तीन साल का मासूम बता रहा है आठ सौ साल का इतिहास

पुनर्जन्म की कहानियां तो आपने बहुत सुनी होंगी लेकिन ये ऐसी कहानी है जिसमें तीन साल का मासूम 824 साल पुराना इतिहास बता रहा है. आमतौर पर ऐसी कहानी सौ वर्ष तक या उससे कम की होती हैं लेकिन 800 साल पुराना इतिहास जो कि इतिहास के पन्नों तक ही सीमित हो वो निकलकर बाहर आ जाए तो इसे चमत्कार ही कहा जाएगा.

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भूटान की महारानी दोरजी वांगचुक का नाती भूटान की महारानी दोरजी वांगचुक का नाती

सुजीत झा

  • पटना,
  • 03 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 7:59 PM IST

पुनर्जन्म की कहानियां तो आपने बहुत सुनी होंगी लेकिन ये ऐसी कहानी है जिसमें तीन साल का मासूम 824 साल पुराना इतिहास बता रहा है. आमतौर पर ऐसी कहानी सौ वर्ष तक या उससे कम की होती हैं लेकिन 800 साल पुराना इतिहास जो कि इतिहास के पन्नों तक ही सीमित हो वो निकलकर बाहर आ जाए तो इसे चमत्कार ही कहा जाएगा.

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वो भी जब सारा मामला प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़ा हो तो इसका महत्व और बढ़ जाता है. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास है. दुनिया के सबसे पहले विश्वविद्यालय के बारे में हमें केवल इतिहास के पन्ने और उसके बचे हुए अवशेष ही बताते हैं. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में महान शिक्षाविद् 824 साल फिर से हुआ है. हम बात कर रहे हैं नालंदा विश्वविद्यालय के महान शिक्षाविद वेरोचेना के बारे में जिनका पुनर्जन्म 824 साल बाद भूटान की महारानी दोरजी वांगचुक का नाती के रूप में हुआ है. यह दावा खुद भूटान की महारानी दोजी ओंगचुक का है. महारानी पहली बार अपनी बेटी सोनम देझेन वांगचुक और तीन वर्ष के नाती ट्रूएक वांगचुक के साथ नालंदा पहुंची.

महज तीन वर्ष के इस छोटे से बालक ने चार घंटे तक अपने अतीत को बताकर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया. यही नहीं इसने वह मुद्राएं भी अपने आप दिखाईं जो नालंदा में पढ़ने वाले छात्रों को सिखाई जाती थीं. इस बालक ने उस जगह को भी पहचाना जहां अध्यन किया जाता था. इसके अलावा उस कमरे की भी पहचान की जिसमें वह रहता था. यहां के दरों दीवार अलग-अलग रास्ते गलियां और फुटपाथ को भी पहचाना.

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महारानी ने नालंदा पहुंचकर अपने आप को अत्यंत सौभाग्यशाली बताते हुए अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन बताया. जैसे ही इस बालक के पुनर्जन्म होने की बात फैली लोग इसकी पूजा करने और आशीर्वाद लेने लगे. हांलाकि विश्वास तो नहीं होता लेकिन जिस प्रकार एक छोटे से बालक ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी दी उसने एक बार इंसान को सोचने पर मजबूर कर दिया.

नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है. जिसके अवशेषों की खोज अलेक्सजेंडर कनिघंम ने की थी. माना जाता है कि आज से करीब 824 साल पहले पढ़ाई होती थी. इसकी स्थापना 450 ई. में गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त ने की थी. इनके बाद हर्षवर्द्धन, पाल शासक और विदेशी शासकों ने विकास में अपना पूरा योगदान दिया. गुप्त राजवंश ने मठों का संरक्षण करवाया. 1193 ई. में आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को तहस-नहस कर जला डाला था. भगवान बुद्ध भी यहां आये थे. खासकर पांचवीं से 12वीं शताब्दी तक बौद्ध शिक्षा केन्द्र के रूप में यह विश्व प्रसिद्ध था. यह दुनिया का पहला आवासीय महाविहार था, जहां 10 हजार छात्र रहकर पढ़ाई करते थे. इन्हें पढ़ाने के लिए 2000 शिक्षक थे.

महारानी ने बताया जब राजकुमार एक साल के थे तभी से नालंदा का उच्चारण करते थे. तब से लगातार राजकुमार नालंदा विश्वविद्यालय के लिए बात करते थे. तीन साल का बच्चा ज्यादातर आठवीं सदी की बात करता था और भूटान से यहां आने की जिद्द करता था. महारानी ने ये भी बताया कि राजकुमार ने जैसा वर्णन किया था ठीक वैसा ही नालंदा विश्वविद्यालय को पाया.

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पुनर्जन्म की कहानी एक जन्म तक लोगों को याद रहती है. आखिर आठ सौ साल पहले की कहानी ये मासूम कैसे बता रहा है. यह आश्चर्यजनक है और सोचने पर मजबूर करता है कि क्या राजकुमार का पुनर्जन्म आठ सौ साल में एक ही बार हुआ.

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