JNU में मनुस्मृति की प्रतियां जलाने पर बोले छात्र- आपत्त‍िजनक साहित्य जलाना हमारा अधि‍कार

जेएनयू में प्रॉक्टर ने छात्रों से पूछा गया कि क्या मनुस्मृति को जलाना सही है? इस पर छात्र ने कहा कि हमने मनुस्मृति के कुछ पन्नों को जलाया. इनमें महिलाओं के लिए गलत बातें लिखी हुई थीं.

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महिला दिवस पर छात्रों ने जलाए थे मनुस्मृति के पन्ने महिला दिवस पर छात्रों ने जलाए थे मनुस्मृति के पन्ने

केशव कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 22 मार्च 2016,
  • अपडेटेड 8:01 AM IST

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर जेएनयू कैंपस मनुस्मृति की प्रतियां जलाने पर आरोपी छात्रों ने प्रशासन के सवालों का सोमवार को जवाब दिया. छात्रों ने कहा कि आपत्तिजनक साहित्य को जलाना उनका अधिकार है. वामपंथी छात्र संगठनों की अगुवाई में कई छात्रों और एबीवीपी के पूर्व सदस्यों ने साबरमती ढाबा के पास मनुस्मृति के पन्नों को जलाया था.

प्रॉक्टर को दी कार्यक्रम की पूरी जानकारी
मामले में यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने पांच छात्रों को प्रॉक्टर दफ्तर में पेश होकर अपना पक्ष रखने कहा था. इसी के तहत सोमवार को छात्रों ने प्रॉक्टर दफ्तर में जाकर अपना पक्ष रखा. इन छात्रों में शामिल प्रदीप नरवाल दिल्ली से बाहर होने की वजह से अपना पक्ष नहीं रख पाए. कार्यक्रम में शामिल रहे एन. साई बालाजी ने बताया कि प्रॉक्टर दफ्तर पहुंचने पर कमिटी ने 8 मार्च के कार्यक्रम के बारे में पूछा. उन्होंने बताया कि मैंने विस्तार से कार्यक्रम के बारे में बताया.

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महिला विरोधी बातें लिखे होने का आरोप
इसके बाद पूछा गया कि क्या मनुस्मृति को जलाना सही है? इस पर छात्र ने कहा कि हमने मनुस्मृति के कुछ पन्नों को जलाया. इनमें महिलाओं के लिए गलत बातें लिखी हुई थीं. हमने सांकेतिक रूप से इसे जलाया था.

कई बार जलाया गया है मनुस्मृति का पन्ना
स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के छात्र ने कहा कि मनुस्मृति कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है बल्कि एक सामाजिक किताब है. इसके अलावा भीमराव अबंडेकर ने सबसे पहले इसे सार्वजनिक रूप से जलाया था. तबसे कई बार इसे जलाया जा चुका है. छात्रों ने बताया कि अलावा हमारे देश में पुतला दहन की परंपरा है. हमने उसी का अनुसरण करते हुए मनुस्मृति के कुछ पन्नों को विरोध स्वरूप शांतिपूर्वक जलाया था.

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