करीब बीस लोगों की उपस्थिति में भारत में लिब्रेऑफिस का पहला मीटअप सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. इस मीटअप की सबसे खास बात यह रही कि यहां इसी मीटअप में गढ़वाली भाषा में कंप्यूटर बनाने की आधारशिला रखी गई. कुछ बुनियादी सूचनाओं के साथ एक लोकल फाइल का निर्माण किया गया और इस काम को अंजाम दिया गढ़वाल की मूल निवासी कुसुम रावत ने.
जीलिब्सी का लोकल फाइल ही वह सूत्र होता है जिसके आधार पर कोई कंप्यूटर किसी भाषा के वजूद को पहचान पाता है कि अमुक भाषा हिंदी है, फ्रेंच या फिर चीनी. इस मीटअप की सफलता की दृष्टि से दूसरी महत्वपूर्ण बात रही अंगिका में लिब्रेऑफिस की शुरुआत. गौरतलब है कि अंगिका के कंप्यूटरीकरण की शुरुआत कम साधन-संपन्न भाषाओं के लिए काम करने वाली स्वैच्छिक संस्था भाषा घर के अंदर ही हो चुकी है और फायरफॉक्स ब्राउजर पर इसके लिए काम शुरू किया जा चुका है.
भारत में मरनासन्न हैं 197 भाषाएं
अंगिका और गढ़वाली भाषा संकट की स्थिति में है और इसके बोलने वाले महज चंद लाखों में हैं. यूनेस्को के भाषा एटलस के आधार पर गढ़वाली को जहां करीब मात्र पौने तीन लाख लोग बोलते हैं, वहीं अंगिका को करीब साढ़े सात लाख. भारत की 197 भाषाएं मरनासन्न हैं, जिनमें से ये दो भाषाएं भी हैं. इस मीटअप का आयोजन लिब्रेऑफिस भारतीय समुदाय की ओर से किया गया. कार्यक्रम की मेजबानी सोशलकॉप्स जैसी जानीमानी स्टार्टअप कंपनी ने अपने दिल्ली के साकेत स्थित कार्यालय में रविवार को किया.
'भाषाओं की डिजिटल मौजूदगी से मिलेगी मजबूती'
कार्यक्रम में बोलते हुए जानेमाने भाषाविद और भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रोफेसर हेमंत जोशी ने उम्मीद जताई कि इन भाषाओं की डिजिटल मौजूदगी इन्हें मजबूती प्रदान करेगी. उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यों के भारी दूरगामी महत्व हैं और साथ ही उन्होंने कुमाऊंनी भाषा के लिए लोकलाइजेशन किए जाने की इच्छा जताई. उन्होंने कहा कि भाषा की मजबूती के लिए जरूरी नहीं कि कोई भाषाविद ही योगदान दे, हर किसी का योगदान महत्वपूर्ण हो सकता है और इस क्षेत्र में लगातार काम किए जाने की जरूरत है.
कार्यक्रम की शुरुआत रेडहैट के सॉफ्टवेयर इंजीनियर चंदन कुमार की प्रस्तुति से हुई, जिसमें उन्होंने लिब्रेऑफिस के एंड्रॉयड संस्करण और कोलेब्रा के सहयोग से तैयार लिब्रेऑफिस ऑनलाइन की चर्चा की. मालूम हो कि लिब्रेऑफिस फ्री और ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का जानामाना ऑफिस सूइट है, जो बेहद लोकप्रिय और निशुल्क उपलब्ध है.
अनुवाद टूल 'पूटल' की दी जानकारी
मेरिटनेशन के सॉफ्टवेयर इंजीनियर त्रिशूल गोयल ने तकनीकी क्षेत्र में लिब्रेऑफिस में योगदान किए जाने के बारे में बताया. सॉफ्टवेयर इंजीनियर और फ्यूल प्रोजेक्ट के लिए स्वैच्छिक रूप से काम कर रहे निशांत और नेहा ने भाषाई संसाधन के संसार से सबसे बड़े खुले संग्रह फ्यूल प्रोजेक्ट की नई वेबसाइट को दिखाया. चंदन ने बाद में तकनीकी अनुवाद टूल 'पूटल' के उपयोग के बारे में लोगों को समझाया.
कार्यक्रम के अंत में लिब्रेऑफिस कम्युनिटी के राजेश रंजन ने कहा कि समुदाय कोशिश करेगी कि सालभर ऐसे कार्यक्रम हों ताकि लिब्रेऑफिस के बारे में लोगों को पता लगे. राजेश रंजन ने आशा जताई कि समुदाय की मदद से लिब्रेऑफिस के लिए बड़ी और कर्मठ कम्युनिटी वे खड़ी कर पाएंगे.
स्वपनल सोनल