जाए तो शिमला की 39 फीसदी इमारतें पूरी तरह ढह जाएंगी. वहीं, 20 हजार से ज्यादा लोगों की जान जा सकती है.
मंडी-कुल्लू में तबाही का कारण
दरअसल, हिमाचल में कम जमीन के कारण सड़क किनारे जितनी जमीन खाली छोड़नी जरूरी होती है, वह नहीं छोड़ी जाती जिससे वर्टिकल कटिंग का खतरा बढ़ जाता है. हिमालय के पहाड़ बढ़ रहे हैं. माउंट एवरेस्ट की हाइट भी हर साल एक सेंटीमीटर से ज्यादा बढ़ रही है. ऐसे में जंगलों की अंधाधुंध कटिंग तबाही का बड़ा कारण बन सकती है. वहीं, मंडी और कुल्लू जिले में तबाही का सबसे बड़ा कारण ब्यास में माइनिंग का न होना है. सालों से नदी में माइनिंग नहीं होने से रिवर बेड फैलता जा रहा है. जो पानी नदी के बीचो-बीच बहना चाहिए, वह नदी के किनारे पर बहकर तबाही मचा रहा है.
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