सुप्रीम कोर्ट ने छुट्टियों के दौरान एक स्पेशल वेकेशन बेंच बनाकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दो अहम मामलों की सुनवाई की. दोनों ही मामलों को लेकर याचिकाकर्ताओं ने तुरंत राहत की मांग की थी. पहला मामला कर्ज वसूली से जुड़ा था, जिसमें एक बैंक द्वारा कर्ज न चुकाने पर याचिकाकर्ता के घर पर कब्जा लेने की कार्रवाई की जा रही थी. इस पर कोर्ट ने संक्षिप्त सुनवाई की.
दूसरा मामला दिल्ली के एक व्यक्ति की कथित अवैध गिरफ्तारी से जुड़ा था. याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि यूपी पुलिस ने उसे दिल्ली से सादे कपड़ों में बिना किसी नोटिस के गिरफ्तार किया और बिसरख थाने में पांच दिन तक अवैध रूप से हिरासत में रखा. बाद में जब गिरफ्तारी से जुड़े सीसीटीवी फुटेज मजिस्ट्रेट को दिखाए गए, तब उसे रिहा किया गया. आरोप है कि कुछ दिन बाद उसे दोबारा उत्तराखंड के हल्द्वानी से गिरफ्तार कर लिया गया.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत देते हुए कहा कि वह पहले संबंधित हाईकोर्ट का रुख करे. कोर्ट ने फिलहाल इस स्तर पर दखल देने से इनकार कर दिया. छुट्टियों के दौरान भी मामलों की तात्कालिकता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट की ये सुनवाई चर्चा में रही.
सुप्रीम कोर्ट के ‘वैकेशन बेंच’ का क्या मतलब है?
सुप्रीम कोर्ट साल में दो बार ग्रीष्म और शीतकालीन अवकाश के दौरान अदालत आम तौर पर बंद रहती है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि कोर्ट पूरी तरह से काम बंद कर देती है. उन छुट्टियों में भी ज़रूरी और तत्काल सुनवाई वाले मामले को देखने के लिए वैकेशन बेंच बनाया जाता है. ये विशेष बेंच सीनियर जज या दो जजों का पैनल होता है, जिसे मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करते हैं.
गौरतलब है कि वैकेशन बेंच उन मामलों को सुन सकता है जिनमें जीवन, आजादी या अन्य संवैधानिक अधिकार पर गंभीर असर पड़ रहा हो, जैसे हैबियस कॉर्पस याचिका, गलत गिरफ्तारी के मामले, मजबूत अंतरिम राहत आदि. इन बेंचों में आए मामले तभी सूचीबद्ध होते हैं जब सत्यापन के बाद कोर्ट खुद तय करे कि यह अतिशीघ्र है और सामान्य सुनवाई तक इंतजार नहीं किया जा सकता. इन बेंचों के कामकाज से अदालत ये सुनिश्चित करती है कि छुट्टियों के दौरान भी न्याय प्रक्रिया बाधित न हो और अगर किसी व्यक्ति की आजादी या अधिकारों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है तो उसे तुरंत राहत मिल सके.
अनीषा माथुर