टेक्नोलॉजी, रणनीति और बजट... दिल्ली में कूड़े के तीनों पहाड़ कैसे खत्म हो सकते हैं?

इस विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने ना केवल यमुना की सफाई और प्रदूषण को चुनावी मुद्दा बनाया बल्कि दिल्ली में कचरे के पहाड़ों को कम करने का भी वादा किया है.अब जब बीजेपी चुनाव जीत चुकी है तो उसके सामने कचरे के पहाड़ों को कम करने की भी चुनौती होगी.

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दिल्ली गाजीपुर लैंडफिल दिल्ली गाजीपुर लैंडफिल

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 13 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 5:38 PM IST

2022 में आम आदमी पार्टी (आप) ने भाजपा के 15 साल के शासन के बाद एकीकृत दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की सत्ता पर कब्जा किया था. तब पार्टी ने दिल्ली को कचरा मुक्त और कूड़े की तीन पहाड़ों को कम करने का वादा किया था. अब तीन साल बाद जब आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता से बाहर हो चुकी है, सफाई और कूड़े का मुद्दा आज भी वैसा ही बना हुआ है.

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इस विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने ना केवल यमुना की सफाई और प्रदूषण को चुनावी मुद्दा बनाया बल्कि दिल्ली में कचरे के पहाड़ों को कम करने का भी वादा किया है.अब जब बीजेपी चुनाव जीत चुकी है तो उसके सामने कचरे के पहाड़ों को कम करने की भी चुनौती होगी.  

कचरा बढ़ने का सिलसिला जारी
दिल्ली, जहां करीब 2 करोड़ लोग रहते हैं, वहां हर दिन लगभग 11,000 टन कचरा पैदा होता है. इसमें से प्रति दिन केवल 5,280 टन कचरा (TDP) प्रोसेस होता है यानि उसका निपटान किया जाता है, जबकि बाकी कचरे को लैंडफिल्स में डंप किया जाता है. कचरे की यह समस्या पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है. साल 2000 तक दिल्ली सिर्फ 400 टन कचरा पैदा होता था. लेकिन बीते वर्षों के दौरान कचरा तेजी से बढ़ा है और उसका निपटान नहीं होने की वजह से दिल्ली में तीन जगहों पर कूड़े के लंबे पहाड़ बन गए हैं जिनमें गाजीपुर लैंडफिल, भलस्वा लैंडफिल और ओखला लैंडफिल शामिल हैं.  

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तीनों लैंडफिल साइट यानी कूड़े के पहाड़ों को कम करने के प्रयास तो हो रहे हैं, लेकिन रफ्तार ऐसी है कि जितना कूड़ा कम हो रहा है उससे अधिक मात्रा में कूड़ा वहां फिर डंप हो रहा है.  

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नीति आयोग के साथ साझा किया था एक्शन प्लान
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने राजधानी के तीन लैंडफिल स्थलों को कम या खत्म करने के लिए 2023 में एक एक्शन प्लान बनाकर नीति आयोग को भेजा था. इसकी पूरी योजना तीन नगर निगमों ने 2019 में नीति आयोग के साथ साझा की थी.  इस रिपोर्ट में एमसीडी ने पांच अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र (waste processing plants) और तीन इंजीनियर लैंडफिल साइट लगाकर ओखला, भलस्वा और गाजीपुर में तीन साइटों से कचरे का निपटान कर इस जमीन को साफ करने का लक्ष्य रखा था. 

यह तय किया गया था कि इंजीनियर लैंडफिल साइट का उपयोग ताजा कचरे को डंप करने के लिए नहीं किया जाएगा, बल्कि अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाली राख और जली हुई सामग्री को संग्रहीत करने के लिए किया जाएगा. यह तय किया था कि तीनों स्थलों के आसपास हरित पट्टी विकसित की जाएगी, जिसका उपयोग आस-पास के आवासीय क्षेत्रों के लिए बफर के रूप में किया जाएगा. इसकी पूरी योजना 6 अप्रैल, 2023 को दिल्ली सरकार के साथ साझा की गई थी. नीति आयोग ने कचरा प्रबंधन के लिए नई तकनीकों और इनोवेशन को अपनाने पर जोर दिया था. इसमें AI और IoT जैसी तकनीकों का उपयोग शामिल है, जो कचरे के संग्रह और प्रबंधन को अधिक कुशल बना सकती हैं.

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कैसे साफ होंगे कचरे के पहाड़
बायो-माइनिंग और बायो-रेमेडिएशन तकनीकों के जरिए पुराने लैंडफिल्स से जैविक कचरे को अलग किया जा सकता है. इसके तहत उसे पुन: उपयोग के योग्य बनाया जाता है. नीति आयोग ने गीले कचरे के प्रसंस्करण के लिए बायो-मीथेनेशन की सिफारिश की थी. इस प्रक्रिया से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आएगी और रोजगार के अवसर पैदा होंगे. इसके अलावा नीति आयोग ने वेस्ट टू एनर्जी परियोजनाओं के जरिए न केवल कचरे का निपटान होगा, बल्कि बिजली भी उत्पन्न होगी, जो ऊर्जा संकट को भी हल कर सकती है.

तीन निगमों ने तब बताया था कितना होगा खर्च

बात करें खर्च की तो 2019 में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम ने तब ओखला लैंडफिल साइट को खत्म करने का खर्चा एक हजार करोड़ रुपये बताया था. इसके अलावा उत्तरी नगर निगम ने भलस्वा लैंडफिल साइट को खत्म करने के लिए 1200 करोड़ का अनुमानित खर्चा और पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने गाजीपुर लैंडफिल साइट को खत्म करने के लिए 1200 करोड़ का खर्चा बताया था.

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नई सरकार के पास विकल्प

कचरे का वर्गीकरण (Waste Segregation): सबसे पहले कचरे का वर्गीकरण करना जरूरी है, ताकि जैविक, खतरनाक और निर्माण मलबे का अलग-अलग प्रबंधन किया जा सके. जब कचरे का सही तरीके से प्रबंधन होता है, तो उसे निपटाने में आसानी होती है और लैंडफिल्स में कम कचरा जाता है.

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जैविक कचरे का बायोमाइनिंग (Bio-mining): पुराने कचरे (legacy waste) को जैविक खनन (bio-mining) प्रक्रिया से निकाला जा सकता है. इसमें कचरे से जैविक सामग्री को निकालकर उसे पुनः उपयोगी बनाया जाता है. इस प्रक्रिया से लैंडफिल्स की ऊंचाई घटेगी.

कचरे की रिसाइक्लिंग: अधिक से अधिक कचरे को रिसाइकिल किया जा सकता है, विशेष रूप से प्लास्टिक, कागज, धातु और कांच जैसी सामग्रियों को. इसके लिए कचरे के संग्रहण और रिसाइक्लिंग केंद्रों की संख्या बढ़ानी होगी.

लैंडफिल्स के पुनर्वास (Landfill Rehabilitation): पुराने लैंडफिल्स को साफ करने के लिए विशेष योजना बनानी चाहिए, ताकि उनकी ऊंचाई कम की जा सके और प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके.

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