सोमवार को नई दिल्ली में करीब 300 विपक्षी सांसदों ने 'वोट चोरी' के आरोपों को लेकर चुनाव आयोग कार्यालय की ओर मार्च निकाला. दिल्ली पुलिस ने उन्हें रास्ते में रोककर हिरासत में लिया और बस में बिठाकर संसद मार्ग पुलिस स्टेशन ले गई. हिरासत में लिए गए नेताओं में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सांसद जयराम रमेश, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और मिताली बाग शामिल थे.
ऐसे हालात में सिक्योरिटी कर्मी, जिनमें X, Y, Y-प्लस, Z, Z-प्लस या स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (SPG) जैसी श्रेणियां शामिल हैं, क्या करते हैं, जब पुलिस उनके संरक्षित नेता को हिरासत में ले रही होती है? खासकर राहुल गांधी जैसे नेता, जिन्हें Z-प्लस सिक्योरिटी मिली है, उनकी सुरक्षा का क्या होता है? उनकी सिक्योरिटी का जिम्मा किसके पास रहता है?
क्या सिक्योरिटी जवान इस प्रक्रिया में दखल देते हैं?
इंडिया टुडे डिजिटल ने इस बारे में एक वरिष्ठ IPS अधिकारी और पूर्व CRPF अधिकारी से बात की, जो SPG में भी काम कर चुके हैं. SPG भारत की सबसे उच्च सिक्योरिटी एजेंसी है, जो वर्तमान में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुरक्षा देती है. 2019 से पहले गांधी परिवार के तीन सदस्यों को भी 28 साल तक SPG कवर मिला था.
भारत में VIP सिक्योरिटी की श्रेणियां
भारत में हाई-रिस्क व्यक्तियों की सुरक्षा छह श्रेणियों में बांटी गई है. ये X, Y, Y-प्लस, Z, Z-प्लस और SPG हैं. इनका निर्धारण गृह मंत्रालय (MHA) खुफिया एजेंसियों जैसे IB और R&AW की जानकारी के आधार पर करता है.
X श्रेणी: 2 सशस्त्र पुलिसकर्मी, कोई कमांडो नहीं.
Y श्रेणी: 8 जवान, जिसमें 1-2 कमांडो.
Y-प्लस: 11 जवान, जिसमें 2-4 कमांडो.
Z श्रेणी: 22 जवान, जिसमें 4-6 NSG कमांडो.
Z-प्लस: सबसे ऊंची गैर-SPG श्रेणी, 55 जवान, 10+ NSG कमांडो, बुलेटप्रूफ गाड़ी और तीन शिफ्ट में एस्कॉर्ट.
SPG: कैबिनेट सचिवालय के तहत एक एलीट फोर्स, जो सिर्फ प्रधानमंत्री और उनके परिवार को सुरक्षा देती है. CRPF, CISF, ITBP और NSG के जवान इन प्रोटोकॉल को लागू करते हैं. CRPF और CISF मिलकर करीब 350 VIPs को सुरक्षा देते हैं, जिनमें 35 Z-प्लस श्रेणी में हैं.
हिरासत या लाठीचार्ज के दौरान सिक्योरिटी का क्या होता है?
एक वरिष्ठ IPS अधिकारी ने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया कि अगर VIP सिक्योरिटी वाला व्यक्ति हिरासत में लिया जाता है तो सिक्योरिटी जवान पुलिस स्टेशन के बाहर रहते हैं. व्यक्ति के रिहा होने के बाद, पुलिस या सिक्योरिटी जवान उसकी सुरक्षा फिर से संभाल लेते हैं. हिरासत में रहने के दौरान व्यक्ति हिरासत लेने वाली एजेंसी की कस्टडी में होता है, लेकिन सिक्योरिटी जवान उस एजेंसी के साथ तालमेल बनाए रखते हैं.
वरिष्ठ IPS अधिकारी ने बताया कि रिहाई के बाद सिक्योरिटी जवान तुरंत अपनी पूरी जिम्मेदारी फिर से संभाल लेते हैं. पूर्व SPG में रहे CRPF अधिकारी ने आगे बताया कि Z+ सिक्योरिटी वाले नेताओं की सुरक्षा CAPF (राज्य पुलिस नहीं) के जवान करते हैं. वे अपने नेता की सुरक्षा करते हैं, लेकिन पुलिस या किसी सिविल अथॉरिटी के काम में बाधा नहीं डालते.
अगर नेता भीड़ में लाठीचार्ज का हिस्सा बन जाए तो क्या होता है?
अधिकारी ने बताया कि ऐसे हालात में सिक्योरिटी जवान अपने नेता की सुरक्षा की कोशिश करते हैं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं करते जिससे पुलिसकर्मियों को चोट पहुंचे. ज्यादातर सिक्योरिटी जवान नेताओं की गतिविधियों जैसे विरोध प्रदर्शन आदि के बारे में पहले से जानते हैं. लेकिन कई बार नेता अचानक कुछ करते हैं तो सिक्योरिटी जवानों को तुरंत फैसला लेना पड़ता है.
CRPF अधिकारी ने बताया कि अगर नेता को हिरासत में लिया जाता है तो सिक्योरिटी जवान दखल नहीं देते, बल्कि उस गाड़ी और जगह को सुरक्षित करते हैं जहां नेता को रखा गया है. उन्होंने आगे बताया कि सिक्योरिटी जवान पुलिस के साथ मिलकर काम करते हैं और हर अपडेट लेते रहते हैं. जैसे ही हिरासत में लिया गया नेता रिहा होता है, वे पुलिस स्टेशन से ही उसकी सुरक्षा फिर से शुरू कर देते हैं.
राहुल गांधी के केस में क्या हुआ?
राहुल गांधी जिन्हें Z-प्लस सिक्योरिटी मिली है, जब हिरासत में लिए गए तो उनके CAPF जवान दिल्ली पुलिस के साथ तालमेल बनाए रखते हुए उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करते रहे. उन्होंने पुलिस की कार्रवाई में दखल नहीं दिया. हिरासत से रिहाई के बाद, CAPF ने उनकी पूरी सुरक्षा फिर से संभाल ली. ये नाजुक संतुलन VIPs की सुरक्षा और कानूनी प्रक्रिया का सम्मान दोनों सुनिश्चित करता है. ये CAPF, स्थानीय पुलिस और अन्य कानून लागू करने वाली एजेंसियों के बीच अनुशासित तालमेल को भी दिखाता है.
सुशीम मुकुल