सरकार ने बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया 'इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट' में डेटा, विशेषज्ञों का दावा

एक साल की देरी के बाद शनिवार को जारी 'भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023' पर विशेषज्ञों ने अपनी नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि भारत के जंगलों पर जारी नया सरकारी डेटा को बढ़ा- चढ़ा कर पेश किया गया है, क्योंकि इसमें वन क्षेत्र के हिस्से के रूप में बांस के बागान, नारियल के पेड़ और बगीचे को भी शामिल किया गया है. 

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 8:13 PM IST

कई विशेषज्ञों ने दावा किया है कि भारत के जंगलों पर जारी नया सरकारी डेटा को बढ़ा- चढ़ा कर पेश किया गया है, क्योंकि इसमें वन क्षेत्र के हिस्से के रूप में बांस के बागान, नारियल के पेड़ और बगीचे को भी शामिल किया गया है. 

लगभग एक साल की देरी के बाद शनिवार को जारी 'भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023' में कहा गया है कि 2021 के बाद से भारत का कुल वन और वृक्ष आवरण 1,445 वर्ग किमी बढ़ गया है जो 2023 में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% तक पहुंच गया है. हालांकि, वन आवरण में केवल 156 वर्ग किमी की वृद्धि हुई और अधिकांश लाभ (149 वर्ग किमी) रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया (आरएफए) के बाहर हुआ, जो सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में नामित क्षेत्रों को संदर्भित करता है.

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विशेषज्ञों की मानें तो समग्र परिणाम अधिक मजबूत हो सकते थे, खासकर जब से सरकार ने ISFR 2023 के लिए वृक्ष आवरण अनुमान में बांस और छोटे पेड़ों (ब्रेस्ट की ऊंचाई पर 5-10 सेमी व्यास) को शामिल किया था. मूल्यांकन भी 2021 में 636 से बढ़कर 751 जिलों तक फैल गया.

ऐसे बढ़ा वन क्षेत्र

केरल की पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक प्रकृति श्रीवास्तव, संरक्षणवादी शोधकर्ता कृतिका संपत और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की पूर्व सदस्य प्रेरणा सिंह बिंद्रा समेत विशेषज्ञों ने दावा किया कि सरकार ने बांस के बागानों, नारियल के पेड़ों और बागों को वन क्षेत्र के हिस्से के रूप में गिना और इस बढ़े हुए डेटा के साथ एक बढ़े हुए डेटा के साथ एक खराब रिपोर्ट पेश की है.

उन्होंने तर्क दिया कि ऐसे क्षेत्र जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण के लिए कोई पारिस्थितिक मूल्य प्रदान नहीं करते हैं. वृक्ष आवरण में वृद्धि (1,289 वर्ग किमी) मुख्य रूप से रबर, नीलगिरी, बबूल और आम, नारियल, सुपारी और चाय और कॉफी के बागानों में छायादार पेड़ों के रोपण के कारण हुई है.

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उन्होंने कहा कि वृक्ष आवरण को आरएफए के बाहर पेड़ों के टुकड़े और अलग-अलग पेड़ों के रूप में परिभाषित किया गया है जो एक हेक्टेयर से कम हैं. वृक्षावरण में आम का योगदान 13.25 प्रतिशत है.

उन्होंने कहा कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2021 और 2023 के बीच 1,488 वर्ग किमी के अवर्गीकृत वन नष्ट हो गए हैं, लेकिन आईएसएफआर 2023 में इसके लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं है. 'अवर्गीकृत वन' सरकारी स्वामित्व के तहत गैर-अधिसूचित वन हैं.

रिपोर्ट में मेल नहीं खा रहा है डेटा

विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि यह रिपोर्ट वन क्षेत्र (सरकारी रिकॉर्ड में वनों के रूप में नामित) और वन क्षेत्र के बीच संबंध स्थापित नहीं करती है. रिपोर्ट स्पष्ट रूप से दिखाती है कि दोनों पर डेटा मजबूत नहीं है.

उन्होंने दावा किया कि यह रिपोर्ट लाफार्ज मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने में विफल रही, जिसमें वन मानचित्रों के डिजिटलीकरण, रिकॉर्ड किए गए वन क्षेत्रों (आरएफए) की जियो-रेन्फ्रेंसिंग और डायवर्टेड वन भूमि के प्रलेखन का आह्वान किया गया था. इन फैक्ट का रिपोर्ट में न होना रिपोर्ट की विश्वसनीयता को कमजोर करती है.

उन्होंने यह भी कहा कि बांधों, सड़कों, रेलवे और ऐसे अन्य स्थायी निर्माण के लिए डायवर्ट की गई वन भूमि हमेशा के लिए खो गई है, लेकिन रिकॉर्ड से हटाए नहीं गए हैं. इस प्रकार आंकड़े खुद-ब-खुद बढ़ जाते हैं.

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'हमने खो दिए खुले और झाड़ी वाले जंगल'

विधी सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में जलवायु और इकोसिस्टम टीम का नेतृत्व करने वाले देवदत्तो सिन्हा ने कहा कि भारत ने 14,073 वर्ग किलोमीटर मध्यम घने जंगलों और 1,816 वर्ग किलोमीटर घने जंगलों के साथ 30,808 वर्ग किलोमीटर खुले और झाड़ी वाले जंगलों को खो दिया है.

सिन्हा ने एक्स पर पोस्ट किया कि रिपोर्ट में इन निम्नीकृत भूमि से 406.05 मिलियन टन कार्बन की कार्बन पृथक्करण क्षमता का उल्लेख किया गया है, लेकिन गैर-वन उपयोगों पर चुप है.

विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की कि पहाड़ी जिलों में वन आवरण उनके भौगोलिक क्षेत्र का केवल 40 प्रतिशत है, जबकि वन नीति में अनिवार्य 66.6 प्रतिशत है.

उन्होंने कहा, "यह बहुत चिंताजनक है क्योंकि हमारी मिट्टी का स्वास्थ्य, पारिस्थितिक स्थिरता, भूस्खलन, बाढ़ का मुकाबला करने की क्षमता पहाड़ियों में वन क्षेत्र पर निर्भर करती है."

विशेषज्ञों ने कहा कि भूस्खलन और बाढ़ की बढ़ती संख्या का कारण पहाड़ों में वन क्षेत्र की हानि का पता लगाया जा सकता है, जो हमारी पारिस्थितिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किए गए प्रयासों का खराब प्रतिबिंब है.

एफएसआई ने पिछले दशक में पारिस्थितिक रूप से नाजुक पश्चिमी घाट में वन क्षेत्र में बदलाव का भी विश्लेषण किया और वन क्षेत्र में कुल मिलाकर 58.22 वर्ग किमी का नुकसान पाया.

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इस क्षेत्र में नीलगिरी में 123 वर्ग किमी की सबसे भारी गिरावट दर्ज की गई. कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में फैली पर्वत श्रृंखला अपने लोकप्रिय पर्यटन स्थलों के लिए जानी जाती है. रिपोर्ट में पूर्वोत्तर क्षेत्र में वन क्षेत्र में 327.30 वर्ग किमी की कमी देखी गई थी.

रिपोर्ट के अनुसार, देश का कुल मैंग्रोव कवर 4,991.68 वर्ग किमी है, जो 2021 के बाद से 7.43 वर्ग किमी की कमी है. वहीं, बहुत घने जंगल में बढ़त के बावजूद पिछले दशक में मध्यम घने जंगल और खुले वन श्रेणियों में क्रमशः 1,043.23 वर्ग किमी और 2,480.11 वर्ग किमी की गिरावट देखी गई है.

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